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जलवायु परिवर्तन पर निबंध (Climate Change Essay in Hindi)

जलवायु परिवर्तन वास्तव में पृथ्वी पर जलवायु की परिस्थितियों में बदलाव को कहा जाता है। यह विभिन्न बाह्य एवं आंतरिक कारणों से होता है जिनमें सौर विकिरण, पृथ्वी की कक्षा में परिवर्तन, ज्वालामुखी विस्फोट, प्लेट टेक्टोनिक्स आदि सहित अन्य आंतरिक एवं बाह्य कारण सम्मिलित हैं। वास्तव में, जलवायु परिवर्तन, पिछले कुछ दशकों में विशेष रूप से चिंता का कारण बन गया है। पृथ्वी पर जलवायु के स्वरूप में परिवर्तन वैश्विक चिंता का विषय बन चुका है। जलवायु परिवर्तन के कई कारण होते हैं और यह परिवर्तन विभिन्न तरीकों से पृथ्वी पर जीवन को प्रभावित करता है।

जलवायु परिवर्तन पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Climate Change in Hindi, Jalvayu Parivartan par Nibandh Hindi mein)

जलवायु परिवर्तन पर निबंध – 1 (300 शब्द).

जलवायु परिवर्तन पृथ्वी पर जलवायु की परिस्थितियों में होने वाला बदलाव है। इसके लिए कई कारक सदियों से इस परिवर्तन को लाने में अपना योगदान देते रहे हैं। हालांकि अभी हाल ही के वर्षों मे वातावरण में हुआ प्रदूषण मुख्यतः मानव गतिविधियों का परिणाम है और इन गतिविधियों ने वातावरण पर बेहद नकारात्मक प्रभाव डाले हैं और इसे बुरी तरह प्रदूषित कर दिया है।

जलवायु परिवर्तन के कारण

सूर्य से उत्सर्जित जो ऊर्जा पृथ्वी तक पहुंचती है और फिर हवाओं और महासागरों द्वारा विश्व के विभिन्न भागों में आगे बढ़ती है, वह जलवायु परिवर्तन का एक प्रमुख कारण है। नए युग की तकनीकों का प्रयोग पृथ्वी पर कार्बन उत्सर्जन के दर को बढ़ा रहा है और इस प्रकार वतावरण को विपरीत रूप से प्रभावित कर रहा है। इसके अलावा, कक्षीय रूपांतरों, प्लेट टेक्टोनिक्स और ज्वालामुखी विस्फोटों से भी जलवायु में बदलाव हो सकते हैं।

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव

जलवायु परिस्थितियों में होने वाले व्यापक परिवर्तनों के कारण कई पौधों और जानवरों की पूरी जनसंख्या विलुप्त हो गई है एवं कई अन्यों की जनसंख्या विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है। कुछ क्षेत्रों में कुछ विशेष प्रकार के वृक्ष सामूहिक रूप से विलुप्त हो गए हैं। जलवायु परिस्थितियों में परिवर्तनों की वजह से जल-प्रणाली पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। इसके परिणामस्वरूप ग्लेशियर पिघलते जा रहे हैं एवं वर्षा अनियमित रूप से हो रही है और साथ ही वर्षा का स्वरूप भी बिगड़ता जा रहा है। ये सारी परिस्थितियां पर्यावरण में असंतुलन को बढ़ा रहे हैं।

जलवायु परिवर्तन की समस्या को गंभीरता से लेना आवश्यक है और वातावरण को प्रभावित कर रहे मानवीय गतिविधियां जो वातावरण को खराब करने में योगदान दे रहे हैं, उनको नियंत्रित करना महत्वपूर्ण है। सरकार के साथ ही साथ हमें भी जलवायु परिवर्तन पर रोकथाम के लिए प्रयास करना चाहिए।

इसे यूट्यूब पर देखें : जलवायु परिवर्तन पर निबंध

निबंध 2 (400 शब्द)

जलवायु परिवर्तन को मूलतः धरती पर मौसम की औसत स्थितियों के स्वरूपों के वितरण में हो रहे परिवर्तन के तौर पर जाना जाता है। जब यह परिवर्तन कुछ दशकों या सदियों तक तक कायम रह जाता है तो इसे जलवायु परिवर्तन कहते हैं। जलवायु की परिस्थितियों में बदलाव लाने में कई कारकों का योगदान होता है। यहां हम जलवायु परिवर्तन के इन कारणों की व्याख्या कर रहे हैं:

जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार घटक

यहां पृथ्वी पर जलवायु परिस्थितियों में बदलाव लाने वाले कुछ मुख्य कारकों पर हम आपका ध्यानाकर्षित कर रहे हैं:

सूर्य की ऊर्जा पृथ्वी पर पहुंचती है और अंतरिक्ष में वापिस उत्सर्जित हो जाती है। सूर्य की ऊर्जा हवा, समुद्र के प्रवाह एवं अन्य तंत्रो के माध्यम से विश्व के विभिन्न हिस्सों में पहुंच जाती है, जिसके द्वारा उन हिस्सों के जलवायु तंत्र पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

  • ज्वालामुखी विस्फोट

ज्वालामुखी विस्फोट पृथ्वी पर अक्सर होते रहते हैं और यह जलवायु में परिवर्तन लाने वाला एक और महत्वपूर्ण कारण है। पृथ्वी पर ज्वालामुखी विस्फोट का प्रभाव कुछ वर्षों तक रहता है।

  • मानवीय गतिविधियां

पृथ्वी पर जीवन स्वयं पृथ्वि के जलवायु में होने वाले परिवर्तनों में अपना योगदान देती है। मनुष्यों द्वारा कार्बन उत्सर्जन की प्रक्रिया एक ऐसा कारण है जो जलवायु को विपरीत रूप से प्रभावित करता है। जीवाश्म ईंधन के दहन, औद्योगिक अपशिष्टों को जलाए जाने एवं वाहनों द्वारा हो रहे प्रदूषणों में कार्बन का लगातार उत्सर्जन उत्सर्जित जलवायु पर गंभीर परिणाम छोड़ते हैं।

कक्षीय परिवर्तन

पृथ्वी की कक्षा में होने वाले बदलाव की वजह से सूर्य के प्रकाश के मौसमी वितरण पर बुरा असर पड़ता है और यह परिवर्तित हो जाता है। इस परिवर्तन की वजह से होने वाले विपरीत प्रभावों की वजह से मिल्नकोविच चक्रों का निर्माण होता है जो जलवायु पर विपरीत प्रभाव डालते हैं।

  • वनों पर प्रभाव

वन एक प्रकार से विभिन्न पशुओं और पौधों की कई प्रजातियों के लिए आवास की भूमिका निभाते हैं और साथ ही ये पृथ्वी पर पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखते हैं। हालांकि, विश्व के कई क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के कारण वन विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गए हैं।

  • जल पर प्रभाव
  • जलवायु परिवर्तन के कारण धरती पर जल का पूरी प्रणाली अव्यवस्थित हो गई है। वर्षा का स्वरूप भी अनिश्चित हो गया है जिसके परिणामस्वरूप कई स्थानों पर सूखा एवं और बाढ़ जैसी चरम स्थितियों का सामना लोगों को करना पड़ रहा है। इसकी वजह से हिमनद भी पिघलते जा रहे हैं।
  • वन्य जीवन पर प्रभाव

जलवायु परिवर्तन विभिन्न जंगली प्रजातियों के अस्तित्व के लिए एक भीषण खतरे के रूप में उभर कर आया है जिसकी वजह से जंगली जानवरों और पौधों की कई प्रजातियां की संख्या में गिरावट दर्ज की जा रही है और कुछ तो विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गए हैं।

जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है। प्राकृतिक कारकों के अलावा, मानव गतिविधियों ने भी इस परिवर्तन में प्रमुख योगदान दिया है। मनुष्य प्राकृतिक कारणों को तो नियंत्रित नहीं कर सकता लेकिन वह कम से कम यह तो सुनिश्चित जरूर कर सकता है वह वातावरण पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाली अपनी गतिविधियों को नियंत्रण में रखे ताकि धरती पर सामंजस्य बनाया रखा जा सके।

निबंध 3 (500 शब्द)

जलवायु परिवर्तन वैश्विक जलवायु पैटर्न में बदलाव को दर्शाता है। हमारे ग्रह ने सदियों से जलवायु पैटर्न में परिवर्तन होते हुए देखा है। हालांकि, 20वीं शताब्दी के मध्य के बाद से हुए परिवर्तन अधिक स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होते हैं। वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के अनुपात में बहुत अधिक वृद्धि हो चुकी है जिसकी वजह से पृथ्वी के जलवायु में कई बड़े परिवर्तन हुए हैं। इसके अलावा, सदियों से कई प्राकृतिक बल जैसे कि सौर विकिरण, पृथ्वि की कक्षा में बदलाव एवं ज्वालामुखी विस्फोट इत्यादि पृथ्वी की जलवायु की परिस्थितियों को प्रभावित करते रहे हैं। यहां हमने जलवायु की परिस्थितियों में परिवर्तन के मुख्य कारणों एवं उनके नकारात्मक प्रभावों की विवेचना की है।

जलवायु परिवर्तन की वजहें

कई ऐसे कारक हैं जो अतीत में मौसम में परिवर्तन लाने के लिए जिम्मेदार रहे हैं। इनमें पृथ्वी पर पहुंचने वाली सौर ऊर्जा में विविधताएं, ज्वालामुखी विस्फोट, कक्षीय परिवर्तन और प्लेट टेक्टोनिक्स इत्यादि शामिल हैं। इसके अलावा, कई मानवीय गतिविधियां भी पिछले कुछ दशकों में जलवायु परिस्थितियों में परिवर्तन लाने के लिए जिम्मेदार रहीं हैं। अभी हाल ही में जो जलवायु की स्थितियों में बदलाव हुआ है उसे ग्लोबल वार्मिंग के तौर पर भी जाना जाता है। आइए हम इनमें से प्रत्येक कारणों के बारे में विस्तार से जानें:

जिस दर पर सूर्य से ऊर्जा प्राप्त होती है और जिस गति से यह चारो तरफ फैलती है उसी के अनुरूप हमारे ग्रह पर तापमान एवं जलवायु का संतुलन तय होता है। हवाएं, महासागरीय जलधाराएं एवं वातावरण के अन्य तंत्र पूरी दुनिया में इसी सौर ऊर्जा को लेते हैं जिससे विभिन्न क्षेत्रों की जलवायुवीय परिस्थितियां प्रभावित होती हैं। सौर ऊर्जा की तीव्रता में दीर्घकालिक और साथ ही अल्पकालिक परिवर्तनों का असर वैश्विक जलवायु पर पड़ता है।

वे ज्वालामुखीय विस्फोट, जो स्ट्रैटोस्फियर में 100,000 टन से भी अधिक SO2 को उत्पन्न करते हैं, पृथ्वी के जलवायु को प्रभावित करने के लिए जाने जाते हैं। इस तरह के विस्फोट एक सदी में कई बार होते हैं और अगले कुछ सालों तक ये लिए पृथ्वी के वायुमंडल को ठंडा करते रहते हैं क्योंकि क्योंकि यह गैस पृथ्वी की सतह पर सौर विकिरण के संचरण को अंशतः अवरुद्ध करती है।

पृथ्वी की कक्षा में मामूली परिवर्तन से भी पृथ्वि की सतह पर सूर्य की रोशनी के मौसमी वितरण में बदलाव आते हैं। कक्षीय परिवर्तन तीन प्रकार के होते हैं – पृथ्वी की विकेन्द्रता में परिवर्तन, पृथ्वी की धुरी का पुरस्सरण और पृथ्वी के अक्ष में घूर्णन करते हुए पृथ्वी के धुरी के झुकाव कोण में बदलाव आदि। ये तीनों साथ मिलकर जलवायु पर बहुत बड़ा प्रभाव डालते हैं।

  • प्लेट टेक्टोनिक्स

टेक्टोनिक प्लेटों की गति पृथ्वी पर भूमि एवं महासागरों के स्वरूप में परिवर्तन लाती है और साथ ही लाखों वर्षों की अवधि में स्थलाकृति को बदलती है। इसकी वजह से वैश्विक जलवायु परिस्थितियां भी बदल जाती हैं।

मौसम की स्थिति प्रतिदिन खराब होती जा रही है। ऊपर बताए गए प्राकृतिक कारकों की वजह से जलवायु पर हो रहे नकारात्मक प्रभाव को तो नियंत्रित नहीं किया जा सकता है, लेकिन, वैसी मानवीय गतिविधियां जो वायु, स्थल एवं जल प्रदूषण का कारण हैं और जो जलवायु पर नकारात्म प्रभाव डालती हैं उनपर प्रतिबंध जरूर लगाया जा सकता है। इस वैश्विक समस्या को नियंत्रित करने के लिए हममें से प्रत्येक को अपना योगदान देना चाहिए।

Essay on Climate Change in Hindi

निबंध 4 (600 शब्द)

जैसा कि नाम से स्पष्ट है पृथ्वी पर जलवायु की परिस्थितियों में बदलाव होने को जलवायु परिवर्तन कहते हैं। यूं तो मौसम में अक्सर बदलाव होते रहते हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन केवल तभी घटित होता है जब ये बदलाव पिछले कुछ दशकों से लेकर सदियों तक कायम रहें। कई ऐसे कारक हैं जो जलवायु में बदलाव लाते हैं। यहां इन कारकों पर विस्तार से चर्चा की जा रही है:

जलवायु परिवर्तन के विभिन्न कारण

विभिन्न बाह्य एवं आंतरिक तंत्रों में बदलाव की वजह से जलवायु परिवर्तन होता है। आइए इनके बारे में में हम विस्तार से जानें:

बाहर से दबाव डालने वाले वाले तंत्र

वे ज्वालामुखीय विस्फोट, जो पृथ्वि के स्ट्रैटोस्फियर में 100,000 टन से भी अधिक SO2 को उत्पन्न करते हैं, पृथ्वी के जलवायु को प्रभावित करने के लिए जाने जाते हैं। ये विस्फोट पृथ्वि के वायुमंडल को ठंडा करते रहते हैं क्योंकि इनसे निकलने वाली यह गैस पृथ्वी की सतह पर सौर विकिरण के संचरण में बाधा डालते हैं।

  • सौर ऊर्जा का उत्पादन

जिस दर पर पृथ्वी को सूर्य से ऊर्जा प्राप्त होती है एवं वह दर जिससे यह ऊर्जा वापिस जलवायु में उत्सर्जित होती है वह पृथ्वी पर जलवायु संतुलन एवं तापमान को निर्धारित करती है। सौर ऊर्जा के उत्पादन में किसी भी प्रकार का परिवर्तन इस प्रकार वैश्विक जलवायु को प्रभावित करता है।

टेक्टोनिक प्लेटों की गति लाखों वर्षों की अवधि में जमीन और महासागरों को फिर से संगठित करके नई स्थलाकृति तैयार करती है। यह गतिविधि वैश्विक स्तर पर जलवायु की परिस्थितियों को प्रभावित करता है।

  • पृथ्वी की कक्षा में बदलाव

पृथ्वी की कक्षा में परिवर्तन होने से सूर्य के प्रकाश के मौसमी वितरण, जिससे सतह पर पहुंचने वाले सूर्य के प्रकाश की मात्रा प्रभावित होती है, में परिवर्तन होता है। कक्षीय परिवर्तन तीन प्रकार के होते हैं इनमें पृथ्वी की विकेंद्रता में परिवर्तन, पृथ्वी के घूर्णन के अक्ष के झुकाव कोण में परिवर्तन और पृथ्वी की धुरी की विकेंद्रता इत्यादि शामिल हैं। इनकी वजह से मिल्नकोविच चक्रों का निर्माण होता है जो जलवायु पर बहुत बड़ा प्रभाव डालते हैं।

जीवाश्म ईंधनों के दहन की वजह से उत्पन्न CO2,  वाहनों का प्रदूषण, वनों की कटाई, पशु कृषि और भूमि का उपयोग आदि कुछ ऐसी मानवीय गतिविधियां हैं जो जलवायु में परिवर्तन ला रही हैं।

आंतरिक बलों के तंत्र का प्रभाव

कार्बन उत्सर्जन और पानी के चक्र में नकारात्मक बदलाव लाने में जीवन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका असर जलवायु परिवर्तन पर भी पड़ता है। यह कई अन्य नकारात्मक प्रभाव प्रदान करने के साथ ही, बादलों का निर्माण, वाष्पीकरण, एवं जलवायुवीय परिस्थितियों के निर्माण पर भी असर डालता है।

  • महासागर-वायुमंडलीय परिवर्तनशीलता

वातावरण एवं महासागर एक साथ मिलकर आंतरिक जलवायु में परिवर्तन लाते हैं। ये परिवर्तन कुछ वर्षों से लेकर कुछ दशकों तक रह सकते हैं और वैश्विक सतह के तापमान को विपरीत रूप से प्रभावित कर सकते हैं।

जलवायु परिवर्तन के कारण पृथ्वी के पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। यहां इन प्रभावों का वर्णन किया जा रहा है:

वन पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का संतुलन बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि वे कार्बन डाईऑक्साइड को अवशोषित कर लेते हैं। हालांकि, पेड़ों की कई प्रजातियां तो वातावरण के लगातार बदलते माहौल का सामना करने में असमर्थ होने की वजह से विलुप्त हो गए हैं। वृक्षों और पौधों के बड़े पैमाने पर विलुप्त होने के कारण जैव विविधता के स्तर में कमी आई है जो पर्यावरण के लिए बुरा संकेत है।

  • ध्रुवीय क्षेत्रों पर प्रभाव

हमारे ग्रह के उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुव इसके जलवायु को विनियमित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं और बदलते जलवायु परिस्थितियों का बुरा प्रभाव इन पर भी हो रहा है। यदि ये परिवर्तन इसी तरह से जारी रहे, तो यह अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले समय में ध्रुवीय क्षेत्रों में जीवन पूरी तरह से विलुप्त हो सकता है।

  • जल पर पड़ने वाले प्रभाव

जलवायु परिवर्तन ने दुनिया भर में जल प्रणालियों के लिए कुछ गंभीर परिस्थितियों को जन्म दिया है। बदलते मौसम की स्थिति के कारण वर्षा के स्वरूप में पूरे विश्व में परिवर्तन हो रहा है और इस वजह से धरती के विभिन्न भागों में बाढ़ या सूखे की परिस्थितियां निर्मित हो रही हैं। तापमान में वृद्धि के कारण हिमनदों का पिघलना एक और महत्वपूर्ण मुद्दा है।

बाघ, अफ्रीकी हाथियों, एशियाई गैंडों, एडली पेंगुइन और ध्रुवीय भालू सहित विभिन्न जंगली जानवरों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है और इन प्रजातियों में से अधिकांश विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुके हैं, क्योंकि वे बदलते मौसम का सामना नहीं कर पा रहे हैं।

जलवायु में होने वाले बदलावों के कारण पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, पिछले कुछ दशकों के दौरान मानवीय गतिविधियों ने इस बदलाव में तेजी लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने और धरती पर स्वस्थ वातावरण बनाए रखने के लिए, धरती पर मानवीय गतिविधियों द्वारा होने वाले वाले प्रभावों को नियंत्रित किए जाने की आवश्यकता है।

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ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध – कारण और समाधान

ग्लोबल वार्मिंग पर 500+ शब्द निबंध.

ग्लोबल वार्मिंग एक ऐसा शब्द है जिससे लगभग हर कोई परिचित है। लेकिन, इसका अर्थ अभी भी हम में से अधिकांश के लिए स्पष्ट नहीं है। तो, ग्लोबल वार्मिंग पृथ्वी के वातावरण के समग्र तापमान में क्रमिक वृद्धि को संदर्भित करता है। विभिन्न गतिविधियां हो रही हैं जो धीरे-धीरे तापमान बढ़ा रही हैं। ग्लोबल वार्मिंग हमारे हिम ग्लेशियरों को तेजी से पिघला रहा है। यह धरती के साथ-साथ इंसानों के लिए भी बेहद हानिकारक है। ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करना काफी चुनौतीपूर्ण है; हालाँकि, यह असहनीय नहीं है। किसी भी समस्या को हल करने में पहला कदम समस्या के कारण की पहचान करना है। इसलिए, हमें पहले ग्लोबल वार्मिंग के कारणों को समझने की आवश्यकता है जो हमें इसे हल करने में आगे बढ़ने में मदद करेंगे। ग्लोबल वार्मिंग पर इस निबंध में, हम ग्लोबल वार्मिंग के कारणों और समाधानों को देखेंगे।

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ग्लोबल वार्मिंग के कारण

ग्लोबल वार्मिंग एक गंभीर समस्या बन गई है जिस पर अविभाजित ध्यान देने की आवश्यकता है। यह किसी एक कारण से नहीं बल्कि कई कारणों से हो रहा है। ये कारण प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों हैं। प्राकृतिक कारणों में ग्रीनहाउस गैसों की रिहाई शामिल है जो पृथ्वी से भागने में सक्षम नहीं हैं, जिससे तापमान में वृद्धि होती है।

इसके अलावा, ज्वालामुखी विस्फोट भी ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार हैं। यह कहना है कि, इन विस्फोटों से कार्बन डाइऑक्साइड के टन निकलते हैं जो ग्लोबल वार्मिंग में योगदान करते हैं। इसी तरह, मीथेन भी ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार एक बड़ा मुद्दा है।

Read Essay on Global Warming in English here

उसके बाद, ऑटोमोबाइल और जीवाश्म ईंधन के अत्यधिक उपयोग से कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ जाता है। इसके अतिरिक्त, खनन और पशु पालन जैसी गतिविधियाँ पर्यावरण के लिए बहुत हानिकारक हैं। सबसे आम मुद्दों में से एक है जो तेजी से हो रहा है वनों की कटाई।

इसलिए, जब कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण के सबसे बड़े स्रोतों में से एक ही गायब हो जाएगा, तो गैस को विनियमित करने के लिए कुछ भी नहीं रहेगा। इस प्रकार, यह ग्लोबल वार्मिंग में परिणाम देगा। ग्लोबल वार्मिंग को रोकने और धरती को फिर से बेहतर बनाने के लिए तुरंत कदम उठाए जाने चाहिए।

climate change par essay in hindi

ग्लोबल वार्मिंग समाधान

जैसा कि पहले कहा गया है, यह चुनौतीपूर्ण हो सकता है लेकिन यह पूरी तरह से असंभव नहीं है। जब संयुक्त प्रयास किए जाते हैं तो ग्लोबल वार्मिंग को रोका जा सकता है। इसके लिए, व्यक्तियों और सरकारों, दोनों को इसे प्राप्त करने की दिशा में कदम उठाने होंगे। हमें ग्रीनहाउस गैस की कमी से शुरू करना चाहिए।

इसके अलावा, उन्हें गैसोलीन की खपत पर नजर रखने की जरूरत है। एक हाइब्रिड कार पर स्विच करें और कार्बन डाइऑक्साइड की रिहाई को कम करें। इसके अलावा, नागरिक सार्वजनिक परिवहन या कारपूल को एक साथ चुन सकते हैं। इसके बाद, रीसाइक्लिंग को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

ग्रीनहाउस प्रभाव क्या है?

उदाहरण के लिए, जब आप खरीदारी करने जाते हैं, तो अपने कपड़े की थैली ले जाएं। एक और कदम जो आप उठा सकते हैं वह है बिजली के उपयोग को सीमित करना जो कार्बन डाइऑक्साइड की रिहाई को रोक देगा। सरकार के हिस्से पर, उन्हें औद्योगिक कचरे को नियंत्रित करना चाहिए और उन्हें हवा में हानिकारक गैसों को बाहर निकालने से रोकना चाहिए। वनों की कटाई को तुरंत रोका जाना चाहिए और पेड़ों के रोपण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

संक्षेप में, हम सभी को इस तथ्य का एहसास होना चाहिए कि हमारी पृथ्वी ठीक नहीं है। इसका इलाज करने की जरूरत है और हम इसे ठीक करने में मदद कर सकते हैं। वर्तमान पीढ़ी को भविष्य की पीढ़ियों की पीड़ा को रोकने के लिए ग्लोबल वार्मिंग को रोकने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। इसलिए, हर छोटा कदम, कोई फर्क नहीं पड़ता कि कैसे छोटा वजन बहुत वहन करता है और ग्लोबल वार्मिंग को रोकने में काफी महत्वपूर्ण है।

ग्लोबल वार्मिंग पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न Q.1 ग्लोबल वार्मिंग के कारणों की सूची बनाएँ।

A.1 प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों प्रकार के ग्लोबल वार्मिंग के विभिन्न कारण हैं। प्राकृतिक एक में ग्रीनहाउस गैस, ज्वालामुखी विस्फोट, मीथेन गैस और बहुत कुछ शामिल हैं। अगला, मानव निर्मित कारण वनों की कटाई, खनन, मवेशी पालन, जीवाश्म ईंधन जलाना और अधिक हैं।

Q.2 ग्लोबल वार्मिंग को कोई कैसे रोक सकता है?

A.2 ग्लोबल वार्मिंग को व्यक्तियों और सरकार के संयुक्त प्रयास से रोका जा सकता है। वनों की कटाई पर रोक लगाई जानी चाहिए और पेड़ों को अधिक लगाया जाना चाहिए। ऑटोमोबाइल का उपयोग सीमित होना चाहिए और रीसाइक्लिंग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

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ग्लोबल वार्मिंग का क्या प्रभाव पड़ता है जानिए इन निबंधों के द्वारा

climate change par essay in hindi

  • Updated on  
  • जून 6, 2023

ग्लोबल वार्मिंग

ग्लोबल वार्मिंग 21वीं शताब्दी का सबसे बड़ा खतरा है। धरती पर गर्मी खतरनाक गति से बढ़ रही है। इसके कारण शताब्दियों से जमे हिमखंड पिघल रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग क्योंकि एक बहुत गंभीर समस्या है इसलिए इस पर निबंध कई SAT , UPSC जैसी कई शैक्षणिक और शैक्षिक परीक्षाओं का एक अभिन्न अंग हैं। निबंध  लिखने में सक्षम होना किसी भी भाषा में महारत हासिल करने का एक अभिन्न अंग है। यह अंग्रेजी दक्षता परीक्षाओं के साथ-साथ IELTS , TOEFL आदि का एक महत्वपूर्ण मूल्यांकनात्मक हिस्सा है। हम कह सकते हैं कि निबंध पूरी दुनिया के आकलन के लिए अपने विचारों को स्पष्ट और स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करने में एक व्यक्ति की मदद करते हैं। वे एक व्यक्ति की विश्लेषणात्मक सोच भी प्रस्तुत करते हैं और एक व्यक्ति को धाराप्रवाह अपनी राय व्यक्त करने में सक्षम बनाते हैं। इस ब्लॉग के जरिए आप ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध लिखना सीखनें के साथ इस विकट समस्या को गहराई से समझ पाएंगे। तो आइए शुरू करते हैं essay on global warming in hindi, global warming essay in hindi या ग्लोबल वार्मिंग निबंध। 

This Blog Includes:

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वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों (मीथेन, कार्बन डाय ऑक्साइड, ऑक्साइड और क्लोरो-फ्लूरो-कार्बन) के बढ़ने के कारण पृथ्वी के औसत तापमान में होने वाली बढ़ोतरी को ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़े हुए समुद्र के वाटर लेवल के फलस्वरूप इनका डेवलपमेंट, डिस्ट्रीब्यूशन एवं इनके द्वारा निर्मित विभिन्न टोपोग्राफिकल स्ट्रक्चर प्रभावित हो सकती हैं। इसी प्रकार बहुत सी वनस्पतियों तथा जीवों का पलायन धीरे-धीरे ध्रुवीय प्रदेशों या उच्च पर्वतीय प्रदेशों की तरफ हो सकता है।

ग्लोबल वार्मिंग पिछली शताब्दी में पृथ्वी की औसत सतह के तापमान में असामान्य रूप से तेजी से वृद्धि है, मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन जलाने वाले लोगों द्वारा जारी ग्रीनहाउस गैसों के कारण। ग्रीनहाउस गैसों में मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, ओजोन, कार्बन डाइऑक्साइड, जल वाष्प और क्लोरोफ्लोरोकार्बन शामिल हैं। हर गुजरते साल के साथ मौसम की भविष्यवाणी अधिक जटिल होती जा रही है, मौसम अधिक अप्रभेद्य होते जा रहे हैं और सामान्य तापमान गर्म होता जा रहा है। 21वीं सदी की शुरुआत के बाद से तूफान, चक्रवात, सूखा, बाढ़ आदि की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है। इन सभी परिवर्तनों के पीछे का पर्यवेक्षक ग्लोबल वार्मिंग है। नाम काफी आत्म-व्याख्यात्मक है; इसका अर्थ है पृथ्वी के तापमान में वृद्धि।

पृथ्वी को गर्मी से बचाएं क्योंकि आप इससे अपनी रक्षा करते हैं!

global warming essay in hindi

ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध लिखते समय ग्लोबल वार्मिंग और पॉइंटर को ध्यान में रखने के विचार से परिचित होने के बाद, global warming essay in hindi के सैंपल के लिए आगे पढ़ते हैं। 

ग्लोबल वार्मिंग पृथ्वी के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में वृद्धि और पिछली कुछ शताब्दियों से हमारे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली मानवीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप होता है। ग्लोबल वार्मिंग एक ऐसी चीज है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है और वैश्विक स्तर पर इस स्थिति से निपटने के लिए कदम उठाने होंगे। पिछले कुछ वर्षों से औसत तापमान में लगातार 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो रही है। भविष्य में पृथ्वी को होने वाले नुकसान को रोकने का सबसे अच्छा तरीका, अधिक वनों को काटने पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए और वनीकरण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। अपने घरों और कार्यालयों के पास पेड़ लगाकर शुरुआत करें, आयोजनों में भाग लें, पेड़ लगाने का महत्व सिखाएं। नुकसान को पूर्ववत करना असंभव है लेकिन आगे के नुकसान को रोकना संभव है।

लंबे समय से, यह देखा गया है कि पृथ्वी का बढ़ता तापमान वन्य जीवन, जानवरों, मनुष्यों और पृथ्वी पर हर जीवित जीव को प्रभावित करता था। ग्लेशियर पिघल रहे हैं, कई देशों ने पानी की कमी, बाढ़, कटाव शुरू कर दिया है और यह सब ग्लोबल वार्मिंग के कारण है। ग्लोबल वार्मिंग के लिए इंसानों को छोड़कर किसी को भी दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। बिजली संयंत्रों से निकलने वाली गैसों, परिवहन, वनों की कटाई जैसी मानवीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप पृथ्वी के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, सीएफ़सी और अन्य प्रदूषकों जैसी गैसों में वृद्धि हुई है। मुख्य सवाल यह है कि हम वर्तमान स्थिति को कैसे नियंत्रित कर सकते हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर दुनिया का निर्माण कर सकते हैं। इसकी शुरुआत प्रत्येक व्यक्ति के छोटे-छोटे कदमों से होती है।

खरीदारी के सभी उद्देश्यों के लिए टिकाऊ सामग्री से बने कपड़े के थैलों का उपयोग करना शुरू करें, उच्च वाट की रोशनी का उपयोग करने के बजाय ऊर्जा कुशल बल्बों का उपयोग करें, बिजली बंद करें, पानी बर्बाद न करें, वनों की कटाई को समाप्त करें और अधिक पेड़ लगाने को प्रोत्साहित करें। ऊर्जा के उपयोग को पेट्रोलियम या अन्य जीवाश्म ईंधन से पवन और सौर ऊर्जा में स्थानांतरित करें। पुराने कपड़ों को फेंकने के बजाय किसी को दान कर दें ताकि इसे रिसाइकिल किया जा सके। पुरानी किताबें दान करें, कागज बर्बाद न करें। सबसे बढ़कर, ग्लोबल वार्मिंग के बारे में जागरूकता फैलाएं। पृथ्वी को बचाने के लिए एक व्यक्ति जो भी छोटा-मोटा काम करता है, वह बड़ी या छोटी मात्रा में योगदान देगा।

यह महत्वपूर्ण है कि हम सीखें कि 1% प्रयास बिना किसी प्रयास के बेहतर है। प्रकृति की देखभाल करने और ग्लोबल वार्मिंग के बारे में बोलने का संकल्प लें। ऊर्जा के उपयोग को पेट्रोलियम या अन्य जीवाश्म ईंधन से पवन और सौर ऊर्जा में स्थानांतरित करें। पुराने कपड़ों को फेंकने के बजाय किसी को दान कर दें ताकि इसे रिसाइकिल किया जा सके। पुरानी किताबें दान करें, कागज बर्बाद न करें। सबसे बढ़कर, ग्लोबल वार्मिंग के बारे में जागरूकता फैलाएं। 

इस ग्रह को दर्द होता है, उसे गर्मी से मत दुखाओ।

ग्लोबल वार्मिंग भविष्यवाणी नहीं है, यह हो रहा है। इसे नकारने वाला या इससे अनजान व्यक्ति सबसे सरल शब्दों में उलझा हुआ है। क्या हमारे पास रहने के लिए कोई दूसरा ग्रह है? दुर्भाग्य से, हमें केवल यह एक ऐसा ग्रह प्रदान किया गया है जो जीवन को बनाए रख सकता है फिर भी वर्षों से हमने अपनी दुर्दशा से आंखें मूंद ली हैं। ग्लोबल वार्मिंग एक अमूर्त अवधारणा नहीं है, बल्कि एक वैश्विक घटना है जो इस समय भी इतनी धीमी गति से घटित हो रही है।

ग्लोबल वार्मिंग एक ऐसी घटना है जो हर मिनट हो रही है जिसके परिणामस्वरूप पृथ्वी की समग्र जलवायु में धीरे-धीरे वृद्धि हो रही है। वातावरण में सौर विकिरण को फंसाने वाली ग्रीनहाउस गैसों द्वारा लाया गया, ग्लोबल वार्मिंग पृथ्वी के पूरे मानचित्र को बदल सकता है, क्षेत्रों को विस्थापित कर सकता है, कई देशों में बाढ़ ला सकता है और कई जीवन रूपों को नष्ट कर सकता है। चरम मौसम ग्लोबल वार्मिंग का प्रत्यक्ष परिणाम है लेकिन यह संपूर्ण परिणाम नहीं है। ग्लोबल वार्मिंग के लगभग असीमित प्रभाव हैं जो पृथ्वी पर जीवन के लिए हानिकारक हैं।

दुनिया भर में समुद्र का स्तर प्रति वर्ष 0.12 इंच बढ़ रहा है। ऐसा ग्लोबल वार्मिंग के कारण ध्रुवीय बर्फ की टोपियों के पिघलने के कारण हो रहा है। इससे कई तराई क्षेत्रों में बाढ़ की आवृत्ति बढ़ गई है और प्रवाल भित्तियों को नुकसान पहुंचा है। आर्कटिक ग्लोबल वार्मिंग से सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्रों में से एक है। वायु की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है और समुद्री जल की अम्लता भी बढ़ गई है जिससे समुद्री जीवों को गंभीर नुकसान हुआ है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण गंभीर प्राकृतिक आपदाएं आती हैं, जिसका जीवन और संपत्ति पर गंभीर प्रभाव पड़ा है।

जब तक मानव जाति ग्रीनहाउस गैसों का उत्पादन करती है, ग्लोबल वार्मिंग में तेजी जारी रहेगी। परिणाम बहुत छोटे पैमाने पर महसूस किए जाते हैं जो निकट भविष्य में और भीषण हो जाएंगे। दिन बचाने की ताकत इंसानों के हाथ में है, जरूरत है दिन को जब्त करने की। ऊर्जा की खपत को व्यक्तिगत आधार पर कम किया जाना चाहिए। ऊर्जा स्रोतों की बर्बादी को कम करने के लिए ईंधन कुशल कारों और अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इससे वायु की गुणवत्ता में भी सुधार होगा और वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता कम होगी। ग्लोबल वार्मिंग एक ऐसी बुराई है जिसे एक साथ लड़ने पर ही हराया जा सकता है।

पहले से कहीं ज्यादा देर हो चुकी है। अगर हम सब आज कदम उठाते हैं, तो कल हमारा भविष्य बहुत उज्जवल होगा। ग्लोबल वार्मिंग हमारे अस्तित्व का अभिशाप है और इससे लड़ने के लिए दुनिया भर में विभिन्न नीतियां सामने आई हैं लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। वास्तविक अंतर तब आता है जब हम इससे लड़ने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर काम करते हैं। एक अपरिवर्तनीय गलती बनने से पहले इसके आयात को समझना अब महत्वपूर्ण है। ग्लोबल वार्मिंग को खत्म करना अत्यंत महत्वपूर्ण है और हम में से प्रत्येक इसके लिए उतना ही जिम्मेदार है जितना कि अगले।  

ग्लोबल वार्मिंग निबंध

ग्लोबल वार्मिंग के बारे में हमेशा हर जगह सुना जाता है, लेकिन क्या हम जानते हैं कि यह वास्तव में क्या है? सबसे खराब बुराई, ग्लोबल वार्मिंग एक ऐसी घटना है जो जीवन को अधिक घातक रूप से प्रभावित कर सकती है। ग्लोबल वार्मिंग से तात्पर्य विभिन्न मानवीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप पृथ्वी के तापमान में वृद्धि से है। ग्रह धीरे-धीरे गर्म हो रहा है और उस पर जीवन रूपों के अस्तित्व को खतरा है। अथक अध्ययन और शोध किए जाने के बावजूद, अधिकांश आबादी के लिए ग्लोबल वार्मिंग विज्ञान की एक अमूर्त अवधारणा है। यह वह अवधारणा है जो वर्षों से ग्लोबल वार्मिंग को एक वास्तविक वास्तविकता बनाने में परिणत हुई है, न कि किताबों में शामिल एक कॉन्सेप्ट।

ग्लोबल वार्मिंग केवल एक कारण से नहीं होती है जिस पर अंकुश लगाया जा सकता है। ऐसे कई कारक हैं जो ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनते हैं, जिनमें से अधिकांश व्यक्ति के दैनिक अस्तित्व का हिस्सा हैं। खाना पकाने, वाहनों में और अन्य पारंपरिक उपयोगों के लिए ईंधन जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन जैसी कई अन्य ग्रीनहाउस गैसों का उत्पादन होता है जो ग्लोबल वार्मिंग को तेज करता है। बड़े पैमाने पर वनों की कटाई से ग्लोबल वार्मिंग भी होती है क्योंकि कम ग्रीन कवर के परिणामस्वरूप वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की उपस्थिति बढ़ जाती है जो एक ग्रीनहाउस गैस है। 

ग्लोबल वार्मिंग का समाधान खोजना तत्काल महत्व का है। ग्लोबल वार्मिंग एक ऐसी घटना है जिससे एकजुट होकर लड़ना होगा। ग्लोबल वार्मिंग के गंभीर परिणामों को दूर करने की दिशा में अधिक से अधिक पेड़ लगाना पहला कदम हो सकता है। हरित आवरण बढ़ने से कार्बन चक्र को विनियमित किया जा सकेगा। गैर-नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग से अक्षय ऊर्जा जैसे पवन या सौर ऊर्जा में बदलाव होना चाहिए जो कम प्रदूषण का कारण बनता है और जिससे ग्लोबल वार्मिंग के त्वरण में बाधा उत्पन्न होती है। व्यक्तिगत स्तर पर ऊर्जा की जरूरतों को कम करना और किसी भी रूप में ऊर्जा बर्बाद न करना ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ उठाया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण कदम है।

हम जिस शालीनता की गहरी नींद में चले गए हैं, उससे हमें जगाने के लिए चेतावनी की घंटी बज रही है। मनुष्य प्रकृति के खिलाफ लड़ सकता है और अब समय आ गया है कि हम इसे स्वीकार करें। हमारी सभी वैज्ञानिक प्रगति और तकनीकी आविष्कारों के साथ, ग्लोबल वार्मिंग के नकारात्मक प्रभावों से लड़ना असंभव है। हमें यह याद रखना होगा कि हमें अपने पूर्वजों से पृथ्वी विरासत में नहीं मिली है, बल्कि इसे अपनी आने वाली पीढ़ी से उधार लेते हैं और जीवन के अस्तित्व के लिए उन्हें एक स्वस्थ ग्रह देने की जिम्मेदारी हमारे कंधों पर है। 

ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और दुनिया भर में प्रमुख चिंता के दो मुद्दे हैं। पृथ्वी के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, सीएफ़सी, और अन्य प्रदूषक जैसे ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनता है जिससे जलवायु परिवर्तन होता है। पृथ्वी को हानिकारक पराबैंगनी किरणों से बचाने वाली ओजोन परत में ब्लैक होल बनने लगे हैं। मानवीय गतिविधियों ने जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग को जन्म दिया है। ग्लोबल वार्मिंग में औद्योगिक कचरे और धुएं का प्रमुख योगदान है। प्रभावित करने वाला एक अन्य कारक जीवाश्म ईंधन का जलना, वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन के कारणों में से एक है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण अंटार्कटिका, ग्रीनलैंड और आर्कटिक में पर्वतीय हिमनद सिकुड़ रहे हैं और जलवायु परिवर्तन का कारण बन रहे हैं। पवन और सौर जैसे ऊर्जा स्रोतों के लिए जीवाश्म ईंधन के उपयोग से स्विच करना। कोई भी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खरीदते समय ऊर्जा बचत वाले सितारों के साथ सर्वोत्तम गुणवत्ता खरीदें। पानी बर्बाद न करें और अपने समुदाय में वर्षा जल संचयन को प्रोत्साहित करें। 

एक शब्द जिसका आज हम आम तौर पर सामना करते हैं, वह है ग्लोबल वार्मिंग। शब्द के साथ हमारा परिचय हमारी पाठ्यपुस्तकों और उन नकारात्मक परिणामों तक सीमित है जिनके बारे में हम पढ़ते हैं। लेकिन क्या ग्लोबल वार्मिंग वास्तव में एक सैद्धांतिक अवधारणा से कहीं अधिक है। ग्लोबल वार्मिंग मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों के कारण गर्मी के फंसने के कारण पृथ्वी के धीरे-धीरे गर्म होने की घटना को संदर्भित करता है। ग्लोबल वार्मिंग का एक प्रमुख परिणाम यह है कि इससे पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होगी जिससे ध्रुवीय बर्फ की टोपियों का पिघलना, चरम जलवायु और इस तरह सामान्य कामकाज में व्यवधान जैसे गंभीर नकारात्मक प्रभाव होंगे। इसके खतरे केवल कुछ पहलुओं तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि सर्वव्यापी हैं और पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व को खतरे में डाल सकते हैं। हालांकि ग्लोबल वार्मिंग के कई कारण हैं, कुछ प्रमुख कारण दूसरों की तुलना में अधिक योगदान करते हैं। ये कारक इसकी दर को तेज करते हैं:

  • मनुष्यों की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जीवाश्म ईंधन के अत्यधिक जलने से वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों का प्रतिशत कई गुना बढ़ जाता है।
  • वनों की कटाई मानवीय जरूरतों के लिए पेड़ों की अंधाधुंध कटाई है।
  • सतत कृषि और पशुपालन भी मीथेन को पढ़कर ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनता है जो एक प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है।
  • रेफ्रिजरेटर और एसी जैसे उपकरणों में इस्तेमाल होने वाले क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) जैसे विभिन्न रसायनों के परिणामस्वरूप भी काफी हद तक ग्लोबल वार्मिंग होती है।

एक प्रभावी निबंध लिखने के लिए ऐसे कौशल की आवश्यकता होती है जो बहुत कम लोगों के पास हो और उससे भी कम लोग जानते हों कि इसे कैसे लागू किया जाए। एक निबंध लिखते समय एक कठिन काम हो सकता है जो कई बार परेशान करने वाला हो सकता है, एक सफल निबंध का मसौदा तैयार करने के लिए कुछ प्रमुख बिंदुओं को शामिल किया जा सकता है। इनमें निबंध की संरचना पर ध्यान केंद्रित करना, इसकी अच्छी तरह से योजना बनाना और महत्वपूर्ण विवरणों पर जोर देना शामिल है। नीचे कुछ संकेत दिए गए हैं जो आपको बेहतर संरचना और अधिक विचारशील निबंध लिखने में मदद कर सकते हैं जो आपके पाठकों तक पहुंचेंगे:

  • निरंतरता और प्रासंगिकता सुनिश्चित करने के लिए निबंध की रूपरेखा तैयार करें और निबंध की संरचना में कोई व्यवधान न हो।
  • एक थीसिस स्टेटमेंट पर निर्णय लें जो आपके निबंध का आधार बनेगी। यह आपके निबंध का बिंदु होगा और पाठकों को आपके विवाद को समझने में मदद करेगा।
  • परिचय की संरचना, एक विस्तृत निकाय और उसके बाद निष्कर्ष का पालन करें ताकि पाठक बिना किसी असंगति के निबंध को एक विशेष तरीके से समझ सकें।
  • निबंध को व्यावहारिक और पढ़ने के लिए आकर्षक बनाने के लिए अपनी शुरुआत को आकर्षक बनाएं और अपने निष्कर्ष में समाधान शामिल करें।
  • इसे प्रकाशित करने से पहले इसे फिर से पढ़ें और निबंध को और अधिक व्यक्तिगत और पाठकों के लिए अद्वितीय और दिलचस्प बनाने के लिए उसमें अपनी प्रतिभा जोड़ें।  

वर्तमान में मानवीय गतिविधियों के कारण उत्पन्न ग्रीनहाउस गैसों के प्रभावस्वरूप पृथ्वी के दीर्घकालिक औसत तापमान में हुई वृद्धि को  वैश्विक  तापन/ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है ।

ग्लोबल वार्मिंग  या वैश्विक तापमान बढ़ने का मतलब है कि पृथ्वी लगातार गर्म होती जा रही है. विज्ञानिकों का कहना है कि आने वाले दिनों में सूखा बढ़ेगा, बाढ़ की घटनाएँ बढ़ेंगी और मौसम का मिज़ाज बुरी तरह बिगड़ा हुआ दिखेगा. इसका असर दिखने भी लगा है. ग्लेशियर पिघल रहे  हैं  और रेगिस्तान पसरते जा रहे  हैं .

वर्ल्ड मिटियोरॉलॉजिकल ऑर्गेनाइज़ेशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन और नाइट्रस ऑक्साइड की मात्रा औद्योगिक युग की शुरुआत के बाद से सबसे ज़्यादा है. इन गैसों से ही  ग्लोबल वार्मिंग  होती है.

हमें उम्मीद है कि इस ब्लॉग से आपको ग्लोबल वार्मिंग से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त हुई होगी। इसी और अन्य तरह के ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहिए।

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रश्मि पटेल विविध एजुकेशनल बैकग्राउंड रखने वाली एक पैशनेट राइटर और एडिटर हैं। उनके पास Diploma in Computer Science और BA in Public Administration and Sociology की डिग्री है, जिसका ज्ञान उन्हें UPSC व अन्य ब्लॉग लिखने और एडिट करने में मदद करता है। वर्तमान में, वह हिंदी साहित्य में अपनी दूसरी बैचलर की डिग्री हासिल कर रही हैं, जो भाषा और इसकी समृद्ध साहित्यिक परंपरा के प्रति उनके प्रेम से प्रेरित है। लीवरेज एडु में एडिटर के रूप में 2 साल से ज़्यादा अनुभव के साथ, रश्मि ने छात्रों को मूल्यवान मार्गदर्शन प्रदान करने में अपनी स्किल्स को निखारा है। उन्होंने छात्रों के प्रश्नों को संबोधित करते हुए 1000 से अधिक ब्लॉग लिखे हैं और 2000 से अधिक ब्लॉग को एडिट किया है। रश्मि ने कक्षा 1 से ले कर PhD विद्यार्थियों तक के लिए ब्लॉग लिखे हैं जिन में उन्होंने कोर्स चयन से ले कर एग्जाम प्रिपरेशन, कॉलेज सिलेक्शन, छात्र जीवन से जुड़े मुद्दे, एजुकेशन लोन्स और अन्य कई मुद्दों पर बात की है। Leverage Edu पर उनके ब्लॉग 50 लाख से भी ज़्यादा बार पढ़े जा चुके हैं। रश्मि को नए SEO टूल की खोज व उनका उपयोग करने और लेटेस्ट ट्रेंड्स के साथ अपडेट रहने में गहरी रुचि है। लेखन और संगठन के अलावा, रश्मि पटेल की प्राथमिक रुचि किताबें पढ़ना, कविता लिखना, शब्दों की सुंदरता की सराहना करना है।

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ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध (Essay On Global Warming In Hindi)

Essay On Global Warming In Hindi

In this Article

ग्लोबल वार्मिंग पर 10 लाइन का निबंध (10 Lines On Global Warming In Hindi)

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दुनिया भर में कई ऐसी गंभीर समस्याएं बढ़ती जा रही हैं, जिनसे मानव जीवन पर बुरा असर पड़ रहा है। प्रदूषण, वनों की कटाई आदि हमारी धरती को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं। लेकिन इन सब में सबसे गंभीर स्थिति ग्लोबल वार्मिंग की है। इस नाम से ही इससे संबंधित समस्या का अंदाजा आप सभी को जरूर हो गया होगा। हमारी धरती की सतह पर लगातार बढ़ रहे तापमान को ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है। यह समस्या इंसानों की लापरवाही से बढ़ती जा रही है क्योंकि हम अपनी सुविधाओं के लिए कई ऐसी चीजों का उपयोग कर रहे हैं जिनसे प्रदूषण बढ़ रहा है और प्रदूषण ही ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण है। यह समस्या धरती के लिए खतरा बनती जा रही है और इसका समाधान निकालना अनिवार्य हो गया है। कई बार मनुष्य अपने मतलब के लिए पर्यावरण को हानि पहुंचाने से पीछे नहीं हटता और समस्या को अनदेखा कर देता है। ग्लोबल वार्मिंग ज्यादातर ग्रीन हाउस गैसें जैसे सीओ2, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, आदि की वजह से बढ़ता है साथ ही जब पृथ्वी पर पानी अधिक मात्रा में भाप का रूप ले लेता है तो वह यहाँ का तापमान बढ़ाता है और यह भी इसका एक कारण है। ऐसी और भी कई गंभीर स्थितियां मौजूद हैं, जो इंसानों की वजह से उत्पन्न होती हैं। इस लेख में ग्लोबल वार्मिंग का वर्णन निबंध के रूप में किया गया और इसके प्रक्रोप अथवा समाधानों के बारे में भी बताया गया है। अगर आपके बच्चे को स्कूल में इस विषय पर निबंध लिखने को कहा गया है तो यहाँ दिए गए सैंपल निबंध आपके काम आएंगे।

ग्लोबल वार्मिंग का खतरा धरती पर तेजी से बढ़ता जा रहा है और यदि सही वक्त पर इसका समाधान नहीं निकाला गया तो हमारी आने वाली पीढ़ियों का जीवन खतरे में पड़ जाएगा। यहाँ इस पर 10 लाइन के एक निबंध का प्रारूप है जिससे 100 शब्दों में एक छोटा निबंध भी लिखा जा सकता है।

  • ग्लोबल वार्मिंग का मतलब धरती के तापमान में जरूरत से अधिक वृद्धि होना है।
  • ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण ग्रीनहाउस गैसों को माना जाता है।
  • कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी गैसें इसे बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  • सीओ2 जैसी गैस का उत्पादन करने वाली इंडस्ट्री ग्लोबल वार्मिंग बढ़ा रही हैं।
  • 1880 के बाद से हर साल, औसत वैश्विक तापमान में लगभग 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है।
  • जंगलों में पेड़ों की कटाई ग्लोबल वार्मिंग में भूमिका निभाती है।
  • ग्लोबल वार्मिंग की समस्या की वजह से मौसम में कई बदलाव होते हैं।
  • धरती के बढ़ते तापमान की वजह से ग्लेशियर पिघल रहें और और समुद्र का स्तर बढ़ रहा है।
  • इसके कारण मानसून में परिवर्तन आता है और मौसम में गड़बड़ी होती है।
  • ओजोन की परत भी घटती जा रही है, जो हमें सूर्य की हानिकारक किरणों से बचाती है।

यदि आपका बच्चा छोटा है और उसे ग्लोबल वार्मिंग के बारे में नहीं पता है तो हमारे द्वारा लिखे गए शॉर्ट एस्से उसे पढ़ाएं ताकि उसे कम और सही शब्दों में विषय की जानकारी हो और एक छोटा और बेहतरीन निबंध लिखने के लिए वह इसे याद भी कर सकता है।

इन दिनों ग्लोबल वार्मिंग ने एक गंभीर समस्या का रूप ले लिया है और यह समस्या हर दिन बढ़ती जा रही है। वातावरण में जब हानिकारक गैसों की वृद्धि अधिक हो जाती है तो वह धरती की ऊपरी सतह में समा जाती हैं जिसके कारण धरती का तापमान अधिक हो जाता है और इस समस्या को ग्लोबल वार्मिंग का नाम दिया गया है। इस समस्या का मुख्य कारण ग्रीन हॉउस गैसें जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन आदि का बहुत ज्यादा मात्रा में होने वाला उत्सर्जन है। इन गैसों के प्रक्रोप से धरती को बहुत नुकसान झेलना पड़ रहा है। लेकिन मनुष्य इस समस्या को उत्पन्न करने में अहम भूमिका निभाता है। मनुष्यों की लापरवाही से ही धरती में प्रदूषण बढ़ रहा है और प्रदूषण भी ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा देता है। यह समस्या किसी एक देश की नहीं है बल्कि पूरे विश्व में फैली है। देशों में औद्योगीकरण और विकास के लिए कई कारखाने, इंडस्ट्रीज स्थापित हो रहे हैं, लेकिन इनसे निकलने वाले हानिकारक पदार्थ, रसायन, धुआं, प्लास्टिक आदि प्रकृति को प्रभावित कर रहे हैं। जिसकी वजह से ग्लोबल वार्मिंग की समस्या काफी गंभीर रूप ले चुकी है। सूरज से आने वाली अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाव करने वाली ओजोन लेयर में भी छेद हो रहा है, जो काफी खतरनाक साबित हो सकता है। धरती पर गर्मी बढ़ती जा रही है, जिसकी वजह से मौसम पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। गर्मी बढ़ती जा रही है और ठंड में कमी आ गई है। इस गर्मी की वजह से कई ग्लेशियर पिघल रहे हैं और इनका पानी समुद्र में समा रहा। ऐसे में समुद्र का स्तर बढ़ रहा है और खतरा भी। यदि ग्लोबल वार्मिंग इसी तरह बढ़ता रहा तो वह समय दूर नहीं होगा जब धरती की मौजूदगी खतरे में पड़ जाएगी। इसलिए हमें अभी से ही लोगों को इसके प्रति जागरूक करना होगा और सरकार को भी कई ऐसी योजनाओं का आयोजन करना जिनमें इस समस्या की गंभीरता के बारे में विस्तार से बताया जाए ताकि देश के लोग इसे रोकने के लिए जरूरी कदम उठाएं।

Short Essay on Global Warming in Hindi

प्रकृति ने मनुष्य को बहुत कुछ दिया है और अगर हम प्रकति के साथ छेड़छाड़ करेंगे तो उसका बुरा परिणाम हमें ही भुगतना पड़ेगा। यही हाल ग्लोबल वार्मिंग के कारण हो रहा है। यदि आपके बच्चे को ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या के बारे में जानकारी चाहिए या फिर वह इस पर निबंध लिखना चाहता है तो नीचे लिखे 400-600 शब्दों में सीमित निबंध की मदद ले सकता है।

ग्लोबल वार्मिंग क्या है? (What Is Global Warming?)

जब धरती के वातावरण में मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड और क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन आदि ग्रीन हाउस गैसों का प्रक्रोप अधिक होने लगे और जिसकी वजह से तापमान में वृद्धि हो तो इस समस्या को ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है। आज के समय में इंसान कई नई तकनीकों का इस्तेमाल देश के विकास के लिए कर रहा है। लेकिन इन विकसित कार्यों की वजह से मनुष्य हमारे पर्यावरण को लगातार हानि पहुंचा रहा है। इन समस्याओं की वजह से हमारी प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है और कई बुरे प्रभाव देखने को मिल रहे हैं। जैसे अधिक तापमान बढ़ना, मौसम में बदलाव आना, ग्लेशियर पिघलना आदि। इनकी वजह से आने वाले समय में लोगों को पानी की किल्लत अधिक हो सकती है। ग्लोबल वार्मिंग की समस्या सिर्फ एक देश की नहीं बल्कि पूरी दुनिया का प्रमुख समस्या बनी हुई है और इसको बढ़ाने के पीछे मनुष्य का हाथ है। अगर समय रहते इस समस्या को नियंत्रित नहीं किया गया तो इंसानों के साथ-साथ पृथ्वी पर रहने वाली सभी जीवों को जान का खतरा हो सकता है।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण (Reason of Global Warming)

हमारा वातावरण में कई कारणों की वजह से प्रदूषित हो रहा है लेकिन ग्लोबल वार्मिंग एक अहम समस्या बन गई है और इसके पीछे कुछ महत्वपूर्ण कारण मौजूद हैं –

प्रदूषण – धरती पर प्रदूषण दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा और जिसकी वजह से तापमान में वृद्धि हो रही है। तापमान में वृद्धि होना ग्लोबल वार्मिंग की समस्या का प्रभाव अधिक बढ़ाता है। वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, जल प्रदूषण तथा भूमि प्रदूषण ये सभी कहीं न कहीं हमारी पृथ्वी को नुकसान पहुंचा रहे हैं। लेकिन इनसे निकलने वाली खतरनाक गैसें धरती के ऊपरी स्तर या वायुमंडल को प्रभावित कर रही हैं, जिनकी वजह से तापमान में उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है ।

ग्रीन हॉउस गैस – यह साफ है कि ग्रीन हॉउस गैसों के कारण ही ग्लोबल वार्मिंग जैसी खतरनाक समस्या बढ़ रही है। ये गैसें सूर्य से आने वाली गर्मी को अपने अंदर समा लेती हैं। इन सभी गैसों में सबसे खतरनाक सीओ2 गैस है और यदि यह गैस बाकी अन्य जैसे क्लोरीन, नाइट्रोजन ऑक्साइड, मीथेन गैसों से मिलती हैं तो यह हमारी धरती की ऊपरी सतह के रेडियोएक्टिव संतुलन को बिगाड़ते हैं क्योंकि इनमें गर्मी को सोखने की क्षमता अधिक होती है जिसकी वजह से धरती का तापमान बढ़ जाता है।

बढ़ती आबादी – विश्व में बढ़ने वाली आबादी भी इसका अहम कारण है। क्योंकि सीओ2 जैसी गैस मनुष्य ऑक्सीजन लेते वक्त बाहर छोड़ता है, जिसकी वजह से वातावरण में इसकी मात्रा अधिक हो जाती है। इसी कारण ग्लोबल वार्मिंग समस्या बढ़ने लगती है।

जंगलों की कटाई – यह ज्सबको पता है कि इंसान विकास के नाम पर जंगलों की कटाई कर रहा है और प्रकृति को हानि पहुंचा रहा है। हमारे वातावरण का संतुलन बनाए रखने के लिए पेड़ अहम भूमिका निभाते हैं लेकिन इनके कटने से धरती पर गर्मी बढ़ती जा रही है और ग्लेशियर पिघलकर का समुद्र स्तर बढ़ा रहे हैं। जिसके परिणाम स्वरूप कई देश पानी में डूब सकते हैं या फिर इससे काफी तबाही मच सकती है।

औद्योगिक विकास – शहरों के विकास के लिए मानव कई इंडस्ट्रीज और कारखानों का उपयोग कर रहा है। इन्हीं कारखानों से निकलने वाले हानिकारक रसायन, जहरीले पदार्थ, गंदा धुआं और प्लास्टिक आदि पृथ्वी को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

ओजोन लेयर का घटना – अंटाकर्टिका में ओजोन की परत घटती जा रही है जो कि ग्लोबल वार्मिंग का अहम संकेत माना गया है और यह क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैस के बढ़ जाने की वजह से हो रहा है। यह समस्या भी इंसानों की देन है क्योंकि इंडस्ट्रीज से लेकर घर तक क्लोरो फ्लोरो कार्बन का नियमित उपयोग किया जा रहा है, जिससे की ओजोन को बहुत नुकसान हो रहा है।

ग्लोबल वार्मिंग के परिणाम (Consequences Of Global Warming)

पूरे विश्व में ग्लोबल वार्मिंग एक गंभीर समस्या बन गयी है जिसकी वजह से हमारी प्रकृति को कई तरह से अनचाहे बदलावों से गुजरना पड़ रहा है। कई ऐसी प्राकृतिक घटनाएं है, जैसे बाढ़, सूखा, तूफान आदि जो पृथ्वी का भयंकर नुकसान पहुंचा रहे हैं। सिर्फ इतना ही नहीं ग्लोबल वार्मिंग की वजह धरती के लिए सबसे जरूरी ओजोन की परत भी घटती जा रही है। ओजोन लेयर सूरज से आने वाली हानिकारक अल्ट्रावायलेट किरणों से धरती को बचाता है। लेकिन अब इसमें छेद होने लगे हैं और यदि यह समस्या ऐसे ही बढ़ती गई तो धरती में मनुष्य के साथ किसी भी अन्य जीवों का गुजारा नामुमकिन है। सूरज से आने वाली ये किरणें बेहद हानिकारक होती हैं। सिर्फ इतना ही नहीं इन दिनों ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम में भी कई तरह के बदलाव देखने को मिल रहे हैं। धरती पर गर्मी बढ़ती जा रही है और सर्दी का समय कम होता जा रहा है। बढ़ती गर्मी की वजह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं और उसका पानी समुद्र में जा रहा है जिसकी वजह से समुद्र का स्तर बढ़ रहा है जो कि खतरनाक स्थिति पैदा कर सकता है।

ग्लोबल वार्मिंग रोकने के उपाय (Ways To Prevent Global Warming)

इस समस्या को रोकने के कई उपाय दिए गए हैं जिनका पालन करने से इसमें कमी आ सकती है –

  • हमें लोगों को इस समस्या के लिए जागरूक करना होगा ताकि वह इसकी गंभीरता को समझ सकें।
  • सरकार को ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या के लिए कई योजनाएं बनानी चाहिए जिससे लोगों को इसके दुष्परिणामों की जानकारी हो।
  • जो वस्तु ग्रीन हाउस गैसें का उत्पादन अधिक करती हैं, उनका उपयोग कम करना चाहिए।
  • खुद के निजी वाहन का उपयोग कम कर के सार्वजनिक वाहनों का उपयोग बढ़ा दें।
  • जंगलों को नहीं काटना चाहिए बल्कि जितना हो सके अधिक पेड़-पौधे लगाएं।
  • एयर कंडीशनर का उपयोग जरूरत भर के लिए ही करें।
  • देश की आबादी को नियंत्रित करना जरूरी है।
  • प्लास्टिक की थैलियों की वजह कपड़े के थैले इस्तेमाल करें।
  • गैसोलीन का इस्तेमाल कम से कम करें।

ग्लोबल वार्मिंग के बारे में रोचक तथ्य (Interesting Facts about Global Warming in Hindi)

  • आईपीसीसी 2007 की एक रिपोर्ट के हिसाब से ग्लोबल वार्मिंग के कारण इस सदी के आखिर तक समुद्र का स्तर 7-23 इंच बढ़ जाएगा।
  • एक स्टडी के अनुसार, 20वीं सदी के आखिर के दो दशक पिछले 400 सालों में सबसे गर्म रहे हैं।
  • ग्लोबल वार्मिंग के कारण आर्कटिक की बर्फ तेजी से पिघल रही है और ऐसा अनुमान है कि 2040 तक यहाँ पूरी बर्फ पिघल जाएगी।
  • ग्लोबल वार्मिंग के कारण के कारण विश्व भर में जंगल की आग, लू और भयंकर तूफानों के प्रभाव बढ़ गए हैं।
  • मनुष्य अपनी रोज की गतिविधियों के कारण साल में लगभग 37 बिलियन मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड निकाल रहा है।
  • इसके कारण दुनिया की ठंडी जगहें गर्म हो रही हैं, जिससे बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है।

धरती मनुष्यों के लिए बहुत खूबसूरत तोहफा है और इसको संभालकर रखना भी उनकी ही जिम्मेदारी है। ऐसे में ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को ध्यान में रखते हुए इस निबंध को लिखा गया है ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी हमारे पर्यावरण के खतरों को समझे और इसकी देखभाल और कदर कर सकें। इस निबंध से बच्चों में जागरूकता फैलेगी और वे आगे आने वाले समय में परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए धरती को कम से कम नुकसान पहुंचाने का प्रयास करेंगे।

1. ग्लोबल वार्मिंग की वर्तमान दर क्या है?

पिछले 5 दशकों में वैश्विक तापमान में औसत वृद्धि 1.2 डिग्री सेल्सियस से अधिक है।

2. पृथ्वी का सबसे गर्म दशक कौन सा रहा है ?

पृथ्वी का सबसे गर्म दशक 2000-2009 तक रहा है।

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हिन्दी निबंध : जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारण

climate change par essay in hindi

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WMO: जलवायु संकट से निपटने के लिए लेना होगा, उपग्रहों एवं कृत्रिम बुद्धिमत्ता का सहारा

अंतरिक्ष-आधारित अवलोकन और एआई मॉडलिंग, पूर्वानुमान का विज्ञान बदल रहे हैं. ख़ासतौर पर यह दक्षिण सूडान जैसे, मौसम सम्बन्धी जोखिमों से ख़ुद को बचाने में अक्षम देशों के लिए एक सम्भावित गेमचेंजर साबित हो सकते हैं.

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संयुक्त राष्ट्र मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने इस बात पर बल दिया कि नई तकनीकों व कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के ज़रिए, ज़रूरी कार्रवाई लागू करके, अस्तित्व के इस संकट से निपटा जा सकता है. यह बात इस सदी में वैश्विक तापमान के पूर्व-औद्योगिक स्तर से 3 सेंटीग्रेड ऊपर पहुँचने की प्रमुख जलवायु वैज्ञानिकों की नवीन चेतावनियों के बीच कही गई है. 

WMO  की महासचिव सेलेस्टे साउलो ने बुधवार को कहा है, “विज्ञान बहुत स्पष्ट है: हम वैश्विक जलवायु लक्ष्य हासिल करने से बहुत दूर हैं. 2023 बड़े अन्तर से रिकॉर्ड पर दर्ज सबसे गर्म वर्ष था. विश्वसनीय अन्तरराष्ट्रीय आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2024 के पहले आठ महीने भी, रिकॉर्ड में दर्ज सबसे गर्म महीने रहे हैं.

उन्होनें सतत विकास, जलवायु कार्रवाई व आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए “तात्कालिक एवं महत्वाकाँक्षी कार्रवाई” की अपील करते हुए कहा कि "हम जो निर्णय आज लेगें, वो भविष्य में विघटन या बेहतर विश्व के निर्माण का मार्ग तय करेंगे.”

सेलेस्टे साउलो ने, संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से तैयार की गई, ‘ यूनाइटेड इन साइंस ’ की नवीनतम रिपोर्ट के कठोर आकलन को दोहराते हुए कहा कि रिकॉर्ड स्तर पर ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता से, वैश्विक तापमान वृद्धि तेज़ होगी. चरम मौसम "हमारे जीवन एवं अर्थव्यवस्थाओं पर कहर बरपा रहा है."

उनकी यह टिप्पणी, लातीनी अमेरिका और पुर्तगाल में जंगलों में लगी घातक आग, तथा मध्य योरोप में तूफ़ान बोरिस से जुड़ी उस विनाशकारी बाढ़ की पृष्ठभूमि में आई है, जिससे ऑस्ट्रिया, चैक गणराज्य, हंगरी, पोलैंड, रोमानिया तथा स्लोवाकिया के कुछ भाग जलमग्न हो गए हैं.

न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में होने वाले भविष्य के शिखर सम्मेलन के बीच, WMO प्रमुख ने वैश्विक कार्रवाई का आहवान दोहराया. 

उन्होंने देशों के विकास, आपदा के प्रति उनकी संवेदनशीलता घटाने में मदद करने व जलवायु अनुकूलन हेतु, प्राकृतिक एवं सामाजिक विज्ञान, तथा नई तकनीक एवं नवाचार की अनछुई क्षमता को आज़माने पर ज़ोर दिया. 

डिजिटल लाभ, एक वास्तविकता 

उन्होंने कहा कि एआई और मशीन लर्निंग के ज़रिए, पहले से ही मौसम पूर्वानुमान के विज्ञान में "तेज़, किफ़ायती व सुलभ" क्रान्ति आ रही है. 

उन्होंने कहा कि अत्याधुनिक उपग्रह प्रौद्योगिकियाँ एवं वर्चुअल रिएलिटी सिमुलेशन, अब भूमि और जल प्रबंधन जैसे उन प्रमुख क्षेत्रों में "नई सीमाएँ दर्शा रहे हैं" जो पहले से ही जलवायु परिवर्तन व ख़तरनाक मौसम से जोखिम में हैं.

जलवायु विज्ञान में उपग्रह प्रौद्योगिकी के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, सेलेस्टे साउलो ने कहा कि अंतरिक्ष-आधारित पृथ्वी अवलोकन में नवाचारों से, ग्रीनहाउस गैस स्रोतों व कार्बन अवशोषण की निगरानी में सुधार लाया जा सकता है.

WMO महासचिव ने, एक भौतिक वस्तु की आभासी प्रतिकृति निर्मित करने वाली "डिजिटल ट्विन" और वर्चुअल रिएलिटी जैसी नई प्रौद्योगिकियों की क्षमता को भी रेखांकित किया. 

ये सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने तथा आपदा की तैयारी बढ़ाने में मदद करने के लिए, इमर्सिव सिम्युलेटेड वातावरण प्रदान करती हैं.

सेलेस्टे साउलो ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के समाधान  के लिए केवल प्रौद्योगिकी का उपयोग पर्याप्त नहीं होगा. 

उन्होंने सभी देशों से, 22-23 सितम्बर को न्यूयॉर्क में होने वाले भविष्य के शिखर सम्मेलन के दौरान, अपनी विशेषज्ञता एवं अनुभव साझा करने का आग्रह किया, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि “अगर हमें वैश्विक लक्ष्य हासिल करने हैं, तो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के लाभ सभी को सुलभ हों.”

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जलवायु परिवर्तन-एक वैश्विक चुनौती

  • 30 Sep 2019
  • 19 min read
  • सामान्य अध्ययन-III
  • जलवायु परिवर्तन
  • पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट
  • पर्यावरण संरक्षण

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में जलवायु परिवर्तन की चुनौती पर चर्चा की गई है। साथ ही इससे निपटने के प्रयासों का भी उल्लेख किया गया है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

विश्व भर में जलवायु परिवर्तन का विषय सर्वविदित है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि वर्तमान में जलवायु परिवर्तन वैश्विक समाज के समक्ष मौजूद सबसे बड़ी चुनौती है एवं इससे निपटना वर्तमान समय की बड़ी आवश्यकता बन गई है। आँकड़े दर्शाते हैं कि 19वीं सदी के अंत से अब तक पृथ्वी की सतह का औसत तापमान लगभग 1.62 डिग्री फॉरनहाइट (अर्थात् लगभग 0.9 डिग्री सेल्सियस) बढ़ गया है। इसके अतिरिक्त पिछली सदी से अब तक समुद्र के जल स्तर में भी लगभग 8 इंच की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। आँकड़े स्पष्ट करते हैं कि यह समय जलवायु परिवर्तन की दिशा में गंभीरता से विचार करने का है।

क्या है जलवायु परिवर्तन?

  • जलवायु परिवर्तन को समझने से पूर्व यह समझ लेना आवश्यक है कि जलवायु क्या होता है? सामान्यतः जलवायु का आशय किसी दिये गए क्षेत्र में लंबे समय तक औसत मौसम से होता है।
  • अतः जब किसी क्षेत्र विशेष के औसत मौसम में परिवर्तन आता है तो उसे जलवायु परिवर्तन (Climate Change) कहते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन को किसी एक स्थान विशेष में भी महसूस किया जा सकता है एवं संपूर्ण विश्व में भी। यदि वर्तमान संदर्भ में बात करें तो यह इसका प्रभाव लगभग संपूर्ण विश्व में देखने को मिल रहा है।
  • पृथ्वी के समग्र इतिहास में यहाँ की जलवायु कई बार परिवर्तित हुई है एवं जलवायु परिवर्तन की अनेक घटनाएँ सामने आई हैं।
  • पृथ्वी का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक बताते हैं कि पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है। पृथ्वी का तापमान बीते 100 वर्षों में 1 डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ गया है। पृथ्वी के तापमान में यह परिवर्तन संख्या की दृष्टि से काफी कम हो सकता है, परंतु इस प्रकार के किसी भी परिवर्तन का मानव जाति पर बड़ा असर हो सकता है।
  • जलवायु परिवर्तन के कुछ प्रभावों को वर्तमान में भी महसूस किया जा सकता है। पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होने से हिमनद पिघल रहे हैं और महासागरों का जल स्तर बढ़ता जा रहा, परिणामस्वरूप प्राकृतिक आपदाओं और कुछ द्वीपों के डूबने का खतरा भी बढ़ गया है।

जलवायु परिवर्तन के कारण

ग्रीनहाउस गैसें:.

  • पृथ्वी के चारों ओर ग्रीनहाउस गैस की एक परत बनी हुई है, इस परत में मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें शामिल हैं।
  • ग्रीनहाउस गैसों की यह परत पृथ्वी की सतह पर तापमान संतुलन को बनाए रखने में आवश्यक है और विश्लेषकों के अनुसार, यदि यह परत नहीं होगी तो पृथ्वी का तापमान काफी कम हो जाएगा।
  • आधुनिक युग में जैसे-जैसे मानवीय गतिविधियाँ बढ़ रही हैं, वैसे-वैसे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भी वृद्धि हो रही है और जिसके कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है।
  • कार्बन डाइऑक्साइड - इसे सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैस माना जाता है और यह प्राकृतिक व मानवीय दोनों ही कारणों से उत्सर्जित होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार, कार्बन डाइऑक्साइड का सबसे अधिक उत्सर्जन ऊर्जा हेतु जीवाश्म ईंधन को जलाने से होता है। आँकड़े बताते हैं कि औद्योगिक क्रांति के पश्चात् वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली है।
  • मीथेन - जैव पदार्थों का अपघटन मीथेन का एक बड़ा स्रोत है। उल्लेखनीय है कि मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड से अधिक प्रभावी ग्रीनहाउस गैस है, परंतु वातावरण में इसकी मात्रा कार्बन डाइऑक्साइड की अपेक्षा कम है।
  • क्लोरोफ्लोरोकार्बन - इसका प्रयोग मुख्यतः रेफ्रिजरेंट और एयर कंडीशनर आदि में किया जाता है एवं ओज़ोन परत पर इसका काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

भूमि के उपयोग में परिवर्तन

  • वाणिज्यिक या निजी प्रयोग हेतु वनों की कटाई भी जलवायु परिवर्तन का बड़ा कारक है। पेड़ न सिर्फ हमें फल और छाया देते हैं, बल्कि ये वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड जैसी महत्त्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैस को अवशोषित भी करते हैं। वर्तमान समय में जिस तरह से वृक्षों की कटाई की जा रही हैं वह काफी चिंतनीय है, क्योंकि पेड़ वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने वाले प्राकृतिक यंत्र के रूप में कार्य करते हैं और उनकी समाप्ति के साथ हम वह प्राकृतिक यंत्र भी खो देंगे।
  • कुछ देशों जैसे- ब्राज़ील और इंडोनेशिया में निर्वनीकरण ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का सबसे प्रमुख कारण है।
  • शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण लोगों के जीवन जीने के तौर-तरीकों में काफी परिवर्तन आया है। विश्व भर की सड़कों पर वाहनों की संख्या काफी अधिक हो गई है। जीवन शैली में परिवर्तन ने खतरनाक गैसों के उत्सर्जन में काफी अधिक योगदान दिया है।

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव

उच्च तापमान.

पावर प्लांट, ऑटोमोबाइल, वनों की कटाई और अन्य स्रोतों से होने वाला ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन पृथ्वी को अपेक्षाकृत काफी तेज़ी से गर्म कर रहा है। पिछले 150 वर्षों में वैश्विक औसत तापमान लगातार बढ़ रहा है और वर्ष 2016 को सबसे गर्म वर्ष के रूप में रिकॉर्ड किया गया है। गर्मी से संबंधित मौतों और बीमारियों, बढ़ते समुद्र स्तर, तूफान की तीव्रता में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के कई अन्य खतरनाक परिणामों में वृद्धि के लिये बढ़े हुए तापमान को भी एक कारण माना जा सकता है। एक शोध में पाया गया है कि यदि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के विषय को गंभीरता से नहीं लिया गया और इसे कम करने के प्रयास नहीं किये गए तो सदी के अंत तक पृथ्वी की सतह का औसत तापमान 3 से 10 डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ सकता है।

वर्षा के पैटर्न में बदलाव

पिछले कुछ दशकों में बाढ़, सूखा और बारिश आदि की अनियमितता काफी बढ़ गई है। यह सभी जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप ही हो रहा है। कुछ स्थानों पर बहुत अधिक वर्षा हो रही है, जबकि कुछ स्थानों पर पानी की कमी से सूखे की संभावना बन गई है।

समुद्र जल के स्तर में वृद्धि

वैश्विक स्तर पर ग्लोबल वार्मिंग के दौरान ग्लेशियर पिघल जाते हैं और समुद्र का जल स्तर ऊपर उठता है जिसके प्रभाव से समुद्र के आस-पास के द्वीपों के डूबने का खतरा भी बढ़ जाता है। मालदीव जैसे छोटे द्वीपीय देशों में रहने वाले लोग पहले से ही वैकल्पिक स्थलों की तलाश में हैं।

वन्यजीव प्रजाति का नुकसान

तापमान में वृद्धि और वनस्पति पैटर्न में बदलाव ने कुछ पक्षी प्रजातियों को विलुप्त होने के लिये मजबूर कर दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार, पृथ्वी की एक-चौथाई प्रजातियाँ वर्ष 2050 तक विलुप्त हो सकती हैं। वर्ष 2008 में ध्रुवीय भालू को उन जानवरों की सूची में जोड़ा गया था जो समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण विलुप्त हो सकते थे।

रोगों का प्रसार और आर्थिक नुकसान

जानकारों ने अनुमान लगाया है कि भविष्य में जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियाँ और अधिक बढ़ेंगी तथा इन्हें नियंत्रित करना मुश्किल होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आँकड़ों के अनुसार, पिछले दशक से अब तक हीट वेव्स (Heat waves) के कारण लगभग 150,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है।

जंगलों में आग

जलवायु परिवर्तन के कारण लंबे समय तक चलने वाली हीट वेव्स ने जंगलों में लगने वाली आग के लिये उपयुक्त गर्म और शुष्क परिस्थितियाँ पैदा की हैं। ब्राज़ील स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस रिसर्च (National Institute for Space Research-INPE) के आँकड़ों के मुताबिक, जनवरी 2019 से अब तक ब्राज़ील के अमेज़न वन (Amazon Forests) कुल 74,155 बार वनाग्नि का सामना कर चुके हैं। साथ ही यह भी सामने आया है कि अमेज़न वन में आग लगने की घटना बीते वर्ष (2018) से 85 प्रतिशत तक बढ़ गई हैं।

जलवायु परिवर्तन और खाद्य सुरक्षा:

  • जलवायु परिवर्तन के कारण फसल की पैदावार कम होने से खाद्यान्न समस्या उत्पन्न हो सकती है, साथ ही भूमि निम्नीकरण जैसी समस्याएँ भी सामने आ सकती हैं।
  • एशिया और अफ्रीका पहले से ही आयातित खाद्य पदार्थों पर निर्भर हैं। ये क्षेत्र तेज़ी से बढ़ते तापमान के कारण सूखे की चपेट में आ सकते हैं।
  • IPCC की रिपोर्ट के अनुसार, कम ऊँचाई वाले क्षेत्रों में गेहूँ और मकई जैसी फसलों की पैदावार में पहले से ही गिरावट देखी जा रही है।
  • वातावरण में कार्बन की मात्रा बढ़ने से फसलों की पोषण गुणवत्ता में कमी आ रही है। उदाहरण के लिये उच्च कार्बन वातावरण के कारण गेहूँ की पौष्टिकता में प्रोटीन का 6% से 13%, जस्ते का 4% से 7% और लोहे का 5% से 8% तक की कमी आ रही है।
  • यूरोप में गर्मी की लहर की वजह से फसल की पैदावार गिर रही है।
  • ब्लूमबर्ग एग्रीकल्चर स्पॉट इंडेक्स (Bloomberg Agriculture Spot Index) 9 फसलों का एक मूल्य मापक है जो मई में एक दशक के सबसे निचले स्तर पर आ गया था। इस सूचकांक की अस्थिरता खाद्यान सुरक्षा की अस्थिरता को प्रदर्शित करती है।

जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु वैश्विक प्रयास

जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (ipcc).

  • जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) जलवायु परिवर्तन से संबंधित वैज्ञानिक आकलन करने हेतु संयुक्त राष्ट्र का एक निकाय है। जिसमें 195 सदस्य देश हैं।
  • इसे संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) द्वारा 1988 में स्थापित किया गया था।
  • इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन, इसके प्रभाव और भविष्य के संभावित जोखिमों के साथ-साथ अनुकूलन तथा जलवायु परिवर्तन को कम करने हेतु नीति निर्माताओं को रणनीति बनाने के लिये नियमित वैज्ञानिक आकलन प्रदान करना है।
  • IPCC आकलन सभी स्तरों पर सरकारों को वैज्ञानिक सूचनाएँ प्रदान करता है जिसका इस्तेमाल जलवायु के प्रति उदार नीति विकसित करने के लिये किया जा सकता है।
  • IPCC आकलन जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये अंतर्राष्ट्रीय वार्ताओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (UNFCCC)

  • यह एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जिसका उद्देश्य वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करना है।
  • यह समझौता जून, 1992 के पृथ्वी सम्मेलन के दौरान किया गया था। विभिन्न देशों द्वारा इस समझौते पर हस्ताक्षर के बाद 21 मार्च, 1994 को इसे लागू किया गया।
  • वर्ष 1995 से लगातार UNFCCC की वार्षिक बैठकों का आयोजन किया जाता है। इसके तहत ही वर्ष 1997 में बहुचर्चित क्योटो समझौता (Kyoto Protocol) हुआ और विकसित देशों (एनेक्स-1 में शामिल देश) द्वारा ग्रीनहाउस गैसों को नियंत्रित करने के लिये लक्ष्य तय किया गया। क्योटो प्रोटोकॉल के तहत 40 औद्योगिक देशों को अलग सूची एनेक्स-1 में रखा गया है।
  • UNFCCC की वार्षिक बैठक को कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज़ (COP) के नाम से जाना जाता है।

पेरिस समझौता

  • यदि कम शब्दों में कहा जाए तो पेरिस समझौता जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।
  • वर्ष 2015 में 30 नवंबर से लेकर 11 दिसंबर तक 195 देशों की सरकारों के प्रतिनिधियों ने पेरिस में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये संभावित नए वैश्विक समझौते पर चर्चा की।
  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्य के साथ संपन्न 32 पृष्ठों एवं 29 लेखों वाले पेरिस समझौते को ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिये एक ऐतिहासिक समझौते के रूप में मान्यता प्राप्त है।

जलवायु परिवर्तन और भारत के प्रयास

जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (napcc).

  • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना का शुभारंभ वर्ष 2008 में किया गया था।
  • इसका उद्देश्य जनता के प्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और समुदायों को जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरे और इससे मुकाबला करने के उपायों के बारे में जागरूक करना है।
  • राष्ट्रीय सौर मिशन
  • विकसित ऊर्जा दक्षता के लिये राष्ट्रीय मिशन
  • सुस्थिर निवास पर राष्ट्रीय मिशन
  • राष्ट्रीय जल मिशन
  • सुस्थिर हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र हेतु राष्ट्रीय मिशन
  • हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशन
  • सुस्थिर कृषि हेतु राष्ट्रीय मिशन
  • जलवायु परिवर्तन हेतु रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन

इसके अलावा भारत के राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा एसएपीसीसी (State Action Plans on Climate Change-SAPCC) पर राज्य कार्ययोजना तैयार की गई है जो NAPCC के उद्देश्यों के ही अनुरूप है।

अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance-ISA)

  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन सौर ऊर्जा से संपन्न देशों का एक संधि आधारित अंतर-सरकारी संगठन (Treaty-Based International Intergovernmental Organization) है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की शुरुआत भारत और फ्राँस ने 30 नवंबर, 2015 को पेरिस जलवायु सम्‍मेलन के दौरान की थी।
  • इसका मुख्यालय गुरुग्राम (हरियाणा) में है।
  • ISA के प्रमुख उद्देश्यों में वैश्विक स्तर पर 1000 गीगावाट से अधिक सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता प्राप्त करना और 2030 तक सौर ऊर्जा में निवेश के लिये लगभग $1000 बिलियन की राशि को जुटाना शामिल है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की पहली बैठक का आयोजन नई दिल्ली में किया गया था।

प्रश्न: जलवायु परिवर्तन के प्रभाव तथा समाधान पर चर्चा करते हुए भारत द्वारा उठाए गए कदमों की समीक्षा कीजिये।

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जलवायु परिवर्तन पर निबंध | Essay on Climatic Changes in Hindi

by Meenu Saini | Jun 22, 2022 | Hindi | 0 comments

Hindi Essay Writing – जलवायु परिवर्तन (Climatic Changes)

जलवायु परिवर्तन पर निबंध

  • जलवायु परिवर्तन

जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु वैश्विक प्रयास, जलवायु परिवर्तन और भारत के प्रयास.

किसी स्थान पर अनेक वर्षो में मापी गई मौसम की औसत दशा को जलवायु कहते है | किसी स्थान की जलवायु उसकी स्थिति, ऊँचाई, समुद्र से दूरी तथा उच्चावच पर निर्भर करती है | इसलिए हमें भारत की जलवायु में क्षेत्रीय विभिन्नता का अनुभव होता हैं | 

भारत की जलवायु को मोटे तौर पर मानसूनी जलवायु कहा जाता है | जलवायु के अंतर्गत किसी भी स्थान के वायुमंडलीय दबाव, तापमान, नमी, हवा की गतिविधियों, बादलों आदि दीर्घकालीन मौसम संबंधी आंकड़े शामिल होते हैं, जिनका अध्ययन कर राष्ट्र विशेष के रहन-सहन, खान-पान, कृषि अर्थव्यवस्था आदि का निर्धारण किया जाता है |   Top  

जलवायु परिवर्तन 

जब किसी क्षेत्र के औसत मौसम में परिवर्तन आता है तो उसे जलवायु परिवर्तन कहते हैं। अर्थात दशकों, सदियों या उससे अधिक के समय अंतराल में जलवायु में होने वाले दीर्घकालीन परिवर्तन को जलवायु परिवर्तन कहते हैं | ग्लेशियरो का पिघलना, अतिवृष्टि, सूखा पड़ना, सुनामी आदि जलवायु परिवर्तन का ही परिणाम हैं | जलवायु परिवर्तन को किसी एक स्थान विशेष में भी महसूस किया जा सकता है एवं संपूर्ण विश्व में भी। यदि वर्तमान संदर्भ में बात करें तो इसका प्रभाव लगभग संपूर्ण विश्व में देखने को मिल रहा है।

पृथ्वी के समग्र इतिहास में यहाँ की जलवायु कई बार परिवर्तित हुई है एवं जलवायु परिवर्तन की अनेक घटनाएँ सामने आई हैं।

पृथ्वी का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक बताते हैं कि पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है। पृथ्वी का तापमान बीते 100 वर्षों में 1 डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ गया है। पृथ्वी के तापमान में यह परिवर्तन संख्या की दृष्टि से काफी कम हो सकता है, परंतु इस प्रकार के किसी भी परिवर्तन का मानव जाति पर बड़ा असर हो सकता है।   Top  

जलवायु में परिवर्तन का कोई निश्चित कारण नहीं हैं, कुछ प्राकतिक कारण जो प्रकृति निर्मित होते हैं, दूसरे मानवीय कारण | प्राकृतिक कारणों की अपेक्षा मानव जनित कारणों से जलवायु पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता हैं | 

ग्रीनहाउस गैसें

पृथ्वी के चारों ओर ग्रीनहाउस गैस की एक परत बनी हुई है, इस परत में मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें शामिल हैं। ग्रीनहाउस गैसों की यह परत पृथ्वी की सतह पर तापमान संतुलन को बनाए रखने में आवश्यक है और विश्लेषकों के अनुसार, यदि यह परत नहीं होगी तो पृथ्वी का तापमान काफी कम हो जाएगा। आधुनिक युग में जैसे-जैसे मानवीय गतिविधियाँ बढ़ रही हैं, वैसे-वैसे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भी वृद्धि हो रही है और जिसके कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है। मुख्य ग्रीनहाउस गैसें : – 

  • कार्बन डाइऑक्साइड – इसे सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैस माना जाता है और यह प्राकृतिक व मानवीय दोनों ही कारणों से उत्सर्जित होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार, कार्बन डाइऑक्साइड का सबसे अधिक उत्सर्जन ऊर्जा हेतु जीवाश्म ईंधन को जलाने से होता है। आँकड़े बताते हैं कि औद्योगिक क्रांति के पश्चात् वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली है।
  • मीथेन – जैव पदार्थों का अपघटन मीथेन का एक बड़ा स्रोत है। उल्लेखनीय है कि मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड से अधिक प्रभावी ग्रीनहाउस गैस है, परंतु वातावरण में इसकी मात्रा कार्बन डाइऑक्साइड की अपेक्षा कम है।
  • क्लोरोफ्लोरोकार्बन – इसका प्रयोग मुख्यतः रेफ्रिजरेंट और एयर कंडीशनर आदि में किया जाता है एवं ओज़ोन परत पर इसका काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

भूमि के उपयोग में परिवर्तन 

वाणिज्यिक या निजी प्रयोग हेतु वनों की कटाई भी जलवायु परिवर्तन का बड़ा कारक है। पेड़ न सिर्फ हमें फल और छाया देते हैं, बल्कि ये वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड जैसी महत्त्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैस को अवशोषित भी करते हैं। वर्तमान समय में जिस तरह से वृक्षों की कटाई की जा रही हैं वह काफी चिंतनीय है, क्योंकि पेड़ वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने वाले प्राकृतिक यंत्र के रूप में कार्य करते हैं और उनकी समाप्ति के साथ हम वह प्राकृतिक यंत्र भी खो देंगे।

शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण लोगों के जीवन जीने के तौर-तरीकों में काफी परिवर्तन आया है। विश्व भर की सड़कों पर वाहनों की संख्या काफी अधिक हो गई है। जीवन शैली में परिवर्तन ने खतरनाक गैसों के उत्सर्जन में काफी अधिक योगदान दिया है।   Top  

जलवायु परिवर्तन का हमारे जीवन पर बहुत गहरा दुष्प्रभाव देखते को मिल रहा हैं | आँकड़े दर्शाते हैं कि 19वीं सदी के अंत से अब तक पृथ्वी की सतह का औसत तापमान लगभग 1.62 डिग्री फॉरनहाइट (अर्थात् लगभग 0.9 डिग्री सेल्सियस) बढ़ गया है। इसके अतिरिक्त पिछली सदी से अब तक समुद्र के जल स्तर में भी लगभग 8 इंच की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। आँकड़े स्पष्ट करते हैं कि यह समय जलवायु परिवर्तन की दिशा में गंभीरता से विचार करने का है।

जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव इस प्रकार हैं –

  • उच्च तापमान – पावर प्लांट, ऑटोमोबाइल, वनों की कटाई और अन्य स्रोतों से होने वाला ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन पृथ्वी को अपेक्षाकृत काफी तेज़ी से गर्म कर रहा है। पिछले 150 वर्षों में वैश्विक औसत तापमान लगातार बढ़ रहा है और वर्ष 2016 को सबसे गर्म वर्ष के रूप में रिकॉर्ड किया गया है। गर्मी से संबंधित मौतों और बीमारियों, बढ़ते समुद्र स्तर, तूफान की तीव्रता में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के कई अन्य खतरनाक परिणामों में वृद्धि के लिये बढ़े हुए तापमान को भी एक कारण माना जा सकता है। 

एक शोध में पाया गया है कि यदि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के विषय को गंभीरता से नहीं लिया गया और इसे कम करने के प्रयास नहीं किये गए तो सदी के अंत तक पृथ्वी की सतह का औसत तापमान 3 से 10 डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ सकता है।

  • वर्षा के पैटर्न में बदलाव – पिछले कुछ दशकों में बाढ़, सूखा और बारिश आदि की अनियमितता काफी बढ़ गई है। यह सभी जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप ही हो रहा है। कुछ स्थानों पर बहुत अधिक वर्षा हो रही है, जबकि कुछ स्थानों पर पानी की कमी से सूखे की संभावना बन गई है।
  • समुद्र जल के स्तर में वृद्धि – वैश्विक स्तर पर ग्लोबल वार्मिंग के दौरान ग्लेशियर पिघल जाते हैं और समुद्र का जल स्तर ऊपर उठता है जिसके प्रभाव से समुद्र के आस-पास के द्वीपों के डूबने का खतरा भी बढ़ जाता है। मालदीव जैसे छोटे द्वीपीय देशों में रहने वाले लोग पहले से ही वैकल्पिक स्थलों की तलाश में हैं।
  • वन्यजीव प्रजाति का नुकसान – तापमान में वृद्धि और वनस्पति पैटर्न में बदलाव ने कुछ पक्षी प्रजातियों को विलुप्त होने के लिये मजबूर कर दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार, पृथ्वी की एक-चौथाई प्रजातियाँ वर्ष 2050 तक विलुप्त हो सकती हैं। वर्ष 2008 में ध्रुवीय भालू को उन जानवरों की सूची में जोड़ा गया था जो समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण विलुप्त हो सकते थे।
  • रोगों का प्रसार और आर्थिक नुकसान – जानकारों ने अनुमान लगाया है कि भविष्य में जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियाँ और अधिक बढ़ेंगी तथा इन्हें नियंत्रित करना मुश्किल होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आँकड़ों के अनुसार, पिछले दशक से अब तक हीट वेव्स (Heat waves) के कारण लगभग 150,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है।
  • जंगलों में आग – जलवायु परिवर्तन के कारण लंबे समय तक चलने वाली हीट वेव्स ने जंगलों में लगने वाली आग के लिये उपयुक्त गर्म और शुष्क परिस्थितियाँ उत्पन्न की हैं। जंगलों में आग लगने से वन्य प्राणियों के आवास नष्ट हुए हैं जिससे वे शहरो की ओर पलायन कर रहे हैं |  

ब्राज़ील स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस रिसर्च के आँकड़ों के मुताबिक, जनवरी 2019 से अब तक ब्राज़ील के अमेज़न वन, कुल 74,155 बार जंगलो में लगी आग का सामना कर चुके हैं। साथ ही यह भी सामने आया है कि अमेज़न वन में आग लगने की घटना बीते वर्ष (2018) से 85 प्रतिशत तक बढ़ गई हैं।

  • खाद्य सुरक्षा पर खतरा – जलवायु परिवर्तन के कारण फसल की पैदावार कम होने से खाद्यान्न समस्या उत्पन्न हो सकती है, साथ ही भूमि निम्नीकरण जैसी समस्याएँ भी सामने आ सकती हैं। एशिया और अफ्रीका पहले से ही आयातित खाद्य पदार्थों पर निर्भर हैं। ये क्षेत्र तेज़ी से बढ़ते तापमान के कारण सूखे की चपेट में आ सकते हैं। वातावरण में कार्बन की मात्रा बढ़ने से फसलों की पोषण गुणवत्ता में कमी आ रही है। 

उदाहरण के लिये उच्च कार्बन वातावरण के कारण गेहूँ की पौष्टिकता में प्रोटीन का 6% से 13%, जस्ते का 4% से 7% और लोहे का 5% से 8% तक की कमी आ रही है। यूरोप में गर्मी की लहर की वजह से फसल की पैदावार गिर रही है। ब्लूमबर्ग एग्रीकल्चर स्पॉट इंडेक्स (Bloomberg Agriculture Spot Index) 9 फसलों का एक मूल्य मापक है जो मई में एक दशक के सबसे निचले स्तर पर आ गया था। इस सूचकांक की अस्थिरता खाद्यान्न सुरक्षा की अस्थिरता को प्रदर्शित करती है।   Top  

जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) –   जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल जलवायु परिवर्तन से संबंधित वैज्ञानिक आकलन करने हेतु संयुक्त राष्ट्र का एक निकाय है। जिसमें 195 सदस्य देश हैं। 

  • इसे संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) द्वारा 1988 में स्थापित किया गया था।
  • इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन, इसके प्रभाव और भविष्य के संभावित जोखिमों के साथ-साथ अनुकूलन तथा जलवायु परिवर्तन को कम करने हेतु नीति निर्माताओं को रणनीति बनाने के लिये नियमित वैज्ञानिक आकलन प्रदान करना है।
  • आई पी सी सी का आकलन सभी स्तरों पर सरकारों को वैज्ञानिक सूचनाएँ प्रदान करता है जिसका इस्तेमाल जलवायु के प्रति उदार नीति विकसित करने के लिये किया जा सकता है।
  • आई पी सी सी का आकलन जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये अंतर्राष्ट्रीय वार्ताओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (UNFCCC)  –  यह एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जिसका उद्देश्य वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करना है। यह समझौता जून, 1992 के पृथ्वी सम्मेलन के दौरान किया गया था। विभिन्न देशों द्वारा इस समझौते पर हस्ताक्षर के बाद 21 मार्च, 1994 को इसे लागू किया गया।

  • वर्ष 1995 से लगातार UNFCCC की वार्षिक बैठकों का आयोजन किया जाता है। इसके तहत ही वर्ष 1997 में बहुचर्चित क्योटो समझौता (Kyoto Protocol) हुआ और विकसित देशों द्वारा ग्रीनहाउस गैसों को नियंत्रित करने के लिये लक्ष्य तय किया गया।
  •  क्योटो प्रोटोकॉल के तहत 40 औद्योगिक देशों को अलग सूची एनेक्स-1 में रखा गया है।
  • UNFCCC की वार्षिक बैठक को कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज़ (COP) के नाम से जाना जाता है।

पेरिस समझौता – यदि सरल शब्दों में कहा जाए तो पेरिस समझौता जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है। वर्ष 2015 में 30 नवंबर से लेकर 11 दिसंबर तक 195 देशों की सरकारों के प्रतिनिधियों ने पेरिस में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये संभावित नए वैश्विक समझौते पर चर्चा की। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्य के साथ संपन्न 32 पृष्ठों एवं 29 लेखों वाले पेरिस समझौते को ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिये एक ऐतिहासिक समझौते के रूप में मान्यता प्राप्त है।   Top  

जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना, जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना का शुभारंभ वर्ष 2008 में किया गया था। इसका उद्देश्य जनता के प्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और समुदायों को जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरे और इससे मुकाबला करने के उपायों के बारे में जागरूक करना है। इस कार्ययोजना में मुख्यतः 8 मिशन शामिल हैं:

  • राष्ट्रीय सौर मिशन
  • विकसित ऊर्जा दक्षता के लिये राष्ट्रीय मिशन
  • सुस्थिर निवास पर राष्ट्रीय मिशन
  • राष्ट्रीय जल मिशन
  • सुस्थिर हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र हेतु राष्ट्रीय मिशन
  • हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशन
  • सुस्थिर कृषि हेतु राष्ट्रीय मिशन
  • जलवायु परिवर्तन हेतु रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन

इसके अलावा भारत के राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा एसएपीसीसी (State Action Plans on Climate Change-SAPCC) पर राज्य कार्ययोजना तैयार की गई है जो जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना के उद्देश्यों के ही अनुरूप है।   Top  

विश्व भर में जलवायु परिवर्तन का विषय सर्वविदित है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि वर्तमान में जलवायु परिवर्तन वैश्विक समाज के समक्ष मौजूद सबसे बड़ी चुनौती है एवं इससे निपटना वर्तमान समय की बड़ी आवश्यकता बन गई है। किन्तु यदि शीध्र ही कुछ नही किया गया तो वो दिन दूर नहीं जब ये धरती आग का गोला बन जाएगी और इस पृथ्वी पर जीवन का नामो निशान नहीं बचेगा | हम धरती का सीना फाड़कर सोना, चाँदी, हीरे, खनिज निकालते हैं, खाने के लिए फल, अनाज, सब्जी, रहने के लिए जमीन, घर बनाने के लिए लकड़ी आदि | 

पर बदले में हम इसे क्या देते हैं ? कारखानों से निकला धुआं, हानिकारक गैसें, अपशिष्ट पदार्थ, प्लास्टिक, पर्यावरण प्रदूषण | और यही कारण हैं कि आज प्राकृतिक आपदाएं बढती जा रही हैं, जैसे ज्वालामुखी विस्फोट, बढ़ता तापमान, बाढ़, भूकंप, सुनामी आदि|  

इसलिए हमें सचेत हो जाना चाहिए, यदि अब भी नहीं संभले तो कही ऐसा ना हो कि बहुत देर हो जाए | अतः हमें मनुष्य होने के नाते अपने इस दायित्व को समझना चाहिए और जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए अपने स्तर पर प्रयास करना चाहिए,  इको फ्रेंडली बनना चाहिए |    Top  

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climate change par essay in hindi

ग्लोबल वार्मिंग का बढ़ता खतरा और उपाय

जानिए कैसे हम ग्लोबल वार्मिंग को रोकने और पर्यावरण को सुरक्षित रखने के उपाय अपना सकते हैं | get information about measures to stop global warming in hindi..

climate change par essay in hindi

कंक्रीट का जंगल? जो पानी की बरबादी करते हैं, उनसे मैं यही पूछना चाहता हूँ कि क्या उन्होंने बिना पानी के जीने की कोई कला सीख ली है, तो हमें भी बताए, ताकि भावी पीढ़ी बिना पानी के जीना सीख सके। नहीं तो तालाब के स्थान पर मॉल बनाना क्या उचित है? आज हो यही रहा है। पानी को बरबाद करने वालों यह समझ लो कि यही पानी तुम्हें बरबाद करके रहेगा। एक बूँद पानी याने एक बूँद खून, यही समझ लो। पानी आपने बरबाद किया, खून आपके परिवार वालों का बहेगा। क्या अपनी ऑंखों का इतना सक्षम बना लोगे कि अपने ही परिवार के किस प्रिय सदस्य का खून बेकार बहता देख पाओगे? अगर नहीं, तो आज से ही नहीं, बल्कि अभी से पानी की एक-एक बूँद को सहेजना शुरू कर दो। अगर ऐसा नहीं किया, तो मारे जाओगे। वैश्विक तापमान यानी ग्लोबल वार्मिंग आज विश्व की सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है। इससे न केवल मनुष्य, बल्कि धरती पर रहने वाला प्रत्येक प्राणी त्रस्त ( परेशान, इन प्राब्लम) है। ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए दुनियाभर में प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन समस्या कम होने के बजाय साल-दर-साल बढ़ती ही जा रही है। चूंकि यह एक शुरुआत भर है, इसलिए अगर हम अभी से नहीं संभलें तो भविष्य और भी भयावह ( हारिबल, डार्कनेस, ) हो सकता है। आगे बढ़ने से पहले हम यह जान लें कि आखिर ग्लोबल वार्मिंग है क्या। क्या है ग्लोबल वार्मिंग? जैसा कि नाम से ही साफ है, ग्लोबल वार्मिंग धरती के वातावरण के तापमान में लगातार हो रही बढ़ोतरी है। हमारी धरती प्राकृतिक तौर पर सूर्य की किरणों से उष्मा ( हीट, गर्मी ) प्राप्त करती है। ये किरणें वायुमंडल ( एटमास्पिफयर) से गुजरती हुईं धरती की सतह (जमीन, बेस) से टकराती हैं और फिर वहीं से परावर्तित ( रिफलेक्शन) होकर पुन: लौट जाती हैं। धरती का वायुमंडल कई गैसों से मिलकर बना है जिनमें कुछ ग्रीनहाउस गैसें भी शामिल हैं। इनमें से अधिकांश ( मोस्ट आफ देम, बहुत अधिक ) धरती के ऊपर एक प्रकार से एक प्राकृतिक आवरण ( लेयर, कवर ) बना लेती हैं। यह आवरण लौटती किरणों के एक हिस्से को रोक लेता है और इस प्रकार धरती के वातावरण को गर्म बनाए रखता है। गौरतलब ( इट इस रिकाल्ड, मालूम होना ) है कि मनुष्यों, प्राणियों और पौधों के जीवित रहने के लिए कम से कम 16 डिग्री सेल्शियस तापमान आवश्यक होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रीनहाउस गैसों में बढ़ोतरी होने पर यह आवरण और भी सघन ( अधिक मोटा होना) या मोटा होता जाता है। ऐसे में यह आवरण सूर्य की अधिक किरणों को रोकने लगता है और फिर यहीं से शुरू हो जाते हैं ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव ( साइड इफेक्ट) ।

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क्या हैं ग्लोबल वार्मिंग की वजह? ग्लोबल वार्मिंग के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार तो मनुष्य और उसकी गतिविधियां (एक्टिविटीज ) ही हैं। अपने आप को इस धरती का सबसे बुध्दिमान प्राणी समझने वाला मनुष्य अनजाने में या जानबूझकर अपने ही रहवास ( हैबिटेट,रहने का स्थान) को खत्म करने पर तुला हुआ है। मनुष्य जनित ( मानव निर्मित) इन गतिविधियों से कार्बन डायआक्साइड, मिथेन, नाइट्रोजन आक्साइड इत्यादि ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा में बढ़ोतरी हो रही है जिससे इन गैसों का आवरण्ा सघन होता जा रहा है। यही आवरण सूर्य की परावर्तित किरणों को रोक रहा है जिससे धरती के तापमान में वृध्दि हो रही है। वाहनों, हवाई जहाजों, बिजली बनाने वाले संयंत्रों ( प्लांटस), उद्योगों इत्यादि से अंधाधुंध होने वाले गैसीय उत्सर्जन ( गैसों का एमिशन, धुआं निकलना ) की वजह से कार्बन डायआक्साइड में बढ़ोतरी हो रही है। जंगलों का बड़ी संख्या में हो रहा विनाश इसकी दूसरी वजह है। जंगल कार्बन डायआक्साइड की मात्रा को प्राकृतिक रूप से नियंत्रित करते हैं, लेकिन इनकी बेतहाशा कटाई से यह प्राकृतिक नियंत्रक (नेचुरल कंटरोल ) भी हमारे हाथ से छूटता जा रहा है। इसकी एक अन्य वजह सीएफसी है जो रेफ्रीजरेटर्स, अग्निशामक ( आग बुझाने वाला यंत्र) यंत्रों इत्यादि में इस्तेमाल की जाती है। यह धरती के ऊपर बने एक प्राकृतिक आवरण ओजोन परत को नष्ट करने का काम करती है। ओजोन परत सूर्य से निकलने वाली घातक पराबैंगनी ( अल्ट्रावायलेट ) किरणों को धरती पर आने से रोकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस ओजोन परत में एक बड़ा छिद्र ( होल) हो चुका है जिससे पराबैंगनी किरणें (अल्टा वायलेट रेज ) सीधे धरती पर पहुंच रही हैं और इस तरह से उसे लगातार गर्म बना रही हैं। यह बढ़ते तापमान का ही नतीजा है कि धु्रवों (पोलर्स ) पर सदियों से जमी बर्फ भी पिघलने लगी है। विकसित या हो अविकसित देश, हर जगह बिजली की जरूरत बढ़ती जा रही है। बिजली के उत्पादन ( प्रोडक्शन) के लिए जीवाष्म ईंधन ( फासिल फयूल) का इस्तेमाल बड़ी मात्रा में करना पड़ता है। जीवाष्म ईंधन के जलने पर कार्बन डायआक्साइड पैदा होती है जो ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव को बढ़ा देती है। इसका नतीजा ग्लोबल वार्मिंग के रूप में सामने आता है।

ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव :

और बढ़ेगा वातावरण का तापमान : पिछले दस सालों में धरती के औसत तापमान में 0.3 से 0.6 डिग्री सेल्शियस की बढ़ोतरी हुई है। आशंका यही जताई जा रही है कि आने वाले समय में ग्लोबल वार्मिंग में और बढ़ोतरी ही होगी। समुद्र सतह में बढ़ोतरी : ग्लोबल वार्मिंग से धरती का तापमान बढ़ेगा जिससे ग्लैशियरों पर जमा बर्फ पिघलने लगेगी। कई स्थानों पर तो यह प्रक्रिया शुरू भी हो चुकी है। ग्लैशियरों की बर्फ के पिघलने से समुद्रों में पानी की मात्रा बढ़ जाएगी जिससे साल-दर-साल उनकी सतह में भी बढ़ोतरी होती जाएगी। समुद्रों की सतह बढ़ने से प्राकृतिक तटों का कटाव शुरू हो जाएगा जिससे एक बड़ा हिस्सा डूब जाएगा। इस प्रकार तटीय ( कोस्टल) इलाकों में रहने वाले अधिकांश ( बहुत बडा हिस्सा, मोस्ट आफ देम) लोग बेघर हो जाएंगे। मानव स्वास्थ्य पर असर : जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर मनुष्य पर ही पड़ेगा और कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पडेग़ा। गर्मी बढ़ने से मलेरिया, डेंगू और यलो फीवर ( एक प्रकार की बीमारी है जिसका नाम ही यलो फीवर है) जैसे संक्रामक रोग ( एक से दूसरे को होने वाला रोग) बढ़ेंगे। वह समय भी जल्दी ही आ सकता है जब हममें से अधिकाशं को पीने के लिए स्वच्छ जल, खाने के लिए ताजा भोजन और श्वास ( नाक से ली जाने वाली सांस की प्रोसेस) लेने के लिए शुध्द हवा भी नसीब नहीं हो। पशु-पक्षियों व वनस्पतियों पर असर : ग्लोबल वार्मिंग का पशु-पक्षियों और वनस्पतियों पर भी गहरा असर पड़ेगा। माना जा रहा है कि गर्मी बढ़ने के साथ ही पशु-पक्षी और वनस्पतियां धीरे-धीरे उत्तरी और पहाड़ी इलाकों की ओर प्रस्थान ( रवाना होना) करेंगे, लेकिन इस प्रक्रिया में कुछ अपना अस्तित्व ही खो देंगे। शहरों पर असर : इसमें कोई शक नहीं है कि गर्मी बढ़ने से ठंड भगाने के लिए इस्तेमाल में लाई जाने वाली ऊर्जा की खपत (कंजम्शन, उपयोग ) में कमी होगी, लेकिन इसकी पूर्ति एयर कंडिशनिंग में हो जाएगी। घरों को ठंडा करने के लिए भारी मात्रा में बिजली का इस्तेमाल करना होगा। बिजली का उपयोग बढ़ेगा तो उससे भी ग्लोबल वार्मिंग में इजाफा ही होगा। ग्लोबल वार्मिंग से कैसे बचें? ग्लोबल वार्मिंग के प्रति दुनियाभर में चिंता बढ़ रही है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस साल का नोबेल शांति पुरस्कार पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में कार्य करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेंट चेंज (आईपीसीसी) और पर्यावरणवादी अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति अल गोर को दिया गया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वालों को नोबेल पुरस्कार देने भर से ही ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से निपटा जा सकता है? बिल्कुल नहीं। इसके लिए हमें कई प्रयास करने होंगे : 1- सभी देश क्योटो संधि का पालन करें। इसके तहत 2012 तक हानिकारक गैसों के उत्सर्जन ( एमिशन, धुएं ) को कम करना होगा। 2- यह जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं है। हम सभी भी पेटोल, डीजल और बिजली का उपयोग कम करके हानिकारक गैसों को कम कर सकते हैं। 3- जंगलों की कटाई को रोकना होगा। हम सभी अधिक से अधिक पेड लगाएं। इससे भी ग्लोबल वार्मिंग के असर को कम किया जा सकता है। 4- टेक्नीकल डेवलपमेंट से भी इससे निपटा जा सकता है। हम ऐसे रेफ्रीजरेटर्स बनाएं जिनमें सीएफसी का इस्तेमाल न होता हो और ऐसे वाहन बनाएं जिनसे कम से कम धुआं निकलता हो। भोपालवासी डॉ. महेश परिमल का छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. अकादमिक कैरियर है। पत्रकारिता और साहित्य से जुड़े अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 700 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन का लम्बे लेखन का अनुभव है। पानी उनके संवेदना का गहरा पक्ष रहा है। डॉ. महेश परिमल वर्तमान में भास्कर ग्रुप में अंशकालीन समीक्षक के रूप में कार्यरत् हैं। उनका संपर्क: डॉ. महेश परिमल, 403, भवानी परिसर, इंद्रपुरी भेल, भोपाल. 462022. ईमेल - [email protected]

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