महंगाई पर निबंध Essay on Inflation in Hindi

महंगाई पर निबंध Essay on Inflation in Hindi

इस लेख में हमने महंगाई पर निबंध हिंदी में (Essay on Inflation in Hindi) लिखा है। जिसमें महंगाई का अर्थ, कारण, प्रभाव, महंगाई रोकने के उपाय तथा महंगाई पर 10 वाक्यों को बेहद सरल और आकर्षक रूप से लिखा है।

Table of Contents

प्रस्तावना महंगाई पर निबंध Essay on Inflation in Hindi (1000 Words)

आधुनिक समय में विज्ञान की सहायता से मनुष्य ने प्रशंसनीय प्रगति की है। अपने सुख सुविधा के लिए कई सारे आविष्कार किए हैं, जो जीवन को अत्यंत सरल बना देते हैं।

अपनी आजीविका चलाने के लिए हर जरूरी सुविधाएं उपलब्ध हैं। लेकिन आज के समय में बढ़ती जनसंख्या के कारण सभी लोगों तक यह सुविधाएं उपलब्ध नहीं हो पाती हैं।

वर्तमान समय में वस्तुओं के मूल्य में काफी अंतर देखा जाता है। प्रगति के साथ ही दिन प्रतिदिन वस्तुओं की कीमत भी बढ़ती जा रही है।

महंगाई से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले लोग मध्यमवर्गीय तथा गरीब लोग होते हैं। कई बार ऐसा देखा जाता है कि महंगाई के कारण अमीर लोग और भी अमीर बन जाते हैं, और गरीब अत्यंत गरीब हो जाते हैं।

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को महंगाई पूरी तरह से चौपट कर देती है। महंगाई वास्तव में एक ऐसी आपदा है, जो किसी भी देश के विकास को रोक देती है।

महंगाई क्या है? What is Inflation in Hindi?

समय के साथ किसी भी देश के अर्थव्यवस्था में माल और सेवाओं की कीमतों में होने वाले सामान्य बढ़ोत्तरी को महंगाई कहा जाता है।

दूसरे शब्दों में कहें तो जब मांग और आपूर्ति में असंतुलन के कारण वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ जाती हैं, तो उसे महंगाई का नाम दिया जाता है।

महंगाई के कारण किसी भी देश की मुद्रा की क्रय शक्ति में भारी गिरावट हो जाती है। अर्थात पहले जितनी मुद्रा में माल और सामग्री की मात्रा आती थी, वह कम हो जाती है।

यह न केवल किसी देश की समस्या है बल्कि यह एक वैश्विक समस्या बनती जा रही है। दुनिया में हर रोज नए अविष्कार किए जाते हैं, किंतु ऐसा कोई भी आविष्कार नहीं किया गया है, जिससे महंगाई के कारण उत्पन्न होने वाले गरीबी को पूरी तरह खत्म किया जा सके।

बाजारों में दिन-ब-दिन चीजें महंगी होती जा रही है। एक गरीब इंसान के लिए सामान्य वस्तुओं की खरीदी भी बहुत महंगी हो गई है।

महंगाई के कारण Reasons for Inflation in Hindi

महंगाई के अनेकों कारण है, जिसकी वजह से यह रुकने का नाम ही नहीं ले रही है। इसके कुछ मुख्य कारण नीचे दिए गए ,हैं जो देश में मूल्य बढ़ोतरी के लिए जिम्मेदार हैं-

जनसंख्या वृद्धि Population growth : भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। जनसंख्या वृद्धि वास्तव में सभी समस्याओं की जड़ है।

बढ़ती आबादी के कारण देश में उपभोक्ताओं की मात्रा अधिक होती जा रही है और उत्पादन सीमित हो गया है। जिसके कारण गरीबी और महंगाई जैसी समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं।

मुद्रा की अधिकता Currency surplus : जब किसी भी चीज की अधिकता हो जाती है, तो वह एक नकारात्मक स्वरूप लेने लगता है। अधिक मुद्राकरण महंगाई के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है।

मुद्रास्फीति की अधिकता अर्थव्यवस्था के लिए बहुत हानिकारक होता है। यदि सभी के पास खरीदारी करने के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध होगा तो स्रोत सीमित हो जाएंगे। मांग की आपूर्ति न होने के कारण परिणाम स्वरूप महंगाई की समस्या उत्पन्न होती है।

अति मुद्राकरण के कारण महंगाई बढ़ने का एक बेहतरीन उदाहरण वेनेजुएला देश है। इस देश की सरकार ने अपने देश में से गरीबी खत्म करने के मुद्रीकरण की मात्रा बहुत बढ़ा दी, जिससे देश में भयंकर महंगाई और गरीबी आज भी यहां देखी जा सकती है।

भ्रष्टाचार Corruption :  कई बार बड़े- बड़े व्यापारियों और अन्य लोगों द्वारा सैकड़ों मात्रा में चीजों की जमाखोरी की जाती है। यह वस्तुएं गोदाम में पड़े-पड़े खराब हो जाती हैं। आवश्यकता पड़ने पर देश में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति नहीं हो पाती इसके परिणाम स्वरूप वस्तुओं का मूल्य आसमान छूने लगता है।

अधिकतर भ्रष्टाचार देश के लालची नेताओं द्वारा ही किया जाता है, जिसका परिणाम केवल गरीबों और सामान्य वर्ग के लोगों को ही झेलना पड़ता है।

महंगाई के प्रभाव Effects of Inflation in Hindi

निश्चित आय वर्ग Fixed income group :  इस वर्ग में सभी लोगों का समावेश होता है, जैसे- अध्यापक, कर्मचारी, श्रमिक, डॉक्टर इत्यादि। वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य बढ़ने के कारण निश्चित आय वर्ग की क्रय शक्ति बहुत गिर जाती है। 

वास्तव में महंगाई की सबसे अधिक मार निश्चित आय वर्ग वाले लोगों को ही झेलना पड़ता है।

कर (tax) भुगतान पर On Tax Payment: : महंगाई के कारण सरकार के सार्वजनिक व्यय में अधिक वृद्धि हो जाती है। सरकार अपने  खर्चों की पूर्ति करने के लिए आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं पर नए-नए कर थोप देती है और पुरानी करो में वृद्धि कर देती है। परिणाम स्वरूप वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होने से महंगाई का उदय हो जाता है।

उत्पादन मूल्य Production Value: जिन वस्तुओं का अधिक उत्पादन किया जाता है, एक समय बाद उसकी कीमत पूरे देश में बढ़ जाती है। वस्तुओं के उत्पादन मूल्य में बढ़ोतरी से मजदूर वर्ग और सामान्य वर्ग को भुगतान किए जाने वाले वेतन में कमी आ जाती है तथा व्यापारी वर्ग को ही बस लाभ मिलता है। इसके कारण बेरोजगारी की समस्या और महंगाई में वृद्धि हो जाती है।

निवेश कर्ताओं पर On Investors: सामान्य तौर पर निवेशकर्ताओं के दो प्रकार होते हैं। पहले प्रकार के निवेशकर्ताओं कि आय निश्चित होती है तथा वे सरकारी विभूतियों में निवेश करते हैं।

दूसरे निवेशकर्ता संयुक्त पूंजी कंपनियों के हिस्सों को खरीदते हैं, जिसमें उनकी आय अनिश्चित होती है। आय के इस अनिश्चितता के कारण प्रथम वर्ग को दूसरे वर्ग की अपेक्षा में कम फायदा अथवा नुकसान झेलना पड़ता है।

ऋणी और ऋणदाता पर प्रभाव Impact on The Debtor and The Tender:  जब ऋणदाता किसी को पैसे उधार देता है तो मुद्रास्फीति के कारण उसके  पैसों का मूल्य घट जाता है। इसके कारण ऋणदाता पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, और उसे हानि होती है।

महंगाई रोकने के उपाय Measures to Control Inflation in Hindi

महंगाई ने आज के समय में एक भयंकर रूप ले लिया है। देश में हर नागरिक महंगाई के कारण कई कठिनाइयों का सामना कर रहा है।

ऐसी परिस्थिति में देश की सरकार को महंगाई रोकने के लिए व्यवस्था करनी चाहिए। देश की सरकार जब बजट बनाती है तो उसमें आवश्यक तथा अनावश्यक चीजों पर एक जैसा ही कर लगाती है।

सरकार को अपने बजट तैयार करने की पद्धति को व्यवस्थित करना चाहिए और अनावश्यक चीजें जैसे-  तंबाकू, शराब, चमड़े से बनी चीजें इत्यादि पर ही अधिक टैक्स लगाना चाहिए।

भारत एक कृषि प्रधान देश है, किंतु फिर भी सिंचाई के लिए किसानों को पर्याप्त आधुनिक सुविधा उपलब्ध नहीं है, जो हमारे लिए खेद की बात है।

महंगाई को काबू करने के लिए हमें चाहिए कि लघु तथा  कुटीर उद्योगों को फिर से शुरू किया जाए और लोगों को रोजगार दिया जाए। सरकारी अर्थतंत्र को चाहिए कि वह कालाबाजारी और जमाखोरी पर रोक लगाने के लिए कड़े नियम कानून बनाए।

हमारे देश में शिक्षा की उपलब्धि एक बड़ी चुनौती है। अनपढ़ होने के कारण लोगों को कहीं भी रोजगार नहीं मिल पाता। जिससे देश में बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न होती है।

सरकार को चाहिए कि वह सभी जगहों पर सरकारी स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना करें जिससे सभी को शिक्षित होने का अवसर मिले।

महंगाई पर 10 वाक्य Best 10 lines on Inflation in Hindi

  • महंगाई एक वैश्विक महामारी है, जिसने ज्यादातर देशों को अपनी चपेट में ले लिया है।
  • बढ़ती जनसंख्या मंगाई का एक मुख्य वजह है।
  • महंगाई सबसे अधिक गरीब लोगों और सामान्य वर्ग के लोगों को प्रभावित करता है।
  • अर्थव्यवस्था में मांग तथा वस्तु और सामग्रियों की मात्रा में कमी होने के कारण वस्तुओं का मूल्य बढ़ जाता है।
  • आज के वैज्ञानिक युग में भी ऐसे कई देश हैं जिनमें भयंकर महंगाई देखी जाती है।
  • सरकारी आंकड़ों के मुताबिक खाद्य पदार्थों  की महंगाई दर हर वर्ष बढ़ती जा रही है।
  • महंगाई के कारण देश की अर्थव्यवस्था डूब जाती है और देश का विकास रुक जाता है।
  • प्राकृतिक आपदाओं के आने के कारण भी महंगाई में वृद्धि होती है।
  • महंगाई के कारण आम लोग अपनी आजीविका चलाने में असमर्थ रहते हैं।
  • वेनेजुएला दक्षिण अफ्रीका का एक देश है, जिसमें अधिक अति मुद्रीकरण के कारण महंगाई बहुत ज्यादा बढ़ गई है। 

निष्कर्ष Conclusion

इस लेख में आपने महंगाई पर हिंदी में (Essay on Inflation in Hindi) निबंध पढ़ा। आशा है यह लेख आपके लिए सहायक सिद्ध हो। यदि यह निबंध आपको अच्छा लगा हो तो शेयर जरूर करें।

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Essay on Inflation : छात्र ऐसे लिख सकते हैं मुद्रास्फीति पर निबंध

essay on inflation in hindi

  • Updated on  
  • अगस्त 26, 2024

Essay on Inflation in Hindi

अगर एक ब्रेड की कीमत एक साल में ₹40 से बढ़कर ₹44 हो जाती है, तो यह 10% की दर से मुद्रा स्फ़ीति का उदाहरण है। अगर छह महीने में पेट्रोल की कीमत ₹100 प्रति लीटर से बढ़कर ₹110 प्रति लीटर हो जाती है, तो यह ईंधन की कीमत में 10% की इंफ्लेशन को दर्शाता है। मुद्रास्फ़ीति को मापकर किसी भी देश की महंगाई दर को मापा जा सकता है। इंफ्लेशन को माप कर यह पता चलता है कि वस्तुओं और सेवाओं के लिए कीमतों का सामान्य स्तर कितना बढ़ रहा है। आसान शब्दों में प्रतिवर्ष विश्व में सेवाओं और वस्तुओं का दाम बढ़ता है जिसे इंफ्लेशन या मुद्रास्फ़ीति कहा जाता है। छात्रों को कई बार मुद्रास्फ़ीति पर परीक्षाओं व कक्षाओं में निबंध लिखने को दिया जाता है। Essay on Inflation in Hindi के बारे में जानने के लिए इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ें।

This Blog Includes:

इंफ्लेशन पर 100 शब्दों में निबंध, इंफ्लेशन पर 200 शब्दों में निबंध, इंफ्लेशन क्या होता है, इंफ्लेशन के प्रमुख कारण, इंफ्लेशन का प्रभाव.

Essay on Inflation in Hindi 100 शब्दों में इस प्रकार है:

पिछले कुछ दशकों में वैश्विक अर्थव्यवस्था में बहुत बदलाव आया है। इसका सीधा असर देशों के भीतर वस्तुओं और सेवाओं पर पड़ा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देशों की आर्थिक स्थिति में उतार-चढ़ाव आया है। किसी देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले दो प्रमुख कारक होते हैं जिनको डिफ्लेशन और इंफ्लेशन कहते हैं। डिफ्लेशन तब होती है जब वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें समय के साथ कम हो जाती हैं, जिससे मुद्रा की कीमत मजबूत हो जाती है और लोगों की क्रय शक्ति (पर्चेसिंग पावर) बढ़ जाती है। वहीं इंफ्लेशन तब होती है जब कीमतें बढ़ जाती हैं। इंफ्लेशन बढ़ने से आर्थिक शक्ति कम हो जाती है। इंफ्लेशन आर्थिक उतार-चढ़ाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो मैक्रोइकोनॉमिक और माइक्रोइकोनॉमिक दोनों फैक्टर्स को प्रभावित करती है। इससे विभिन्न परिणाम सामने आते हैं। सबसे महत्वपूर्ण परिणामों में से एक बेरोजगारी है।

Essay on Inflation in Hindi 200 शब्दों में नीचे दिया गया है-

जब वस्तुओं की मांग बढ़ती है लेकिन उपलब्ध समान की आपूर्ति पहले जैसी स्थिर रहती है तो मुद्रास्फ़ीति लोगों के लिए एक समस्या बन जाती है।यदि बहुत से ग्राहक हैं लेकिन आपूर्तिकर्ता कम होते हैं तो ऐसे समय में आपूर्तिकर्ता तालमेल नहीं रख पाते हैं। इससे माल की आय बढ़ती है लेकिन समान की डिलीवरी उतनी ही रहती है। इस प्रकार से होने वाले असंतुलन के कारण कच्चे माल और श्रम की लागत बढ़ जाती है। इसके परिणामस्वरूप आम जनता को होने वाला लाभ कम हो जाता है। जिससे संभावित रूप से कई व्यवसाय बंद हो सकते हैं। परिणामस्वरूप निर्माता आने वाले नए उपकरण या प्रौद्योगिकी में निवेश नहीं कर पाते हैं।

इससे बचने के लिए लोग बैंकों से अपना पैसा निकालकर उसे सोने जैसी लंबे समय तक चलने वाली संपत्ति में बदल देते हैं। इंफ्लेशन आर्थिक विकास को कम कर सकता है। इसका परिणाम इतिहास में आसानी से देखने को मिलता है जब इंफ्लेशन है तो किसी भी देश की आर्थिक स्थिति कमजोर होती जाती है।

इंफ्लेशन से निपटने के लिए उपायों में क्रेडिट कंट्रोल, करेंसी डिमोनिटाइजेशन, नई मुद्रा का लाना, अनावश्यक खर्च को कम करना, टैक्स में बढ़ावा, बचत को बढ़ावा देना, सरप्लस बजट और सार्वजनिक से लिया जाने वाला कर्ज शामिल होता है। फिसकल उपायों में उत्पादन को बढ़ाना, नई वेतन नीतियों को लागू करना, मूल्य नियंत्रण और राशनिंग शामिल होती हैं। विभिन्न आर्थिक संकट अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित करते हैं, और इंफ्लेशन ने भारतीय अर्थव्यवस्था को काफी प्रभावित किया है। जब वैश्विक खाद्य व्यापार प्रणालियाँ विफल होती हैं, तो गरीबों को इसकी कीमत चुकानी पड़ती है। इससे वैश्विक खाद्य व्यापार को भी बहुत नुकसान होता है।

इंफ्लेशन पर 500 शब्दों में निबंध 

इंफ्लेशन पर 500 शब्दों में निबंध (Essay on Inflation in Hindi) नीचे दिया गया है-

इंफ्लेशन एक फंडामेंटल इकोनॉमिक कांसेप्ट है। किसी भी देश के इंफ्लेशन व्यक्तिगत उपभोक्ताओं से लेकर बड़े निगमों और सरकार तक सभी को प्रभावित करती है। इंफ्लेशन एक प्रकार की दर है जिसमें वस्तुओं और सेवाओं के लिए कीमतों का सामान्य स्तर बढ़ता है। इसके परिणामस्वरूप लोगों को किसी भी वस्तु को लेने के लिए पहले से अधिक पैसा देना पड़ता है। वहीं जैसे-जैसे वस्तुओं की कीमतें बढ़ती हैं, वैसे वैसे आपके पैसे से पहले की तुलना में कम वस्तुओं को खरीदा जा सकता है। यह किसी भी देश की आर्थिक स्थिरता और उसके नागरिकों की आर्थिक स्थिति को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकती है। इंफ्लेशन को समझना हम सभी के महत्वपूर्ण है। यह दैनिक जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करती है, जिसमें जीवन यापन की लागत, बचत, निवेश और मजदूरी भी शामिल है।  

इंफ्लेशन अर्थशास्त्र में सबसे प्रसिद्ध शब्दों में से एक है। इसने कई देशों में लंबे समय तक अस्थिरता पैदा की है। सेंट्रल बैंकर इंफ्लेशन पर अपने सख्त रुख के लिए पहचाने जाने का प्रयास करते हैं जिन्हें “इंफ्लेशन हॉक्स” के रूप में जाना जाता है। आसान शब्दों में समझें तो इंफ्लेशन वह दर है जिस पर समय अवधि में कीमतें बढ़ती हैं। इसे आमतौर पर व्यापक रूप से मापा जाता है, जैसे कीमतों में समग्र वृद्धि या किसी देश में रहने की लागत में वृद्धि कितनी हुई है। इसे विशेष रूप से विशेष वस्तुओं जैसे भोजन या सेवाओं, रेस्टोरेंट में खाना खाने या अन्य सेवा लेने के संदर्भ में भी उपयोग किया जा सकता है। इससे यह समझा जा सकता है कि इन चीज़ों में कितनी वृद्धि हुई है। संदर्भ चाहे जो भी हो इंफ्लेशन यह दर्शाती है कि एक निश्चित समय, आम तौर पर एक वर्ष में वस्तुओं या सेवाओं का एक सेट कितना महंगा हो गया है।

पैसे की आपूर्ति में वृद्धि इंफ्लेशन का मुख्य कारण है। यह किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के भीतर विभिन्न तरीकों से हो सकता है। क्योंकि जनता के पास पैसे की अधिक उपलब्धि से इंफ्लेशन बढ़ने की संभावना भी बढ़ती है इसका मुख्य कारण यह है कि लोगों के पास अधिक पैसे आने से वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ती है जिससे उनकी कीमत में वृद्धि हो जाती है। इसलिए सरकार रिसेशन के समय देश की मुद्रा को मजबूत रखने के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर देते हैं   

कई बार देश अपने बैंकों में अधिक मुद्रा छापकर और नागरिकों को वितरित करते हैं। कई बार मुद्रा के मूल्य को कानूनी रूप से कम किया जाता है। कई बार देशों द्वारा मुद्रा के मूल्य को कानूनी रूप से कम करके भी किया जाता है। बैंकों से सरकारी बॉन्ड खरीदकर बैंकिंग प्रणाली के माध्यम से नया पैसा बनाना, रिजर्व खातों में पैसा जोड़ना भी इसमें शामिल हैं। इंफ्लेशन उत्पन्न करने वाले अन्य कारकों में आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान और आवश्यक वस्तुओं की कमी भी शामिल है, जो उनकी कीमतों को बढ़ा सकती है।

इंफ्लेशन उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति को कम करती है, जिससे समय के साथ एक निश्चित राशि से कम समान खरीदा जा सकता है। चाहे इंफ्लेशन दर 2% हो या 4%, उससे क्रय शक्ति कम हो जाती है। बस उच्च दरों पर अधिक तेज़ी से कम होती है। इंफ्लेशन को कंज्यूमर प्राइस इंडैक्स द्वारा मापा जाता है।

कम आय वाले उपभोक्ता जो ज़रूरतों पर ज़्यादा खर्च करते हैं, इंफ्लेशन से ज़्यादा प्रभावित होते हैं। अस्थिर खाद्य और ऊर्जा कीमतों को छोड़कर, कोर इंफ्लेशन अक्सर इस प्रभाव को नज़रअंदाज़ कर देती है। कम आय वाले लोगों के पास रियल एस्टेट जैसी संपत्ति होने की संभावना कम होती है, जो इंफ्लेशन के खिलाफ़ बचाव कर सकती है।

मॉडरेट इंफ्लेशन एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था का संकेत देती है, लेकिन उच्च इंफ्लेशन बढ़ती उम्मीदों और वेज-प्राइस स्पाइरल को जन्म दे सकती है। अधिक इंफ्लेशन के लिए खराब नीतिगत प्रतिक्रियाओं के परिणामस्वरूप हाइपरइन्फ्लेशन हो सकता है। हाइपरइन्फ्लेशन कीमतों में अत्यंत तीव्र और अनियंत्रित वृद्धि है, जो प्रायः प्रति माह 50% से अधिक होती है। मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए, केंद्रीय बैंक अक्सर ब्याज दरें बढ़ाते हैं, जिससे उधार लेने की लागत बढ़ती है और बचत को बढ़ावा मिलता है। उच्च ब्याज दरें आर्थिक गतिविधि और जोखिम लेने पर अंकुश लगाती हैं, जिससे इंफ्लेशन को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।

इंफ्लेशन निश्चित दर वाले ऋण लेने वालों को लाभ पहुँचाती है। इंफ्लेशन छोटी अवधि में विकास और रोजगार को बढ़ाती है। इंफ्लेशन व्यय और निवेश को प्रोत्साहित करके आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकती है, जिससे रोजगार सृजन होता है।

इंफ्लेशन के कारणों और परिणामों को समझना किसी भी व्यक्ति के लिए इन्फॉर्म्ड डिसीजन लेने और प्रभावी आर्थिक नीतियों को विकसित करने के लिए आवश्यक है। जैसा कि इतिहास में हमने देखा है, हाइ इंफ्लेशन और डिफ्लेशन दोनों ही नुकसानदायक हो सकते हैं। इस वजह संतुलन बनाए रखने के लिए सावधानीपूर्वक आर्थिक प्रबंधन की आवश्यकता होती है। इंफ्लेशन और इसके प्रभावों के बारे में जानकारी रखने से, व्यक्ति और नीति निर्माता इससे उत्पन्न चुनौतियों का बेहतर तरीके से सामना कर सकते हैं और स्थायी आर्थिक विकास और स्थिरता की दिशा में काम कर सकते हैं।

सम्बंधित आर्टिकल्स  

एक बाज़ार अर्थव्यवस्था में, वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें हमेशा बदल सकती हैं। कुछ कीमतें बढ़ती हैं; कुछ कीमतें गिरती हैं। मुद्रास्फीति तब होती है जब वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में व्यापक वृद्धि होती है, न कि केवल व्यक्तिगत वस्तुओं की; इसका मतलब है, आप कल की तुलना में आज 1 से कम में खरीदारी कर सकते हैं।

इंफ्लेशन को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक द्वारा मापा जाता है, और कम दरों पर, यह अर्थव्यवस्था को स्वस्थ रखता है। लेकिन जब इंफ्लेशन की दर तेजी से बढ़ती है, तो इसका परिणाम कम क्रय शक्ति, उच्च ब्याज दरें, धीमी आर्थिक वृद्धि और अन्य नकारात्मक आर्थिक प्रभाव हो सकता है। 

आधुनिक समय में इंफ्लेशन को नियंत्रित करने का पसंदीदा तरीका देश के केंद्रीय बैंक द्वारा लागू की गई संकुचनकारी मौद्रिक नीतियों के माध्यम से है। विकल्प कीमतों पर एक सीमा है, जिसका सफलता का बहुत अच्छा रिकॉर्ड नहीं है। किसी भी मामले में, नरम लैंडिंग को खींचना मुश्किल है।

कोर इंफ्लेशन वस्तुओं और सेवाओं की लागत में परिवर्तन है, लेकिन इसमें खाद्य और ऊर्जा क्षेत्र की लागत शामिल नहीं है। खाद्य एवं ऊर्जा की कीमतें इस गणना से मुक्त हैं, क्योंकि उनकी कीमतें बहुत अस्थिर हो सकती हैं या उनमें अत्यधिक उतार-चढ़ाव हो सकता है।

आशा है कि आपको इस ब्लाॅग में Essay on Inflation in Hindi के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी। इसी तरह के अन्य निबंध पर ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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महंगाई पर निबंध | Essay On Inflation In Hindi

Essay On Inflation In Hindi प्रिय विद्यार्थियों आपका स्वागत हैं आज हम  महंगाई पर निबंध आपके लिए यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं. तेजी से बढ़ती महंगाई आज वैश्विक समस्या का रूप धारण कर चुकी हैं.

महंगाई की समस्या पर निबंध में हम कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10 के बच्चों के लिए 5,10 लाइन, 100, 200, 250, 300, 400 और 500 शब्दों बढ़ती महंगाई की समस्या पर निबंध बता रहे हैं.

महंगाई पर निबंध Essay On Inflation In Hindi

महंगाई पर निबंध Essay On Inflation In Hindi

सखी सैया खूब कमात हैं महंगाई डायन खाय जात हैं” ये कुछ बोल आज की परिस्थति को स्पष्ट बया करते हैं. आज का मध्यवर्गीय परिवार सबसे अधिक महंगाई की मार झेल रहा हैं. 

महंगाई की समस्या धीरे-धीरे दानवी रूप ले रही हैं. जो इसानों को जीते जी मार डालने में कोई कसर नही छोड़ रही हैं.

आज के समय में एक साधारण इंसान के लिए मेहनत कर अपने परिवार का गुजारा करना मुश्किल सा हो गया हैं. यहाँ तक की रोटी कपड़ा और मकान जैसी बुनियादी चीजो की पूर्ति करना बड़ा मुश्किल हैं.

महंगाई का अर्थ वस्तुओ की कीमत में वृद्धि से हैं. यह समस्या सिर्फ भारत में ही नही बल्कि दुनिया के अधिकतर देश भी महंगाई की मार झेल रहे हैं.

जीवन के लिए जरूरतमंद कीमतों में बढ़ोतरी के कारण आज आलम यह हैं, कि साधारण व्यक्ति जी तोड़ मेहनत के बावजूद अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ नही कर पाता हैं.

वैश्विक परिद्रश्य में आर्थिक समस्याओं पर गौर करे, तो ये महंगाई पहले स्थान पर काबिज हैं. क्युकि इसकी वजह से ही अधिकतर समस्याओँ का जन्म हुआ हैं.

महंगाई का सम्बन्ध वस्तुओं की सम्पूर्ण मांग और आपूर्ति से होता हैं. जनसंख्या बढ़ोतरी से प्रत्येक वस्तु की मांग पहले से कई गुना बढ़ने लगी, पर्याप्त मात्रा में उत्पादन ना होने के कारण उनकी कीमतों में वृद्धि स्वाभाविक हैं.

इसके अलावा एक वस्तु के उत्पादन से ग्राहक तक पहुचने तक कई चरणों से गुजरना पड़ता हैं. जिसमे कुछ ऐसे असामाजिक संस्थाएँ एवं तत्व होते हैं, जो प्रत्यक्ष रूप से इनकी आपूर्ति को प्रभावित करते हैं.

वर्तमान समय में हमारे देश में दो विभिन्न मापको द्वारा महंगाई का आकलन किया जाता हैं, जिनमे पहला कंज्यूमर वैल्यू इंडिकेटर और दूसरा स्टॉक वैल्यू इंडिकेटर.

प्रति 7 दिनों में इन मापको द्वारा मुद्रा स्फीति की दर वस्तु के वास्तविक मूल्य और महंगाई का आकलन किया जाता हैं. महंगाई का वास्तविक आधार कंज्यूमर वैल्यू इंडिकेटर ही होता हैं.

महंगाई के कारण

महंगाई के लिए मुख्य तौर पर आर्थिक कारणों को ही जिम्मेदार ठहराया जाता हैं, जबकि इसके पीछे कई सामाजिक और राजनितिक कारण जुड़े होते हैं.

जिनमे मुद्रास्फीति, जनसंख्या विस्फोट, मुनाफाखोरी, जमाखोरी, गरीबी-अमीरी का अंतर, भ्रष्टाचार. जिनमे सबसे मुख्य मुद्रास्फीति माना जाता हैं,

इसके कारण न सिर्फ वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी होती हैं, बल्कि मुद्रा की वैल्यू में भी गिरावट आती हैं. दूसरी तरफ आज जिस गति से लोगों की संख्या बढ़ रही हैं, उनकी बनिस्पद संसाधन नही बढ़ रहे हैं.

अधिक मांग और कम आपूर्ति के कारण स्वाभाविक रूप से महंगाई में बढ़ोतरी होती हैं. हाल ही के कुछ वर्षो में प्याज, टमाटर और दालों के भावों में अनियंत्रित वृद्धि हुई हैं.

जिसके कारण कृषि के लिए आवश्यक सामान और बीज, उर्वरक आदि में बढ़ोतरी दर्ज हुई हैं. इस सम्बन्ध में सरकार द्वारा सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अपनाते हुए मध्यमवर्गीय परिवारों तक सभी आवश्यक वस्तुओं के पहचानें का सार्थक प्रयास किया हैं.

फिर भी हमारे सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार और सरकारी तन्त्र के ढीले रवैये के कारण इस प्रकार के कार्यक्रम प्रभावी रूप से क्रियान्वित नही किये जा सके हैं. कई बार देखा गया हैं.

कृषि उत्पाद जैसे दाल और प्याज टमाटर की बंफर उत्पादन के बावजूद भी उनकी कीमतों में गिरावट नही आ पाती हैं. जिनकी मुख्य वजह कालाबजारी, जमाखोरी और हमारे तन्त्र में व्याप्त भ्रष्टाचार अहम कारण हैं.

जमाखोरी का समूह इस प्रकार की स्थतियो को पैदा करने का अवसर हमेशा ढूढ़ ही लेता हैं. अधिक मात्रा में उत्पादन के तदोपरांत वे उन उत्पादों को क्रय कर संग्रहित कर लेते हैं.

तथा बाजार में स्वनिर्मित कमी का माहौल बना दिया जाता हैं. इसी का नतीजा अधिक मांग और उत्पादन की वस्तुओ की कमी के कारण महंगाई में बढ़ोतरी हो जाती हैं.

इस अवसर का फायदा उठाकर कम कीमत में खरीदी गईं वस्तुओं को अधिक दाम में बेचकर जमाखोर अधिक लाभ कमाते हैं. सामान्यता महंगाई के कारन तेजी से आर्थिक विकास और अर्थव्यवस्था सूचकांक में वृद्धि से अधिक नुक्सान ही वास्तविक रूप से देखने को मिलता हैं.

महंगाई का ही नतीजा हैं. एक समय दाल और अन्य हरी सब्जियों की कीमत 15-20 रूपये के आस-पास थी. जो अब अनियंत्रित वृद्दि के साथ 200 रूपये प्रति किलों से अधिक हो चुकी हैं.

आम आदमी की पहुच से आवश्यक वस्तुओ की दुरी बढ़ने के कारण उनके जीवन स्तर और औसत गरीबी प्रतिशत में इजाफा हुआ हैं.

भ्रष्ट-आचार को बंद कर दों, 

थोड़ी कंम कर दों महंगाई कों।।  घोटाले पे घोटाले कब तक होंगे,

कब तक भुख मरते रहेंगे आमलोग। 

कंब तक आब्रू लूटती रहेगी। 

कब तक रहेगा क़ुरिया में शोक।।

लोगों द्वारा नाजायज तरीके से धन कमाने की इस बदनीयत के कारण समाज में गरीब-अमीर की अस्मानता का ग्राफ निरंतर बढ़ रहा हैं. धन सम्पन्न लोगों पर इसका कोई बड़ा फर्क नही पड़ रहा हैं.

तेजी से बढती इस महंगाई के कारण आम जन का जीना दूभर हो गया हैं, फिर भविष्य निधि, किसी व्यवसाय के लिए अथवा धन की बचत करने का सवाल ही खत्म हो जाता हैं.

वे रोजमर्रा की वस्तुओं की पूर्ति भी ठीक ढंग से नही कर पाते हैं. और गरीबी का स्तर निरंतर बढ़ता ही जाता हैं.

पॉकेट में पीड़ा भरी कौन सुने फ़रियाद यह महंगाई देखकर वह दिन आते याद वह दिन आते याद, जेब में पैसे रखकर सौदा लाते थे बाजार से थैला भरकर धक्का मारा युग ने मुद्रा की क्रेडिट में, थैले में रूपये हैं, सौदा हैं पॉकेट में |

आज हमारे देश में जिस तरह महंगाई में निरंतर बढ़ोतरी हो रही हैं, उनके दुष्परिणाम हर दिन देखने को मिल रहे हैं.

इसके परिणामो के रूप में देश की आर्थिक तरक्की में रूकावट, गरीबी का ग्राफ बढ़ना, गरीब अमीर के बिच के अंतर का बढ़ना, शिक्षित बेरोजगारी जैसे कई बड़े भयकर परिणाम सामने आ रहे हैं.

महंगाई कम करने के उपाय

आज के समय में निरंतर बढ़ रही महंगाई पर लगाम कसने की सख्त आवश्यकता हैं. मुख्य रूप से सभी को अन्न उपजाकर देने वाले कृषक के लिए बीज, उवरक, खेती के उपकरण, बिजली जैसे साधन सस्ते उपलब्ध होने पर उत्पादन पर लगने वाली लागत में कमी आएगी,

इससे वस्तुओ की वास्तविक कीमत में कमी हो सकती हैं. जो महंगाई को कम करने में मददगार साबित हो सकती हैं.

दूसरी तरफ सरकारी द्वारा चलाई जा रही सार्वजनिक वितरण प्रणाली में कमी करके, भ्रष्टाचार करने वाले लोगों पर लगाम कसकर, मुद्रास्फीति के स्तर को कम करने के साथ ही जमाखोरी, कालाबाजारी और मिलावट खोरी पर कड़े नियम बनाकर महंगाई को नियंत्रित किया जा सकता हैं.

किसी भी देश की आर्थिक तरक्की की के लिए बेलगाम बढती महंगाई सबसे खतरनाक संकेत हैं. हमारे देश में यदि सरकार और अन्य गैर सरकारी संस्थाओ के सहयोग से महंगाई को कम करने के लिए समय रहते आवश्यक कदम नही उठाएं गये तो निश्चित तौर पर आने वाले समय में कई खतरनाक विकृतियों को बढ़ावा मिलेगा.

देश की तरक्की ठप हो सकती हैं. महंगाई की मार से सबसे अधिक प्रभावित आम आदमी के जीवन स्तर पर सबसे अधिक बुरा प्रभाव पड़ सकता हैं. इसलिए समय रहते महंगाई की बढ़ती इस रफ़्तार को रोकने हेतु कारगर उपाय करने की आवश्यकता हैं.

बढ़ती महंगाई घटता जीवन स्तर- Mehangai Par Nibandh- Essay On Inflation In Hindi 

प्रस्तावना- वर्तमान काल में हमारे देश में महंगाई एक विकराल समस्या की तरह निरंतर बढ़ती जा रही हैं. पिछले कुछ वर्षों में इसका रूप और भयानक हो गया हैं.

मूल्य वृद्धि ने जनता की कमर तोड़ दी है. वस्तुओं के भाव आसमान छूने लगे हैं. इस कारण आम जनता आर्थिक तंगी से परेशान हैं.

महंगाई के कारण  – यह महंगाई कई कारणों से बढ़ी है. गलत अर्थनीति व प्रशासन की कमजोरी के कारण व्यपारियो ने मनमाने भाव बढ़ा दिए हैं. मुनाफे के लोभ में व्यापारी माल को दबाकर रख लेते हैं.

जिससे बाजार में माल की कमी पड़ जाती हैं. और उसके भाव बढ़ जाते हैं. उत्पादन की कमी होने से वस्तुओं के भाव बढ़ जाते हैं.

माल के वितरण की व्यवस्था ठीक न होने या माल की पूर्ति न होने से भी व्यापारी मूल्य बढ़ा देते हैं. जनसंख्या की तीव्र वृद्धि भी एक कारण है. पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्य वृद्धि से मालभाड़े में वृद्धि होने से भी महंगाई आसमान को छू रही हैं.

कर्मचारियों की वेतन वृद्धि का भी मूल्यों पर अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता हैं. रूपये की क्रय शक्ति कम होने तथा बार बार आम चुनाव होने से भी महंगाई बढ़ी हैं.

महंगाई का कुप्रभाव-  बढ़ती हुई महंगाई से समाज में असंतोष फ़ैल रहा हैं. युवकों में तोड़फोड़ की प्रवृति पनप रही हैं. अपराधों को बढ़ावा मिल रहा हैं.

इसके फलस्वरूप आर्थिक विषमता के कारण समाज में इर्ष्या, द्वेष, कुंठा आदि विकार अशांति बढ़ा रहे हैं. रोटी, कपड़ा, मकान से सब परेशान हैं. सरकारी तंत्र महंगाई पर कारगर नियंत्रण नहीं रख पा रहा हैं.

सामान्य रूप से निम्न मध्यम वर्ग को महंगाई के कारण अनेक परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं. क्रय शक्ति कमजोर होने से इस वर्ग के सामाजिक जीवन में भुखमरी फ़ैल रही हैं. संतुलित आहार न मिलने से अनेक रोग फ़ैल रहे हैं.

समस्या का समाधान-  मूल्यवृद्धि की समस्या के समाधान का प्रथम उपाय यह है कि व्यापारियों, उद्योगपतियों तथा भ्रष्ट कर्मचारियों का नैतिक उत्थान किया जाए. कालाबजारी, मुनाफाखोरी पर पुर्णतः अंकुश लगाया जाए.

सरकार आवश्यक वस्तुओं के उचित मूल्य पर वितरण की व्यवस्था स्वयं करे. साथ ही जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश लगाकर उत्पादन दर बढाई जाए. जनता में प्रदर्शन की प्रवृति पर अंकुश लगाया जाए और इसके लिए जन जागरण भी आवश्यक हैं.

उपसंहार- महंगाई पर नियंत्रण पाना जरुरी हैं. बढती हुई महंगाई से निम्न वर्ग की क्रय शक्ति ही कम नही नही हो रही, चोरी, लूट मार की दुष्प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिल रहा हैं. परिणामस्वरूप सामाजिक जीवन में अशांति और असहयोग व्याप्त हैं.

Essay On Inflation In Hindi Language For Kids In 400 Words

प्रस्तावना – मुक्त बाजार, भूमंडलीकरण का दुष्प्रचार, विनिवेश का बुखार, छलांगे मारता शेयर बाजार, विदेशी निवेश के लिए पलक पावड़े बिछाती हमारी सरकार, उधार बांटने को बैंकों के मुक्त द्वार, इतने पर भी गरीब और निम्न मध्यम वर्ग पर महंगाई की मार, यह विकास की कैसी विचित्र अवधारणा हैं.

हमारे करमंत्री नए नए करों की जुगाड़ में तो जुटे रहते हैं, किन्तु महंगाई पर अंकुश लगाने में उनके सारे हाईटेक हथियार कुंद हो चुके हैं.

महंगाई का तांडव- जीवन यापन की वस्तुओं के मूल्य असाधारण रूप से बढ़ जाना महंगाई हैं. हमारे देश में महंगाई एक निरंतर चलने वाली समस्या बन चुकी हैं. इसकी सबसे अधिक मार सीमित आय वाले परिवार पर पड़ती हैं.

आज आम आदमी बाजार में कदम रखते हुए हडबडाता है. दैनिक उपभोग की वस्तुओं के भाव बढ़ते ही जा रहे हैं. आज वही वस्तुएं सबसे अधिक महंगी हो रही हैं. जिनके बिना गरीब आदमी का काम नहीं चल सकता.

महंगाई के कारण- महंगाई बढने के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं.

  • उत्पादन कम और मांग अधिक
  • जमाखोरी की प्रवृत्ति
  • सरकार की अदूरदर्शी नीतियाँ तथा भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों और भ्रष्ट व्यवसायियों की सांठ गाँठ
  • जनता में वस्तु संग्रह की प्रवृत्ति
  • अंध परम्परा और दिखावे के कारण अपव्यय
  • जनसंख्या में निरंतर हो रही वृद्धि
  • सरकारी वितरण व्यवस्था की असफलता
  • अगाऊ सौदे और सट्टेबाजी

फिजूलखर्ची और प्रदर्शनप्रियता भी महंगाई बढने का एक कारण हैं. ऐसे लोग शादी विवाह में अनाप शनाप खर्च करते हैं और रहने को राजाओं जैसे महल बनाते हैं. आज राजतंत्र तो नहीं है किन्तु ये लोग लोकतंत्र में भी राजाओं की तरह जीते हैं उनको कबीर का यह दोहा याद नहीं रहा हैं.

कहा चिनावै मेडिया लांबी भीती उसारि घर तो साडे तीन हथ घणा त पौने च्यारि

महंगाई का प्रभाव- महंगाई ने भारतीय समाज को आर्थिक रूप से जर्जर कर दिया है, पेट तो भरना ही होगा, कपड़े मोटे झोटे तो पहनने ही होंगे, सिर पर एक छत का इंतजाम तो करना ही होगा. मगर शुद्ध और मर्यादित आमदनी से तो यह संभव नहीं हैं.

परिणामस्वरूप अनैतिकता और भ्रष्टाचार के चरणों में समर्पण करना पड़ता हैं. निम्न वर्ग और मध्यम वर्ग का तो जीवन ही दुष्कर हो गया हैं. महंगाई के कारण ही अर्थव्यवस्था में स्थिरता नहीं आ पा रही हैं.

महंगाई रोकने के उपाय- महंगाई रोकने के लिए आवश्यक हैं कि बैंक अति उदारता से ऋण देने पर नियंत्रण करे, इससे बाजार में मुद्रा प्रवाह बढ़ता हैं. जीवन स्तर और प्रदर्शन के नाम पर धन का अपव्यय रोका जाना चाहिए, जमाखोरी और आवश्यक वस्तुओं के वायदा कारोबार पर रोक लगनी चाहिए,

आयात और निर्यात में संतुलन रखा जाना चाहिए. अंतिम उपाय है कि जनता महंगाई के विरुद्ध सीधी कार्यवाही करे. भ्रष्ट अधिकारियों तथा बेईमान व्यापारियों का घिराव, सामाजिक बहिष्कार तथा तिरस्कार किया जाय.

उपसंहार- महंगाई विश्वव्यापी समस्या हैं अंतर्राष्ट्रीय परिस्थतियां भी देश में महंगाई के लिए उत्तरदायी हैं. उदारीकरण के नाम पर विदेशी पूंजीनिवेशकों को शुल्कों में छूट तथा करों से मुक्ति प्रदान करना भी महंगाई को बढाता हैं.

यह विचार करने योग्य बात हैं. कि महंगाई खाने पीने की चीजों पर ही क्यों बढ़ती है, मोटरकारों, एसी तथा विलासिता की अन्य वस्तुओं पर क्यों नही?

महंगाई की समस्या पर निबंध Essay On Problem Of Inflation In Hindi

आज विश्व भर में मध्यम वर्ग महंगाई और तेजी से बढ़ते मूल्य वृद्धि की समस्या सामने आ रही हैं. भारत भी मूल्य वृद्धि की समस्या से अछूता नहीं हैं. महंगाई डायन खाये जात हैं कहावत से सभी परिचित हैं.

किस तरह एक आदमी का गुजारा करना कितना मुश्किल हो चुका हैं  भले ही  आवाम को अंग्रेजों से स्वतंत्र हो गई मगर आज वह मूल्य वृद्धि की प्रताड़ना झेल   रही हैं. मूल्य वृद्धि की समस्या और समाधान का निबंध यहाँ जानेगे.

बढ़ रहे हैं मूल्य तो क्या बढ़ रहा है देश गिर रहे अधिकांश तो क्या उठ रहे हैं शेष

मुक्त बाजार, भूमंडलीकरण का दुष्प्रचार, विनिवेश का बुखार, छलांगे लगाता शेयर, बाजार, विदेशी निवेश के लिए पलक पावड़े बिछाती हमारी सरकार, उधार बांटने को बैंकों के मुक्त द्वार इतने पर भी गरीब और निम्न मध्यम वर्ग पर महंगाई की मार,यह विकास की कैसी विचित्र अवधारणा हैं.

हमारे कर मंत्री नए नए करों की जुगाड़ में तो जुटे रहते हैंकिन्तु महंगाई पर अंकुश लगाने में उनके सारे हाईटेक कुंद हो रहे हैं.

महंगाई की विनाश लीला – हमारे देश में महंगाई एक निरंतर चलने वाली समस्या बन चुकी हैं. इसकी सबसे अधिक मार सिमित आय वाले परिवार पर पड़ती हैं. लोगों की आय बाजार के अनुरूप नहीं बढ़ रही हैं.

अनाज, चीनी, तेल, ईधन, दाल, सब्जी, पेट्रोल, डीजल सभी के भाव आसमान को छू रहे हैं. पारिवारिक बजट गडबडा रहे हैं. निम्न वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग का जीना दूभर होता जा रहा हैं.

महंगाई के कारण – महंगाई बढ़ने के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं.

  • जमाखोरी की प्रवृति
  • जनता में वस्तुओं के संग्रह की प्रवृति

महंगाई का स्वरूप – महंगाई सुरसा के मुख की तेजी से बढ़ रही हैं. सर्वाधिक मूल्य वृद्धि खाने पीने की वस्तुओं पर हो रही हैं. इससे गरीब लोग बुरी तरह त्रस्त हैं.

उनका स्वास्थ्य गिर रहा है तथा शरीर निर्बल हो रहा हैं. गेहूँ भंडारण के अभाव में भीगकर सड़ जाता हैं परन्तु सरकार उसे जरूरतमंदों में बाँट नहीं पाती.

महंगाई के प्रभाव – महंगाई ने भारतीय समाज को आर्थिक रूप से जर्जर किया है. आवश्यक जरूरतों की पूर्ति भी साफ़ और सर्वविदित आमदनी से तो सम्भव नहीं हैं. परिणामस्वरूप समाज में अनैतिकता और भ्रष्टाचार पनप रहा हैं.

महंगाई के कारण ही अर्थव्यवस्था में स्थिरता नहीं आ पा रही हैं. समाज में चोरी, छीना झपटी, डकैती आदि अपराध पनप रहे हैं. मूल्य वृद्धि सामाजिक अशांति का कारण भी बन सकती हैं.

महंगाई रोकने के उपाय – महंगाई को रोकने के लिए आवश्यक है कि बैंक अति उदारता से ऋण देने पर नियंत्रित करें. इससे बाजार में मुद्रा प्रवाह बढ़ता हैं. जीवन स्तर  और  प्रदर्शन के नाम पर  धन का अपव्यय रोका जाना  चाहिए.

जमाखोरी और आवश्यक वस्तुओं के  वायदा कारोबार पर रोक लगनी चाहिए. आयात  और  निर्यात व्यापार में संतुलन बनाया जाना चाहिए. उच्च पदाधिकारियों द्वारा गैर जिम्मेदारीपूर्ण बयानबाजी नहीं की जानी चाहिए.

इस दिशा में अंतिम उपाय जनता द्वारा सीधी कार्यवाही हैं. जमाखोर व्यापारियों और भ्रष्ट अधिकारियों का घेराव और सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए.

उपसंहार – अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियाँ भी एक सीमा पर महंगाई के लिए जिम्मेदार हैं लेकिन इनकी आड़ लेकर सरकार अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकती.

रिजर्व बैंक और सरकार के तकनीकी जादू टोनों से अगर महंगाई रूकनी होती तो कब की रूक जाती. मगर यहाँ तो हालत ये हैं मर्ज बढ़ता ही गया ज्यों ज्यों दवा की, जब तक मुक्त व्यापार के पाखंड की दुहाई देना छोड़ कर सरकार की बड़ी कार्यवाही नहीं करेगी, महंगाई नहीं रूकेगी.

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महंगाई की समस्या पर निबंध Essay on Price Rise or Inflation in Hindi

महंगाई की समस्या पर निबंध Essay on Inflation in Hindi

परीक्षाओं में अक्सर बच्चों को महंगाई की समस्या पर निबंध (Essay on Inflation in Hindi) पूछ लिया जाता है। इसमें महंगाई का अर्थ, कारण, प्रभाव, समाधान व उपाय, मापने का तरीका टॉपिक के विषय में जानकारी दी गई है।

Table of Content

दुनिया चाहे कितना भी प्रगति क्यों ना कर ले लेकिन कुछ समस्याएं ऐसी होती है, जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती।

महंगाई की बात की जाए तो यह किसी एक देश की समस्या नहीं है, बल्कि एक वैश्विक समस्या है, जो दिन-ब-दिन अपना आकार बढ़ाते ही जा रही है। फल और सब्जियों से लेकर आवश्यक ईंधनों के भाव आसमान छू रहे हैं।

महंगाई का अर्थ क्या है? What is the meaning of inflation in Hindi?

दिन प्रतिदिन बुनियादी आवश्यकता वाले सामग्रियों का भाव एकाएक बढ़ते ही जा रहा है, जो मध्यम वर्गीय और गरीब परिवारों के लिए सिरदर्द बन चुका है।

महंगाई के मुख्य कारण Main causes of inflation in Hindi

निरंतर सामग्री और सेवाओं के मूल्य में होने वाली बढ़ोतरी के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं। महंगाई की दर घटाने के लिए देश की सरकार अक्सर नियम कानून लाया करती हैं, लेकिन मुश्किल से यह देखने को मिलता है की आम लोगों को इस समस्या से राहत मिली हो।

इसी कारण एकाएक वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य बढ़ते जाते हैं। यही कारण है की आवश्यक खाद्यान्न पदार्थ और अन्य चीजों को दूसरे देशों से आयात करना पड़ता है, जो काफी महंगा होता है।

यह सभी उदाहरण भ्रष्टाचार के हैं, जिनका उपाय अगर जल्दी नहीं निकाला गया तो यह बड़ी चुनौती साबित हो सकती है।

महंगाई के प्रभाव Effects of inflation in Hindi

महंगाई के कारण किसी भी देश की आर्थिक स्थिति गड़बड़ा जाती है, जो अर्थव्यवस्था के लिए एक गंभीर खतरा है। आपको बता दें कि जब कभी भी महंगाई अपना प्रभाव डालती है तो इससे अमीर और अधिक अमीर बन जाता है तथा गरीब और गरीब हो जाता है।

साधारण सी बात है यदि किसी व्यक्ति को उसके आवश्यकतानुसार चीजें जैसे कि भोजन या अन्य चीज नहीं प्राप्त हो पाएंगी तो उसे मजबूरन गलत रास्ते का सहारा लेना पड़ेगा। समाज में महंगाई के कारण एक बड़ा युवा वर्ग गलत दिशा में जा सकता है।

ऐसी स्थिति में मध्यम वर्गीय और गरीब परिवार जो अपना दो वक्त का भोजन मुश्किल से जुटा पाते हैं, उन्हें वह भी नसीब नहीं होता। यदि आवश्यकता अनुसार पोषण युक्त आहार लोगों तक नहीं पहुंचेगा तो मृत्यु दर में भी बढ़ोतरी होगी इसके अलावा भुखमरी की समस्या भी अपना पैर पसारती रहेगी।

यदि किसी देश में महंगाई एकाएक बढ़ती रहती है, तो संसाधनों की आपूर्ति करने के लिए दूसरे देशों से उत्पादक को आयत करने की आवश्यकता होती है। लेकिन खर्च यदि आवक से अधिक होता है तो यह अर्थव्यवस्था के लिए बहुत ही नकारात्मक प्रभाव डालता है।

महंगाई के कारण बेरोजगारी की समस्या भी उत्पन्न होती है। क्योंकि एक बार यदि किसी वस्तु या सेवा की कीमत अधिक हो जाती है तो उसकी उत्पादक क्षमता भी घटने लगती है और निश्चित मात्रा में ही उत्पाद किया जाता है। ऐसे में जिन लोगों को इस प्रक्रिया के दौरान रोजगार प्राप्त हो रहा था वे सभी बेरोजगार हो जाते हैं।

महंगाई के समाधान Solution to inflation in Hindi

यदि कोई समस्या अपने शुरुआती स्तर पर होती है, तो उसे काबू कर पाना बहुत हद तक सरल हो जाता है। यदि भारत की बात की जाए तो महंगाई ने आम लोगों की कमर तोड़ दी है।

लेकिन ऐसी बात नहीं है, कि महंगाई को काबू नहीं किया जा सकता। महंगाई को काबू करने के कई सारे रास्ते हैं, जिन पर यदि उचित रूप से अमल किया जाए, तो महंगाई की समस्या का समाधान अवश्य किया जा सकता है।

लेकिन यह सोचने वाली बात है की सरकारी अर्थ तंत्र महंगाई को अब तक उचित ढंग से नियंत्रित क्यों नहीं कर पा रही है। सर्वप्रथम देश की सरकारों को अपने बजट में कुछ उचित परिवर्तन करने चाहिए जो मध्यम वर्गीय और अन्य लोगों के हित में हो।

सरकारी तंत्र को जमाखोरी और कालाबाजारी करने वाले व्यापारियों, मंत्रियों और अन्य लोगों पर कड़ी नजर रखनी होगी और सख्त कानून बनाने होंगे। यदि ऐसे किसी जुर्म में कोई व्यक्ति पकड़ा जाता है तो उसे कड़ी से कड़ी सजा होनी चाहिए, क्योंकि जमाखोरी और कालाबाजारी महंगाई के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं।

आम आदमी महंगाई की समस्या से कैसे बचें?: तरीके Tips to Avoid Inflation in Hindi

भारत में बढ़ती महंगाई की समस्या rising inflation in india in hindi.

दुनिया के कुछ बड़े और विकसित देशों में भी महंगाई की समस्या देखी जा सकती है। यदि भारत की बात की जाए तो यह एक विकासशील देश है।

एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार यह बताया गया है कि भारत में आज के समय जितनी महंगाई है, वह आने वाले समय में और भी बढ़ सकती है, जो सभी के लिए एक चिंता की बात है।

महंगाई दर मापने का तरीका How to measure inflation in Hindi?

आप इस लिंक पर जा कर अपना महंगाई दर माप सकते हैं – Inflation Calculator

निष्कर्ष Conclusion

इस लेख में आपने हिंदी में महंगाई की समस्या पर निबंध Essay on Price Rise or Inflation in Hindi पढ़ा। आशा है कि यह लेख आपको अच्छा लगा होगा। अगर यह आर्टिकल आपको पसंद आया हो तो इसे शेयर जरूर करें।

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महँगाई पर निबंध – Essay on Inflation in Hindi

अर्थशास्त्र कि दुनिया का मूल्य-संबंधी सीधा सा सूत्र है कि जब किसी उपभोक्ता वस्तु की मात्रा कम होगी या घटेगी तथा उसको लेने वाले अधिक होंगे तो उसकी कीमत बढ़ेगी।

यही मूल्य वस्तु की अधिकता होने पर घट जाता है या अपने सामान्य स्तर पर पहुंच जाता है। लेकिन प्रायः देखा जाता है कि असामान्य स्थिति में हुई मूल्य-वृद्धि सामान्य दशा में घटती नहीं है और सदा बढ़ते जाने की यह स्थिति एक स्थाई प्रवृत्ति बन जाती है।

मूल्य वृद्धि की यह स्थाई प्रवृति महंगाई है। अपने देश में महंगाई के इतिहासिक स्वरूप पर विचार करते हैं तो पाते हैं कि द्वितीय महायुद्ध के समय यह प्रवृति वस्तुओं के अभाव के कारण उग्र रूप में प्रकट हुई थी।

लोगों को कपड़े तक कोटे से प्राप्त होते थे और तेल के अभाव में अंधेरे में भोजन करना पड़ता था। कुछ वस्तुओं की कीमतें तो आसमान छूने लगी थी।

लेकिन युद्ध के बाद और देश की आजादी के उपरांत यह स्थिति समाप्त हो गई। आजादी के बाद 162 में भारत-चीन युद्ध के समय फिर हमारी अर्थ व्यवस्था पर तनाव आया और मूल्य वृद्धि प्रारंभ हुई।

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1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध और फिर 1971 और 1999 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद जो अर्थव्यवस्था पर अतिरिक्त बोझ पड़ा उसने हमारी अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया और मूल्यवृद्धि एक प्रवृति के रूप में विकसित होने लगी।

पिछले दो तीन दशकों में नेताओं की कृपा से इस देश में भ्रष्टाचार को पनपने का अवसर प्राप्त हुआ है। चुनाव के लिए प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से चंदा लेना, विभिन्न रैलियों और आयोजनों के लिए चंदा लेना एक आम प्रवृति बन गई है।

ये चंदे अधिकतर व्यापारियों से वसूले जाते रहे। कहीं-कहीं व्यापारियों द्वारा अपने लाभ के लिए भी नेताओं पर पैसा व्यय किया जाने लगा। इन सभी अतिरिक्त व्ययों की भरपाई करने के लिए व्यापारी वर्ग ने कीमतों में वृद्धि करनी प्रारंभ कर दी।

इसी तरह पिछले दो दशकों में अपराधी तत्वों की राजनीति में भागीदारी बढ़ गई है। ये अपराधी तत्व राजनीति की खाल पहन कर शेर बन गए हैं।

इधर एक दशक से धीरे-धीरे अपहरण का धंधा भी पनपने लगा है जो पिछले वर्षों में कामधेनू उद्योग बन गया है। अधिकतर अपहरण व्यापारियों या उनके पुत्रों का हो रहा है।

उनसे मोटी रकम ली जा रही है। पिछले दशकों में घूसखोरी एक सर्वस्वीकृत प्रवृत्ति बन गई है। चपरासी से अधिकारी तक 99 प्रतिशत लोग या तो घूसखोर है या कमीशन खोर।

काम करने के लिए पुजापा चढ़ाना एक अघोषित नियम बना हुआ है। इस चारित्रिक पतन का एक पक्ष तो पैसा कमाना है और दूसरा पक्ष उस पैसे से विलासिता की सामग्रियों को खरीदना है।

इसका परिणाम यह हुआ कि विलासिता की आवश्यकताओं से जुड़ी सामग्रियों पर पैसा व्यय करने या उनको सामाजिक हैसियत का प्रतीक मानने की प्रवृत्ति बढ़ी है।

इस कारण उपभोक्ता सामानों की कीमतों पर असर पड़ा है और उससे मुनाफा कमाने की प्रवृत्ति के क्रम में मूल्य वृद्धि हो रही है।

ट्रेड यूनियनों की मजबूत पकड़ के कारण उत्पादक कारखानों में ही नहीं सरकारी तंत्र की नौकरियों में भी अधिक से अधिक सुविधा प्राप्त करने की प्रवृत्ति लगातार बढ़ी है।

महंगाई भत्ता बढ़ना चाहिए। इसके लिए हड़ताल, तोड़-फोड़ आम बात हो गई है। हड़ताल से कार्य दिवसों की क्षति होती है तो तोड़-फोड़ से आर्थिक क्षति।

उद्योगपति इस क्षति की पूर्ति के लिए कीमतों में वृद्धि कर देते हैं तो उसका सीधा असर उपभोक्ताओं पर पड़ता है। तात्पर्य यह है कि अर्थशास्त्र का सीधा-सा सूत्र अब समाजशास्त्र की जटिलता में उलझ गया है।

अनेक कारणों ने मिलकर मंगाई को बढ़ाने में योगदान किया है। इन कारणों का सीधा असर भोजन, वस्त्र जैसी आवश्यक वस्तुओं पर भी पड़ा है और लगातार मूल्य बढ़ने से जनसमुदाय त्राहि-त्राहि कर रहा है।

इस माह सामान की जो कीमत है वहीं अगले माह रहेगी इसकी कोई गारंटी नहीं है। सामान का अभाव नहीं होता लेकिन मूल्य अवश्य बढ़ जाता है।

सरकार द्वारा या जन आंदोलनों द्वारा इसे घटाने या इस पर अंकुश लगाने के सारे प्रयत्न बौने पड़ते जा रहे हैं। हमारी सरकार को इस पर विशेष रूप से ध्यान देकर महंगाई का समाधान अवश्य करना चाहिए।

यह भी पढ़िए –

  • बिहार राज्य पर निबंध हिंदी में
  • भारत देश पर निबंध हिंदी में
  • टेलीविज़न पर निबंध हिंदी में

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What Is Inflation: मुद्रास्फीति दर, मुद्रास्फीति के प्रकार मुद्रास्फीति के कारण, अपस्फीति और खाद्य मुद्रास्फीति

  • By Aryavi Team

मुद्रास्फीति के प्रकार (Types of inflation)

मांग-प्रेरित मुद्रास्फीति: यह तब होता है जब वस्तुओं और सेवाओं की मांग आपूर्ति से अधिक हो जाती है, जिससे कीमतें बढ़ जाती हैं। ऐसा तब हो सकता है जब अर्थव्यवस्था अपने संभावित उत्पादन की तुलना में तेजी से बढ़ती है, जिससे अतिरिक्त मांग पैदा होती है। उदाहरण के लिए, यदि उपभोक्ताओं के पास अधिक आय या आत्मविश्वास है, तो वे वस्तुओं और सेवाओं पर अधिक खर्च कर सकते हैं, जिससे उनकी कीमतें बढ़ सकती हैं।

लागत-प्रेरित मुद्रास्फीति: यह तब होता है जब वस्तुओं और सेवाओं के लिए उत्पादन की लागत बढ़ जाती है, जिससे कीमतें बढ़ जाती हैं। ऐसा तब हो सकता है जब कच्चे माल, श्रम या करों जैसे इनपुट की कीमत में वृद्धि हो। उदाहरण के लिए, यदि तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो इससे परिवहन और ऊर्जा की लागत बढ़ सकती है, जो कई वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों को प्रभावित कर सकती है।

अंतर्निहित मुद्रास्फीति: यह तब होता है जब लोग भविष्य में मुद्रास्फीति जारी रहने की उम्मीद करते हैं, जिससे वे अपने व्यवहार को तदनुसार समायोजित करते हैं। यह एक स्व-पूर्ति भविष्यवाणी बना सकता है, जहां मुद्रास्फीति की उम्मीदें वास्तविक मुद्रास्फीति की ओर ले जाती हैं। उदाहरण के लिए, यदि श्रमिक उच्च मुद्रास्फीति की उम्मीद करते हैं, तो वे उच्च मजदूरी की मांग कर सकते हैं, जिससे उत्पादन लागत और कीमतें बढ़ सकती हैं। इसी तरह, यदि व्यवसायों को उच्च मुद्रास्फीति की उम्मीद है, तो वे पहले से ही अपनी कीमतें बढ़ा सकते हैं, जिससे मुद्रास्फीति दर बढ़ सकती है।

भारत की मुद्रास्फीति दर (Inflation Rate In India)

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक द्वारा मापी गई मुद्रास्फीति, वस्तुओं और सेवाओं की एक टोकरी (product basket) प्राप्त करने की औसत उपभोक्ता की लागत में वार्षिक प्रतिशत परिवर्तन को दर्शाती है, जिसे वार्षिक जैसे निर्दिष्ट अंतराल पर तय या बदला जा सकता है। आमतौर पर लासपेयर्स फॉर्मूला का उपयोग किया जाता है।

  • 2022 के लिए भारत की मुद्रास्फीति दर 6.70% थी, जो 2021 से 1.57% अधिक है।
  • 2021 के लिए भारत की मुद्रास्फीति दर 5.13% थी, जो 2020 से 1.49% कम है।
  • 2020 में भारत की मुद्रास्फीति दर 6.62% थी, जो 2019 से 2.89% अधिक है।
  • 2019 के लिए भारत की मुद्रास्फीति दर 3.73% थी, जो 2018 से 0.21% कम है।

एक साधारण उदाहरण से मुद्रास्फीति है: (Example of Inflation)

मुद्रास्फीति समय के साथ वस्तुओं और सेवाओं की बढ़ती कीमतों की घटना है। इसका मतलब है कि उतने ही पैसे से पहले की तुलना में कम सामान और सेवाएँ खरीदी जा सकती हैं। उदाहरण के लिए, यदि एक लीटर खाद्य तेल की कीमत 2020 में 100 रुपये और 2021 में 110 रुपये है, तो इसका मतलब है कि एक वर्ष में खाद्य तेल की कीमत 10% बढ़ गई है। यह महंगाई का उदाहरण है. इसी प्रकार, हम अन्य वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों की तुलना कर सकते हैं जिनका हम एक वर्ष में उपभोग करते हैं, और उन्हें एक basket में रख सकते हैं। 

मुद्रास्फीति के कारण (Causes Of Inflation)

धन आपूर्ति: यह उन बुनियादी कारकों में से एक है जो किसी अर्थव्यवस्था में कीमतों में वृद्धि का कारण बनता है और इस प्रकार मुद्रास्फीति का कारण बनता है। मुद्रा आपूर्ति वह धनराशि है जो अर्थव्यवस्था में लेनदेन के लिए उपलब्ध है। जब धन की आपूर्ति वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन की तुलना में तेजी से बढ़ती है, तो यह वस्तुओं और सेवाओं की अतिरिक्त मांग पैदा करती है, जिससे उनकी कीमतें बढ़ जाती हैं।

देश के कर्ज़ में वृद्धि: जब किसी देश पर कर्ज़ बढ़ता है, तो इसका मतलब है कि उसे अपने ऋणदाताओं को अधिक ब्याज और मूलधन देना होगा। इससे सरकार के बजट पर दबाव पड़ सकता है और उसे कर बढ़ाने या खर्च में कटौती करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है, जिससे आर्थिक विकास और उत्पादन प्रभावित हो सकता है। वैकल्पिक रूप से, सरकार अपने कर्ज का भुगतान करने के लिए अधिक पैसा छापने की कोशिश कर सकती है, जिससे पैसे की आपूर्ति बढ़ सकती है और मुद्रास्फीति बढ़ सकती है।

क्रय शक्ति में वृद्धि: जब लोगों के पास अधिक आय या धन होता है, तो वे वस्तुओं और सेवाओं पर अधिक खर्च करते हैं। इससे उनकी क्रय शक्ति बढ़ती है, जो एक निश्चित राशि से सामान और सेवाएँ खरीदने की क्षमता है। जब लोगों की क्रय शक्ति वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति की तुलना में तेजी से बढ़ती है, तो यह अतिरिक्त मांग की स्थिति पैदा करती है, जिससे वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ जाती हैं।

ब्याज दरें: ब्याज दरें पैसे उधार लेने या उधार देने की लागत हैं। वे अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति और मांग को प्रभावित करते हैं। जब ब्याज दरें कम होती हैं, तो लोग अधिक पैसा उधार लेते हैं और वस्तुओं और सेवाओं पर अधिक खर्च करते हैं। इससे वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ती है और उनकी कीमतें बढ़ती हैं।

अपस्फीति क्या है? (What Is Deflation)

  • अपस्फीति एक ऐसी घटना है, जो मुद्रास्फीति के बिल्कुल विपरीत है। जब अपस्फीति होती है, तो वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें गिर जाती हैं जिसके परिणामस्वरूप पैसे की क्रय शक्ति बढ़ जाती है। इसका मतलब यह भी है कि समान धनराशि से अधिक सामान और सेवाएँ खरीदी जा सकती हैं।
  • किसी अर्थव्यवस्था में यह स्थिति स्वाभाविक रूप से आती है जब किसी अर्थव्यवस्था की धन आपूर्ति प्रतिबंधित हो जाती है। अपस्फीति को आम तौर पर एक आर्थिक संकट माना जाता है जो बेरोजगारी और वस्तुओं और सेवाओं के बहुत कम उत्पादकता स्तर से जुड़ा होता है।
  • अपस्फीति की स्थिति में, व्यवसाय और बड़े पैमाने पर जनता कम धन जमा करती है और इस प्रकार खर्च बहुत कम हो जाता है, जिससे मांग और कम हो जाती है। मांग में कमी के साथ, कॉर्पोरेट मांग बढ़ाने के लिए वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें कम कर देते हैं।

भारत खाद्य मुद्रास्फीति क्या है (What Is Food Inflation)

भारत में खाद्य मुद्रास्फीति समय के साथ खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों की घटना है। यह जीवन यापन की लागत और लोगों, विशेषकर गरीबों और कमजोर लोगों के कल्याण को प्रभावित करता है। खाद्य मुद्रास्फीति के विभिन्न कारण और परिणाम हो सकते हैं, जो आर्थिक स्थिति और सरकार और केंद्रीय बैंक की नीतियों पर निर्भर करता है।

भारत में भोजन की लागत जुलाई 2023 में साल-दर-साल 11.51% बढ़ी, जो जनवरी 2020 के बाद सबसे अधिक है, जिसमें सब्जियों (37.3%), मसालों (21.6%), अनाज (13%), दालों (13.3%), और दूध (8.3%) की लागत शामिल है। इसकी तुलना जून में बहुत कम 4.49% वृद्धि से की जा सकती है।

मुद्रास्फीति एक ऐसी घटना है जो पैसे के मूल्य, जीवनयापन की लागत और अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन को प्रभावित करती है। इसकी दर और कारणों के आधार पर अर्थव्यवस्था पर इसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव पड़ सकते हैं। इसलिए, उचित नीतियों और संकेतकों का उपयोग करके मुद्रास्फीति को मापना और नियंत्रित करना महत्वपूर्ण है। मुद्रास्फीति से निपटने के लिए देश के केंद्रीय बैंक द्वारा मौद्रिक उपाय, राजकोषीय उपाय या धन आपूर्ति को नियंत्रित करने जैसे कुछ मजबूत उपाय अपनाए गए हैं।

मुद्रास्फीति पर उद्धरण (Quotes on Inflation)

"मुद्रास्फीति एक लुटेरे के समान हिंसक है, एक सशस्त्र डाकू के समान भयावह है और एक हिट मैन के समान घातक है।" -  रोनाल्ड रीगन
"मुद्रास्फीति गरीबी रेखा को ऊपर ले जा रही है, और गरीबी सिर्फ आर्थिक नहीं है बल्कि स्वास्थ्य और शिक्षा के माध्यम से परिभाषित होती है।" -  अजीम प्रेमजी
“भारी मुद्रास्फीति में कागजी संपत्ति अर्जित करना कठिन नहीं है। आपको बस सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक संपत्ति का मालिक बनना है: ऊर्जा, संचार और परिवहन। -   पोर्टर स्टैनबेरी
"मौद्रिक नीति को डेटा पर निर्भर रहना चाहिए, अच्छी तरह से संप्रेषित किया जाना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मुद्रास्फीति की उम्मीदें स्थिर रहें।" -  गीता गोपीनाथ

1. मुद्रास्फीति क्या है? (What is inflation?)

- मुद्रास्फीति वह दर है जिस पर वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ती हैं। इनमें खाद्यान्न, धातु, ईंधन, बिजली और परिवहन जैसी उपयोगिताएं और स्वास्थ्य देखभाल, मनोरंजन और श्रम जैसी सेवाएं शामिल हैं।

2. लागत मुद्रास्फीति सूचकांक क्या है? (What is the cost inflation index?)

- लागत मुद्रास्फीति सूचकांक या सीआईआई एक उपकरण है जिसका उपयोग मुद्रास्फीति के परिणामस्वरूप परिसंपत्ति की कीमत में अनुमानित वार्षिक वृद्धि की गणना में किया जाता है।

3. खाद्य मुद्रास्फीति क्या है? (What is food inflation?)

- खाद्य मुद्रास्फीति समय के साथ खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों की घटना है। खाद्य मुद्रास्फीति के विभिन्न कारण और परिणाम हो सकते हैं, जो आर्थिक स्थिति और सरकार और केंद्रीय बैंक की नीतियों पर निर्भर करता है।

4. मंदी और मुद्रास्फीति क्या है? (What is recession and inflation?)

- मंदी नकारात्मक आर्थिक विकास की अवधि है जबकि मुद्रास्फीति मापती है कि समय के साथ कीमतें कितनी बढ़ रही हैं।

5. मुद्रास्फीति लेखांकन क्या है? (What is inflation accounti ng?)

- मुद्रास्फीति लेखांकन मूल्य सूचकांक के अनुसार वित्तीय विवरणों को समायोजित करने की प्रथा है।

6. खुदरा मुद्रास्फीति क्या है? (What is retail inflation?)

- खुदरा मुद्रास्फीति, जिसे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति के रूप में भी जाना जाता है, वह दर है जिस पर उपभोक्ताओं द्वारा व्यक्तिगत उपयोग के लिए खरीदी जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें समय के साथ बढ़ती हैं।

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Mahangai ki Samasya par Nibandh

महँगाई की समस्या पर निबंध (1000 शब्दों में) Inflation in Hindi मुद्रास्फीति

बढ़ती महँगाई के कारण लगभग सभी लोग परेशान हैं। कुछ वर्ष पहले जो चीजें ख़रीदने में सहज होती थीं, अब वे केवल पैसेवाले-अमीर लोग ही ख़रीद पाते हैं। और बेचारे गरीब लोग तो दो वक्त खाने के लिए भी पैसे जुटा नहीं पाते हैं क्योंकि सभी वस्तुओं की क़ीमतें आसमान छू रही हैं। यह लेख महँगाई की समस्या पर ही आधारित है जिसे आप अपने विद्यालय या कॉलेज में निबंध के तौर पर भी लिख सकते हैं।

महँगाई की समस्या पर निबंध

महँगाई की समस्या से भारतीय जनता त्रस्त हो चुकी है। इसका मुख्य कारण है भारत की आर्थिक स्थिति की चरमराहट। आज आर्थिक दिवालियापन पूरे समाज का खून चूस रही है। हम रोज़-रोज़ महँगाई का इतिहास रचते हैं। बेचारी आम जनता, जिसकी कमर लगभग टूट चुकी होती है, इस अभिशाप को झेलने के लिए बाध्य है।

यह कोई नई चीज़ नहीं है, बल्कि महँगाई तो जैसे अब एक ऐतिहासिक चीज़ बन गई है जो आज तक चली आ रही है। जब से भारत स्वतंत्र हुआ है तब से हम इस मार से मरते आए हैं। द्वितीय पंचवर्षीय योजना के समय मूल्यों में 35% की वृद्धि हुई और तीसरी योजना के समय 32% की।

उसके पश्चात् केवल एक ही साल में 1967-68 में 11% मूल्य की वृद्धि हो गयी। 1971 में जब भारत-पाकिस्तान युद्ध हुआ तो यह समस्या और गंभीर हो गयी। 1974 में महँगाई की कोई सीमा नहीं रही। अब तो यह कहना भी कठिन हो गया है कि किस वर्ष मूल्य का सूचकांक क्या था और क्या रहेगा?

देश के विकास के लिए अनेक तरह के प्रयास किए गए हैं, जिसके फलस्वरूप कुछ सकारात्मक परिणाम भी सामने आए हैं। लोगों के जीवन-स्तर में परिवर्त्तन भी आया है, लेकिन यह प्रतिशत बहुत कम है। हमारी जरुरत अत्यधिक बढ़ गयी है।

जिसके पास दो जून की रोटी नहीं है, वह भौतिक सुख-साधनों का जमकर प्रयोग नहीं करता है। जैसे टी॰वी॰, रेडियो, सिनेमा, शराब, सिगरेट, सुर्ती और विभिन्न तरह के सौंदर्य प्रसाधन। इससे माँग और पूर्त्ति में खास अंतर आ जाता है जिसके कारण मूल्यवृद्धि होना स्वाभाविक हो जाता है। इस स्वाभाविकता के शिकार निम्न मध्यमवर्गीय और निम्न वर्ग के लोग अधिक हुए हैं।

बढ़ती महँगाई पर लेख

माँग और पूर्त्ति के बीच असंतुलन होने के कारण जनसंख्या में असामान्य वृद्धि हुई है। प्रायः यहाँ तीन सेकेंड में चार बच्चे जन्म लेते हैं, जिनके लिए जीवन-यापन की वस्तुएँ आवश्यक होती हैं। मूल्यवृद्धि के लिए राज्य, समाज और व्यक्ति सभी समान रूप से दोषी हैं। तब सवाल यह उपस्थित होता है कि सरकार उस बुराई को क्यों नहीं रोकती है।

सरकार इस दिशा में कई तरह से सार्थक प्रयास कर रही है, लेकिन वह लालफ़ीताशाही और भ्रष्टाचार के कारण उसके सारे प्रयास निरर्थक साबित होने के भय से जैसा चलता है, वैसा चलने देती है। जिसका परिणाम होता है कि कर्मचारी और सरकार के बीच एक सेतु तैयार हो जाता है और गरीब जनता का जमकर शोषण होता है। जिसे नसीब का खेल मानकर जनता चुपचाप यह बोझ सह लेती है। सरकारी-तंत्र का एक भी ऐसा दफ़्तर नहीं है जहाँ लक्ष्मी का खेल नहीं होता है अर्थात् चारों तरफ ब्रह्म-राक्षसों का ढेर लग चुका है।

आज सरकार ने जो आर्थिक परिवर्त्तन लागू किया है, उनसे कोटा-परमिट भी एक पद्धति है- जिसमें एक नए वर्ग का उदय हुआ है, वह वर्ग है दलाली का। यह वर्ग उनलोगों का है जो शासक राजनीतिक दल के सदस्य हैं और कोटा-परमिट प्राप्त करके बेचते हैं। कोटा-परमिट के कारण जमाखोरी की प्रवृत्ति को अधिक बाल मिला है। विक्रेता और उपभोक्ता दोनों ही अधिक से अधिक माल अपने पास रखना चाहते हैं। इस कारण है फिर न मिलने का भय।

विक्रेता और उपभोक्ता के बीच संतुलन रखने हेती असंख्य अफ़सरान बैठाए गए हैं। लेकिन लक्ष्मी का नृत्य उन्हें भी मोहित कर लेता है, और भ्रष्टाचार का व्यापार कम होने के बजाय दिन-दूनी रात चौगुनी बढ़ती ही जाती है। इस भ्रष्ट प्रशासन ने देश के आर्थिक ढाँचे को चरमरा दिया है उसपर उच्चतम शासन करने में असमर्थ हैं।

कारण स्पष्ट है ये दुकानदार से घुस लेते हैं, उद्योगपतियों से चुनावों के लिए पार्टी के नाम पर चंदा लेते हैं। तब कौन किसको कहे और किससे इस प्रकार भ्रष्टाचार का यह विषम चक्र चलता ही रहता है। महँगाई बढ़ने पर मूल्य के सूचकांक ऊपर उठने पर प्रत्येक क्षेत्र और प्रत्येक वर्ग के कर्मचारी वेतनवृद्धि के लिए माँग, आंदोलन, हड़ताल आदि करते हैं। मज़दूर वर्ग भी अपनी मज़दूरी बढ़ते लेते हैं। बढ़े हुए वेतनों के भुगतान के लिए सरकार नयी मुद्रा जारी करती है और इस प्रकार मुद्रास्फीति होती है, जो महँगाई का एक अन्य कारण है।

मूल्यवृद्धि के दो अन्य महत्त्वपूर्ण कारण हैं- राजनीतिक और सामाजिक। हमारे श्रमिक छोटा-सा भी बहाना मिल जाने पर तालाबंदी या हड़ताल कर देते हैं। उन्हें तत्काल राजनीतिक समर्थन प्राप्त हो जाता है। फलतः काम न भी करने पर पूरा वेतन देना पड़ता है। उत्पादन गिरता है, लागत में वृद्धि होती है और क़ीमत अपने आप बढ़ जाट है।

सामाजिक संस्कृति के कारण भी मूल्यवृद्धि हो जाती है- जिसमें हमारा पर्व-त्योहार, शादी-विवाह, श्राद्ध-कर्म प्रवृत्ति हैं। इन अवसरों पर उपभोग सामग्री की माँग बढ़ जाती है और एक अवधि विशेष के लिए मूल्यवृद्धि हो जाती है। फिर वह अपनी नियत सूचकांक पर कभी नहीं आती।

महँगाई की समस्या का समाधान तो हो सकता है, लेकिन उसके लिए जनता और सरकार दोनों को प्रतिबद्ध होना पड़ेगा। सरकार को क़ीमतों पर नियंत्रण करना पड़ेगा और दण्ड-व्यवस्था काफ़ी कठोर करना पड़ेगा, जिससे यह होगा कि पूँजीपति या व्यापारी वर्ग वस्तुओं का मनचाहा मूल्य न बढ़ने पाएँ। प्रत्येक वस्तु का दाम यदि सरकार निर्धारित कर दे तो उपभोक्ता को भी राहत होगी और बाज़ार भी स्थिर रहेगा। इससे व्यापारी वर्ग का मनोबल गिरेगा और उनमें एक डर भी बना रहेगा।

माँग और पूर्त्ति दोनों में संतुलन बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि उत्पादन की शक्ति को बढ़ाया जाए। जबतक माँग और पूर्त्ति में अंतर रहेगा तबतक मूल्यवृद्धि पर कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं है।

इसे भी पढ़ें: बेरोज़गारी की समस्या पर लेख

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महंगाई पर निबंध | Mehangai Par Nibandh

महंगाई पर निबंध – देश में महंगाई बढ़ना एक गंभीर है। इससे व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकतायें जैसे रोटी, कपड़ा, और मकान प्रभावित होती हैं। देश में महंगाई बढ़ने से उस देश की अर्थव्यवस्था पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है।

महंगाई की समस्या से सिर्फ भारत ही नही बल्कि दुनिया के अन्य जूझ रहे हैं। चुनाव के समय सरकार महंगाई को कम करने की बात करती है लेकिन महंगाई लगातार और बढती जा रही है।

जब से भारत देश आजाद हुआ है तब से दिन प्रतिदिन वस्तुओं की कीमते लगातार बढ़ रही है। अगर इसी प्रकार से वस्तु की कीमतें लगातार बढ़ती रहीं तो निम्न और मध्यम वर्ग परिवार के लिए हर कोई वस्तु खरीदना मुश्किल हो जाएगा। दूसरी ओर उनकी जितनी कमाई नहीं है और न किसी तरीके से उनकी आय बढ़ रही है। लेकिन वस्तुओं की कीमतें महंगी होती जा रही है।

पिछले कुछ सालों में देखा जाए तो पेट्रोल, डीजल और गैस के दामों में तेजी से उछाल देखने को मिला है। दिन प्रतिदिन बढ़ती महंगाई आम जनता के लिए मुसीबत बनती जा रही है। देश में इस प्रकार से बढ़ती महंगाई से देश का अमीर व्यक्ति और अमीर और गरीब व्यक्ति और अधिक गरीब होता जा रहा है।

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Page Contents

महंगाई क्या है – What is Inflation in Hindi

जब वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ोत्तरी हो जाती हैं, तो उसे महंगाई कहा जाता है। महंगाई के कारण देश की अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव देखने को मिलता जिससे मनुष्य की आजीविका प्रभावित होती है।

जब मांग और पूर्ति के बीच असंतुलन हो जाता है तब महंगाई बढ़ने लगती हैं। जब किसी वस्तु की अधिक मांग होती है और वह वस्तु उपलब्ध नहीं होती है या आवश्यकता के अनुसार उस वस्तु की मात्रा बहुत कम होती हैं । ऐसे में उस वस्तु की कीमत दोगुनी, तीगुनी हो जाती है जिससे महंगाई बढ़ जाती है। जमाखोरों और कालाबाजारी करने वाले लोगो के कारण वस्तुओं की कीमत बहुत जल्दी बढ़ जाती हैं।

जमाखोर और कालाबाजारी करने वाले लोग हमारी जरूरत के समय पर चीजों को बहुत महंगा कर देते हैं जिससे गरीब लोगो के लिए मुश्किल खड़ी हो जाती है।

महंगाई बढ़ने से देश की मुद्रा में गिरावट आ जाती है जिसके कारण जितनी मुद्रा में माल और सामग्री की मात्रा आती थी, वह कम हो जाती है। साथ ही बाजारों में चीजों के दाम दिन-प्रतिदिन महंगे होते जा रहे हैं।

महंगाई की मार से गरीब और मध्यम वर्ग के सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। क्योंकि इन परिवारों की आय कम होती है और महंगाई बढ़ने से व्यक्ति अपनी जरूरतों का सामान भी खरीदने में असमर्थ होता है।

महंगाई बढ़ने का कारण – Causes of Inflation in Hindi

आज के समय में महंगाई हमारे देश के लिए एक बहुत समस्या बन गई है। देश में कई समान्य और जरूरी चीजों की कीमत में उछाल देखने को मिल रही है। देश महंगाई के बढ़ने के पीछे कई कारण हो सकते है, जो निम्नलिखित है –

जनसंख्या वृद्धि – भारत जनसँख्या की दृष्टि से दुनिया का दूसरा सबसे अधिक वाला जनसंख्या वाला देश है। इसलिए जनसंख्या वृद्धि भी महगाई बढ़ने का एक कारण हो सकता है। जनसंख्या वृद्धि के कारण उपभोक्ताओं की मात्रा अधिक उत्पादन की तुलना में अधिक है इसलिए गरीबी और महंगाई जैसी समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं।

जमाखोरों और कालाबाजारी – हमारे देश में जमाखोरों और कालाबाजारी करने वाले लोगो की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ रही हैं जिसके कारण महंगाई की मार सबको झेलनी पड़ रही हैं। क्योंकि ये लोग कम पैसों में माल खरीद कर अपने पास स्टॉक कर लेते हैं और जब इन उत्पादों की कमी होने लगती हैं तो उसे बाजार में अधिक दामों पर बेचते हैं।

भ्रष्टाचार – हमारे देश में हर जगह भ्रष्टाचार बहुत फैल चुका है। एक चपरासी से लेकर अफसर, नेता, व्यापारी सभी लोग भ्रष्टाचार करते हैं। भ्रष्ट लोगों और व्यापारियों की वजह से अच्छा उत्पादन होने के बाद भी वस्तुओं की कीमत नहीं घटती हैं। ये लोग अपना मनमानी करने लगे हैं कभी भी किसी भी वस्तुओं की कीमते पर वृद्धि कर देते हैं।

महंगाई रोकने के उपाय – Solution of Inflation in Hindi

सरकार को महंगाई रोकने के लिए कड़े और ठोस निर्णय लेने की आवश्यकता है। नहीं तो गरीब जनता के साथ साथ देश की अर्थव्यवस्था भी चरमरा जायेगी। बढ़ती महंगाई को रोकने के लिए निम्नलिखित प्रयास किए जा सकते हैं –

जनसंख्या नियंत्रण – सरकार को जनसंख्या नियंत्रण करने के लिए एक सख्त क़ानून लागू करना चाहिए। देश में अधिक जनसँख्या के कारण रोजमर्या की चीजें और अन्य संसाधन की कमी हमेशा बनी रहती है। संसाधनों की पूर्ति न होने के कारण सरकार को विदेशो से अधिक दामों में खरीदना पड़ता है जिस कारण हमें उस वस्तु के लिए अधिक पैसे भुकतान करने की जरुरत पड़ती है और महंगाई बढ़ती है।

जमाखोरों और कालाबाजारी – सरकार को जमाखोरों और कालाबाजारी करने वाले लोगों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्यवाही करना चाहिए। जब मंडी में माल आता है तब ये लोग उसे कम कीमत में खरीदकर अपने गोदामों में भर लेते हैं। और जब वस्तुओं की अधिक मात्रा में जरूरत पड़ने लगती हैं तो उनकी कीमत बढ़कर बेचते है।

सरकार को बड़े-बड़े शहर और नगरों के विकास के साथ साथ – छोटे शहर और गांवों के विकास पर अधिक ध्यान देना चाहिए। क्योंकि हमारे देश की अर्थव्यवस्था सबसे ज्यादा कृषि पर निर्भर है। जब किसानों का उत्पादन अच्छा होगा तभी देश की अर्थव्यवस्था में सुधार आएगा। इसके लिए सरकार को किसानों के लिए खाद्य, बीज , सिचाई के साधन और खेती करने वाले उपकरण की व्यवस्था करनी चाहिए।

इन्हें भी पढ़े –

  • अग्निपथ योजना पर निबंध
  • हर घर तिरंगा पर निबंध
  • बेरोजगारी पर निबंध
  • आपदा प्रबंधन पर निबंध
  • राष्ट्रीय एकता पर निबंध

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मुद्रास्फीति क्या है? इसके प्रकार, कारण और प्रभाव क्या है?

क्या आप जानते हैं Inflation क्या है यानी कि मुद्रास्फीति क्या है? ऐसे बहुत से सवाल हैं जो अक्सर कई लोगों को परेशान करते हैं और आज हम लोग इस Article में मुद्रास्फीति के बारे में जानेंगे उसके कारण और प्रभाव इससे किस प्रकार से हमारे Economy पर असर डालती है ।

तो आज हम लोग इस Article में जानेंगे कि Inflation क्या है? What is Inflation in Hindi? जिसका हमारे Economy में या फिर हमारे Financial Sector में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है । जिससे कि हमारे देश की Economy को ऊपर और नीचे ले जाया जा सकता है । Finance का नाम आने पर उसमें एक नाम Inflation का भी आता है जिस प्रकार से Reflation , Stagflation, और Recession आता है उसमे से एक नाम Inflation है जिसकी चर्चा विस्तृत रूप से आज हम लोग इस Article में करेंगे ।

मुद्रास्फीति क्या है – Inflation in Hindi

मुद्रास्फीति यानी महँगाई से तात्पर्य उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य में वृद्धि होना जब उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में स्थाई या अस्थाई वृद्धि हो तो उसे मुद्रास्फीति यह महँगाई कहा जाता है।

जो चलन की मात्रा (Volume of currency) में तीव्र वृद्धि के फलस्वरूप उत्पन्न होती है।


Inflation को अर्थशास्त्र की भाषा में मुद्रास्फीति के नाम से जाना जाता है लेकिन सरल शब्दों में इसका अर्थ महँगाई है ।

मुद्रास्फीति एक ऐसी अवस्था है जिसका प्रभाव संपूर्ण राष्ट्र पर पड़ता है। कोई भी क्षेत्र एवं वर्ग इसके प्रभाव से नहीं बच पाता है। धनी, ऋणी, विनियोगी, व्यापारी, वेतन-भोगी, भू स्वामी, सरकार, आयात कर्ता, निर्यात कर्ता, श्रमिक, उपभोगी आदि प्रत्येक वर्ग पर इसका प्रभाव पड़ता है। पर मुद्रास्फीति का प्रभाव संपूर्ण राष्ट्र पर एक समान नहीं पड़ता है।

मुद्रास्फीति की स्थिति में असामान्य संतुलन (disequilibrium) उत्पन्न हो जाता है जो सदैव मूल्य स्तर को बढ़ाने के लिए उत्तरदायी होता है। इस प्रकार मुद्रास्फीति की एक विशेष शर्त यह है कि मुद्रा की मात्रा (Bank Note, चलन या दोनों) अत्यधिक बढ़ जाएँ।

> Attachment Order क्या हैं? What is Attachment Order in Hindi?

> Endorsement क्या है और इसके कितने प्रकार होते है?

> अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष क्या हैं? What is IMF in Hindi?

मुद्रास्फीति के प्रकार (Types of Inflation)

मुद्रास्फीति के भिन्न-भिन्न रुपों का वर्णन निम्नलिखित है:

मात्रा या चलन के आधार पर

इस आधार पर मुद्रास्फीति के निम्न चार रुप होते हैं:-

  • सरकने वाला मुद्रास्फीति (Creeping Inflation)
  • टहलने वाला मुद्रास्फीति (Walking Inflation) 
  • दौड़ने वाला मुद्रास्फीति (Running Inflation)
  • कूदने वाला या गम्भीरतम मुद्रास्फीति (Jumping or Galloping inflation)

Creeping Inflation (सरकने वाला मुद्रास्फीति): इस स्थिति में मुद्रास्फीति धीरे-धीरे बढ़ती है। कहने का अर्थ है 1 साल में लगभग 10 % तक बढ़ती है।

Galloping Inflation (कूदने वाला मुद्रास्फीति): इस स्थिति में मुद्रास्फीति तेजी से बढ़ती है यानी 1 साल में लगभग 20, 100, 200 % तक चले जाती है।

Walking Inflation (टहलने वाला मुद्रास्फीति): इस मुद्रास्फीति में मूल्यवृद्धि मध्यम (3% से 7%) हो जाती है और वार्षिक मुद्रास्फीति दर एक अंक की हो जाती हैं तो इससे Walking Inflation कहा जाता है। यह एक चेतावनी का संकेत है कि अब महंगाई बढ़ने वाली है अतः उसे नियंत्रित कर लिया जाए।

Running Inflation (दौड़ने वाला मुद्रास्फीति): यह मुद्रास्फीति एक निश्चित दर से बढ़ने लगती है तो उसे Running Inflation कहते हैं। यह मुख्यता 10 और 20 % के बीच में रहता है। इस दर पर मुद्रास्फीति अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डालती है और आसानी से उच्च स्तर पर रहना शुरू कर देती है।

Hyper Inflation (अति मुद्रास्फीति): इसमें मुद्रास्फीति बहुत तेजी से बढ़ती है यह 1 साल में 30% से ज्यादा हो जाती है।

Stagflation (मंदी): इसमें मुद्रास्फीति की स्थिति ना तो बढ़ती है ना तो घटती है इसमें इसके बढ़ने की दर स्थिर रहती है।

Deflation (अपस्फीति) : इसमें मुद्रास्फीति की दर सामान्य से कम हो जाती है या यह भी कह सकते हैं कि इस समय में पैसे का सही मूल्य पता चलता है।

  • मूल्य में वृद्धि की चाल की दृष्टि से उक्त चारों एक दूसरे से भिन्न हैं। इनकी चाल इस दृष्टि से समान मानी जा सकती है कि इसका प्रभाव अर्थव्यवस्था पर अत्यन्त दूषित होता है।
  • सरकने वाला मुद्रास्फीति, मुद्रास्फीति की सर्वप्रथम स्थिति होती है एवं कुछ अर्थशास्त्रियों के विचारानुसार यह अर्थ-व्यवस्था के लिए भयंकर सिद्ध नहीं होता है। वास्तव में कुछ अर्थशास्त्री इस प्रकार के मुद्रास्फीति का समर्थन भी करते हैं क्योंकि उनके विचारानुसार इस प्रकार के मुद्रास्फीति से अर्थव्यवस्था की स्थिरता (Stagnation) की स्थिति समाप्त करके मूल्यों में उचित वृद्धि कराना संभव हो जाता है। 
  • मुद्रास्फीति के इस रुप को खतरनाक मानते हैं। मुद्रास्फीति ऐसी गर्भाधान क्रिया है जो एक बार स्थापित होने पर तब तक बढ़ती रहती है जब तक कि बच्चे के जन्म के रुप में इसकी समाप्ति नहीं हो जाय। समय के साथ-साथ बालक सरकना छोड़ देता है क्रमशः, टहलने, दौड़ने एवं अन्त में कूदने लगता है। 
  • सरकने वाले मुद्रास्फीति पर प्रारम्भ में नियंत्रण कर लेना चाहिए एवं इसे विकसित होने का अवसर नहीं प्रदान करना चाहिए। सरकने वाले मुद्रास्फीति को, जिसके अन्तर्गत मूल्य दीर्घकाल में अत्यधिक अदृश्यता (imperceptibility) के साथ बढ़ते हैं, 1956 ई0 से जर्मनी एवं अमेरिका में बड़ा महत्व दिया जा रहा है।
  • टहलने एवं दौड़ने वाले मुद्रास्फीति इससे भिन्न होते हैं क्योंकि इनके अन्तर्गत मूल्यों के बढ़ने की चाल सरकने वाले मुद्रास्फीति की अपेक्षा अधिक तेज होती है। 
  • सरकने वाले मुद्रास्फीति की तुलना में जब मूल्यों में वृद्धि अधिक निश्चित हो जाती है तब वह टहलने वाले मुद्रास्फीति की स्थिति होती है एवं यह स्थिति दौड़ने एवं कूदने वाले मुद्रास्फीति के आगमन की सूचक होती है जिसकी मात्रा को नापना अत्यन्त कठिन होता है। क्योंकि इन स्थितियों में कीमतें शीघ्रता से बढ़ती रहती है।
  • कूदने वाले मुद्रास्फीति की स्थिति में कीमतें प्रतिक्षण बढ़ती हैं एवं कीमतों के बढ़ते जाने की कोई भी उच्चतम सीमा निश्चित नहीं होती है। 
  • सरकने वाले मुद्रास्फीति की स्थिति में मूल्यों में वृद्धि एक पीढ़ी (generation) के काल में होती है जबकि टहलने, दौड़ने एवं कुदने वाले मुद्रास्फीति की स्थिति में यह वृद्धि क्रमश: न्यूनतम समय जैसे 10, 5 एवं एक साल में ही होती है।

प्रक्रिया के आधार पर 

इस आधार पर वर्णित मुद्रास्फीति के रुप को प्रोत्साहित हीनार्थ मुद्रास्फीति’ (deficit induced inflation) कहा जाता है। इसकी उत्पत्ति का कारण यह है कि सरकार अपनी आय की अपेक्षा खर्च अधिक करना चाहती है। इस प्रकार मुद्रास्फीति के दो रुप हो सकते हैं, वेतन प्रोत्साहित मुद्रास्फीति एवं लाभ प्रोत्साहित मुद्रास्फीति।

वेतन प्रोत्साहित मुद्रास्फीति (Wage induced inflation) श्रमिकों की कार्य क्षमता में वृद्धि के कारण उनकी वेतनों में होनेवाली वृद्धि के फलस्वरूप उत्पन्न होता है जबकि लाभ प्रोत्साहित मुद्रास्फीति (Profit induced inflation) की उत्पत्ति का प्रधान कारण उत्पादकों के लाभों में वृद्धि से होता है!

समय के आधार पर 

इस वर्गीकरण के अन्तर्गत मुद्रास्फीति के दो रुप हो सकते हैं। प्रथम, युद्धकालीन मुद्रास्फीति (War time inflation) जिसकी उत्पत्ति युद्ध के समय होती है। दूसरे, युद्धोत्तर कालीन मुद्रास्फीति (Post-war inflation) है जो युद्ध के तुरंत बाद के काल में उत्पन्न हुए। जर्मनी में होने वाला गम्भीरतम मुद्रास्फीति (Hyperinflation) युद्ध-कालीन एवं युद्धोत्तर-कालीन दोनों ही प्रकार के मुद्रास्फीति का सर्वोत्तम उदाहरण है।

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मुद्रास्फीति के कारण (Reason of Inflation)

मुद्रास्फीति के कारण को दो भागों में बाँट सकते है जो निम्नलिखित है:-

1. चलन की मात्रा में वृद्धि (Increase in the volume of currency) : प्रत्येक कुछ देश में चलन की मात्रा देश में उपलब्ध वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य के बराबर या उससे अधिक रखी जाती है। अत: जब किन्हीं विशेष कारणों से चलन की यह मात्रा, वस्तुओं एवं सेवाओं की मात्रा की तुलना में दोगुनी, तिगुनी या और अधिक हो जाती है तो देश में मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। नीचे लिखे कारण इसी प्रकार के हैं जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से वास्तविक एवं साख-मुद्रा की मात्रा में वृद्धि करके देश में चलन की मात्रा को बढ़ा लेते हैं। जिससे मुद्रास्फीति की स्थिति आ जाती है।

(i) मुद्रा-धातु की पूर्ति में वृद्धि (Increase in the supply of money metals) : मुद्रा के धातुओं की पूर्ति बढ़ जाने पर मुद्रास्फीति उत्पन्न हो जाता है क्योंकि धातु की पूर्ति बढ़ने पर देश में मुद्रा की मात्रा सरलता से बढ़ा ली जाती है। यदि किसी देश में स्वर्ण या रजत-मान अपनाया जा रहा है और अचानक उस देश में स्वर्ण या रजत की नवीन खानों का पता लग जाता है तो स्वाभाविक रुप से इन खानों से प्राप्त सोने या चाँदी का प्रयोग देश में मुद्रा विस्तार में किया जायेगा और उस देश में मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न हो जायगी।

(ii) मुद्रा एवं साख का ऐच्छिक विकास (Deliberate Expansion of money credit ) : विशिष्ट परिस्थितियों में सरकार स्वयं जानबूझकर चलन की मात्रा बढ़ा देती है जिसके फलस्वरुप मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। आवश्यकता होने पर चलन वृद्धि को सरकार अपनी नीति का एक अंग बना लेती है। सरकार किसी भी समय इस प्रकार की वृद्धि कर सकती है, पर साधारणतया वह ऐसा उस समय करती है जबकि, मुद्रा की क्रय शक्ति को घटाकर ऋणी वर्ग (Debitors) के ऋण-भार में कमी करना हो, युद्ध के कारण उसे अधिक मात्रा में धन की आवश्यकता हो आदि।

(iii) हीनार्थ प्रबन्ध (Deficit financing) : सरकार की हीनार्थ प्रबन्ध नीति के फलस्वरुप भी चलन में मुद्रा की मात्रा बढ़ जाती है जिससे मुद्रास्फीति को प्रोत्साहन मिलता है। हीनार्थ प्रबन्ध की नीति सरकार उस समय अपनाती है जब उसकी आय, व्यय से कम हो। व्यय की अतिरिक्त रकम की पूर्ति के लिए सरकार या तो प्रत्यक्ष रुप से मुद्रा की मात्रा बढ़ा सकती है या फिर प्रतिभूतियों के आधार पर बैंकों से ऋण ले सकती है एवं बैंक इन प्रतिभूतियों के आधार पर साख एवं मुद्रा की मात्रा बढ़ा सकते हैं।

(iv) बैंक जमाओं के वेग में वृद्धि (Increase in the velocity of bank deposits) : वर्तमान समय में मुद्रास्फीति की स्थिति के लिए यही कारण प्रथम स्थान प्राप्त करता जा रहा है। बैंक जमाओं के वेग में वृद्धि हो जाने के कारण चलन में मुद्रा की मात्रा काफी बढ़ जाती है जिसके फलस्वरुप कीमतों में वृद्धि होने लगती है। कीमतों में वृद्धि मुद्रास्फीति को उत्पन्न कर देती है। बैंक जमाओं का यह विकास boom-period में अत्यधिक बढ़ जाता है।

2. उत्पादन में कमी (Decrease in production) : जिस प्रकार चलन को बढ़ने पर मुद्रास्फीति उत्पन्न हो जाता है उसी प्रकार यदि चलन की मात्रा यथा स्थिर रहने पर देश में उत्पादन की मात्रा एकदम घट जाय तब भी मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न हो जायगी। इसके अतिरिक्त अन्य कारणों से भी उत्पादन में कमी हो सकती है

(i) उत्पादन साधनों की दुर्लभता (Scarcity of the factors of production) : देश में श्रम, पूँजी, भूमि, साहस की दुर्लभता होने पर उत्पादन की मात्रा नहीं बढ़ाई जा सकेगी क्योंकि इस स्थिति में उत्पादन उत्पत्ति ह्रास नियम (law of diminishing return) के अन्तर्गत होता है।

(ii) औद्योगिक अशांति (Industrial unrest) : यदि देश में शांति नहीं रहती है एवं श्रमिक संघर्ष निरंतर होते रहते हैं तब भी उत्पादन में कमी हो जाती है।

मुद्रास्फीति के आर्थिक प्रभाव क्या होते है? What is the effect of Inflation?  

मुद्रास्फीति के विभिन्न प्रभावों (आर्थिक प्रभावों) का अध्ययन विभिन्न उप-विभागों के अन्तर्गत निम्नलिखित है

(a) मानव समुदाय पर प्रभाव (Effects on Human Beings)

मुद्रास्फीति का संपूर्ण मानव समाज पर समान प्रभाव न पड़कर विभिन्न वर्गो पर विभिन्न प्रभाव पड़ता है। मानव समुदाय पर मुद्रास्फीति के प्रभाव को स्पष्ट करने के लिए लार्ड कीन्स ने मानव समुदाय को पाँच वर्गों में बाँटा है। इन्हीं पाँच वर्गो के आधार पर हम मुद्रास्फीति के प्रभाव का अध्ययन करेंगे

1. विनियोगी (Investors) : इस वर्ग में वे समस्त व्यक्ति शामिल होते हैं जो विभिन्न व्यापारों एवं उद्योगों में अपनी पूँजी लगाकर लाभांश के रुप में आय प्राप्त करते हैं, इस वर्ग के दो उप-विभाग हैं। प्रथम वह विनियोगी जो निश्चित आय प्राप्त करते हैं, दूसरे वह विनियोगी जिनकी आय परिवर्तनशील है। प्रथम वर्ग के विनियोगी को मुद्रास्फीति से हानि होती है क्योंकि इनकी आय तो स्थिर रहती है परन्तु मुद्रा की क्रय शक्ति में कमी हो जाने से उस आय की वास्तविक कीमत कम हो जाती है। इसके विपरीत परिवर्तनशील विनियोगी को मुद्रास्फीति से लाभ होता है जिसका कारण यह है कि मूल्य वृद्धि से उद्योगों को अधिक लाभ होता है। अधिक लाभ होने पर इन विनियोगों की आय भी बढ़ जाती है।

2. उत्पादक एवं व्यापारी वर्ग (Producers and Businessmen)

इस वर्ग के अन्तर्गत हम निम्न प्रकार के लोगों को शामिल कर सकते हैं

(i) साहसी एवं व्यापारी (Entrepreneurs) : साहसी निर्माता, थोक विक्रेता एवं फुटकर विक्रेता सभी को मुद्रास्फीति काल में भारी लाभ होता है। इनके लाभ के कई कारण हैं। सर्वप्रथम, ये सभी व्यक्ति उधार लेकर व्यापार करने के कारण ऋणी श्रेणी में आते हैं एवं मूल्य वृद्धि की स्थिति में ऋणी को सदैव लाभ होता है। दूसरे माँगे अधिक हो जाने से वे उत्पादन एवं व्यापार बड़े पैमाने पर करते हैं जिससे उत्पादन लागत एवं व्यापार लागत कम हो जाती है। तीसरे, इनके द्वारा भुगतान की जाने वाली मजदूरी की धनराशि में कीमतों के समान वृद्धि नहीं हो पाती है। संक्षेप में इस श्रेणी के व्यक्ति मुद्रास्फीति से लाभान्वित होते हैं।

(ii) आयात-कर्ता एवं निर्यात कर्ता (Importers and Exporters) : मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न हो जाने पर देश की मुद्रा का मूल्य कम हो जाता है। जिसके परिणामस्वरूप आयात के लिए आयात-कर्ताओं को अधिक मुद्रा देनी पड़ती है जबकि निर्यात-कर्ता विदेशों को अधिक निर्यात करके लाभ कमाते हैं। निर्यात-कर्ताओं के लाभ में वृद्धि का कारण यह है कि देश में कच्चे माल एवं मजदूरी मे तो मूल्य वृद्धि के अनुपात में वृद्धि नहीं होती है और उन्हें वस्तुओं के निर्यात पर पूर्व दर से ही विदेशी मुद्रा प्राप्त होती रहती है 

जिसका विदेशी मुद्रा का ( मूल्य (देश की मुद्रा के मूल्य में कमी होने से) पूर्व की अपेक्षा बढ़ जाता है। इस प्रकार निर्यात कर्ता श्रमिकों एवं उत्पादकों के लाभ को हजम कर जाते हैं। निर्यात-कर्ताओं का यह लाभ उस समय समाप्त हो जाता है जब देश में कच्चे माल के मूल्य में एवं श्रमिक की मजदूरियों में वृद्धि हो जाती है।

(iii) कृषक एवं भू-स्वामी (Agriculturists and Landlords) : मुद्रास्फीति की स्थिति में कृषक वर्ग को लाभ होता है क्योंकि उसकी स्थिति ऋणी एवं उत्पादक जैसी होती है। पर इसके विपरीत भूस्वामी को हानि होती है क्योंकि उसका लगान निश्चित होता है। किंतु यह हानि अल्पकालीन होती है क्योंकि भू-स्वामी सर्वशक्ति-सम्पन्न होने के कारण शीघ्र ही लगान बढ़ाने में सफल हो जाते हैं।

3. श्रमिक एवं वेतनभोगी वर्ग (Wage earners and salaried persons) : इस वर्ग में हम उन समस्त व्यक्तियों को शामिल करते हैं जो दैनिक मजदूरी या मासिक वेतन के आधार पर अपने परिवार की जीविका प्राप्त करते हैं। अत: इस वर्ग के अन्तर्गत सभी प्रकार के वेतन भोगी कर्मचारी (सामान्यतः मध्यम वर्ग) एवं कारखानों, कृषि एवं अन्यान्य कार्यो में लगे श्रमिक (निम्न वर्गीय) शामिल होते हैं। इस संपूर्ण वर्ग को मुद्रास्फीति काल में भारी संकटों का सामना करना पड़ता है क्योंकि इस वर्ग की मजदूरियों एवं वेतनों में मूल्य वृद्धि के अनुपात में वृद्धि नहीं हो पाती है। वेतन एवं मजदूरियों में वृद्धि न होने के कारण इस वर्ग की क्रय शक्ति बहुत कम हो जाती है। फलत: इनके परिवार का भरण-पोषण भी ठीक प्रकार से नहीं हो पाता।

मध्यमवर्ग, जो वर्तमान प्रजातंत्र की रीढ़ की हड्डी के समान है, यही मुद्रास्फीति का बुरी तरह शिकार होता है। मुद्रास्फीति प्रारम्भ से ही इस वर्ग की स्थिति को चौपट करने लगता है। प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी, ऑस्ट्रिया, पोलैंड एवं फ्रांस के मध्यमवर्गीय परिवार इन देशों में फैले गम्भीरतम (hyper) मुद्रास्फीति के कारण पूर्णरुप से बर्बाद हो गये। इस समय इन दोनों के प्रतिष्ठित मध्यवर्गीय परिवार भी पूर्णतया नष्ट हो गये क्योंकि मुद्रास्फीति के कारण इन परिवारों की समस्त बचत एवं विनियोग शक्ति शून्य में बदल गयी। 

4. उपभोक्ता वर्ग (Consumers) : समाज के सभी सदस्य उपभोक्ता होते हैं एवं उपभोक्ता के रुप में संपूर्ण मानव समाज के लिए मुद्रास्फीति हानिप्रद होता है। इसका एकमात्र कारण यह है कि इनकी आय तो समान रहती है या जरा-सी बढ़ जाती है पर मूल्यों में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है। फलस्वरुप वह अपनी आय से पूर्व की अपेक्षा कम वस्तुएँ खरीद पाते हैं। मुद्रा की क्रय शक्ति कम हो जाने के कारण उन्हें अपने उपभोग की मात्रा में कमी करनी पड़ती है जिससे उन्हें स्वाभाविक कष्ट होता है। द्वितीय विश्व युद्ध के समय एवं युद्ध समाप्ति के बाद के काल में मुद्रास्फीति के कारण उत्पन्न उपभोक्ताओं के कष्टों से सभी परिचित हैं। भारत में तो यह अभी तक विद्यमान है।

5. ऋणी एवं धनी वर्ग (Debitors and Creditors) : मुद्रास्फीति की स्थिति में ऋणी वर्ग को लाभ होता है पर धनी वर्ग हानि में रहता है। मुद्रास्फीति के कारण मुद्रा का मूल्य कम हो जाता है अतः ऋण के बदले में पूर्व की अपेक्षा कम क्रय-शक्ति अदा करता है। फलस्वरुप वह मुद्रास्फीति से लाभान्वित होता है। परन्तु धनी को उसके द्वारा दिये गये ऋण के बदले में कम क्रय शक्ति प्राप्त होती है अत: वह हानि में रहता है।

(ब) सरकार एवं करदाताओं पर प्रभाव (Effects on Government and Taxpayers) : मुद्रास्फीति का सरकार एवं करदाताओं पर भी प्रभाव पड़ता है। मुद्रास्फीति के कारण सरकार के खर्चे निरंतर बढ़ते जाते हैं जिसके कारण उस पर अतिरिक्त भार आ पड़ता है। इन ख़र्चों की पूर्ति के लिए सरकार को अतिरिक्त आय की आवश्यकता होती है। परन्तु जनता के रहन-सहन का व्यय बढ़ जाने के कारण एवं आय में वृद्धि होने के कारण करारोपण की वृद्धि का वह निरंतर विरोध करती है। बाध्य होकर सरकार को बढ़े हुए ख़र्चों की पूर्ति के लिए मुद्रास्फीति को बढ़ावा देना पड़ता है और वह अधिक निर्गमन द्वारा इन ख़र्चों की पूर्ति तब तक करती रहती है जब तक की स्थिति निकृष्टतम नहीं हो जाती। 

इस प्रकार सरकार को भी मुद्रास्फीति की स्थिति से हानि ही होती है। पर इसके विपरीत कर-दाताओं को इस स्थिति से लाभ होता है। क्योंकि उन्हें कर के रुप में यद्यपि पूर्व से अधिक रकम देनी पड़ती है पर क्रयशक्ति की दृष्टि से यह रकम पूर्व की अपेक्षा बहुत कम होती है।

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मुद्रास्फीति को रोकने के क्या उपाय है?

मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न होने के दो प्रमुख कारण हैं। प्रथम, चलन में मुद्रा या साख की मात्रा बढ़ जाना दूसरे, वस्तुओं की मात्रा में कमी हो जाना । अत: मुद्रास्फीति को रोकने या नियंत्रित करने के लिए हमें या तो चलन से मुद्रा या साख की मात्रा को घटा देना चाहिए या वस्तुओं या सेवाओं की मात्रा में अत्यधिक वृद्धि कर देनी चाहिए। मुद्रास्फीति पर नियंत्रण करने के इन दोनों उपायों का वर्णन निम्नलिखित है

(A) चलन में मुद्रा एवं साख की मात्रा को कम करना 

चलन में मुद्रा एवं साख की मात्रा में कमी करने के लिए निम्न उपायों को प्रयुक्त किया जा सकता है

1. चलन का विस्तार बन्द करना : मुद्रा की मात्रा में कमी करने के लिए सर्वप्रथम देश की सरकार को चाहिए कि वह मुद्रा का आगामी विस्तार (Expansion) एवं निर्गमन बंद कर दे। मुद्रा की मात्रा में इस प्रकार वृद्धि न होने पर मूल्यों में होने वाली वृद्धि भी रुक जायेगी। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सर्वोत्तम उपाय यही है कि देश में नवीन मुद्रा पद्धति का प्रचलन किया जाय एवं पुराने चलन को नवीन चलन की कम मात्रा में परिवर्तनशील रखा जाय। युद्ध के बाद रुस ने मुद्रास्फीति रोकने के लिए इसी नीति का पालन किया था।

2. अनिवार्य बचत योजना : चलन की वर्तमान मात्रा में कमी करने के लिए सरकार द्वारा कानून पास करके अनिवार्य बचत योजना (Compulsory saving scheme) चालू करनी चाहिए। इस योजना के प्रचलित हो जाने पर हर व्यक्ति को निश्चित रुप से कुछ न कुछ बचत प्रतिमाह करनी होगी। बचत की यह धनराशि उसे कुछ निश्चित समय बाद ही उपलब्ध होगी। इस प्रकार इस बचत योजना से वर्तमान चलन की एक निश्चित मात्रा का प्रयोग उपभोग के लिए नहीं किया जा सकेगा। चलन में मुद्रा कम रहेगी। अत: मूल्य कम होने लगेंगे।

3. नवीन वित्तीय नीति : मुद्रा व साख की मात्रा में और कमी करने के लिए सरकार को अपनी पुरानी वित्तीय नीति का त्याग कर नवीन वित्तीय नीति अपनानी चाहिए। इस नवीन नीति के अन्तर्गत उसे प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों की दरों में वृद्धि कर देनी चाहिए, अपने बजट हीनार्थ न बनाकर संतुलित बनाना चाहिए एवं जनता से आकर्षक उपायों द्वारा अधिक ऋण लेना चाहिए। इस प्रकार कार्य किये जाने पर जनता के पास क्रयशक्ति कम होती जायेगी एवं तब वह अधिक दाम में माँग न करेंगी, फलत: मूल्यों में गिरावट आएगी।

4. नवीन मौद्रिक नीति : नवीन वित्तीय नीति के साथ ही साथ सरकार को अपनी मौद्रिक नीति भी परिवर्तित कर देनी चाहिए। इस नीति के अन्तर्गत सरकार को बैंक दर में वृद्धि कर देनी चाहिए। बैंक दर में वृद्धि होने पर व्यक्तिगत खर्यो एवं व्यक्तिगत विनियोगों में कमी आयेगी क्योंकि तब अधिक ब्याज के लालच में व्यक्ति अपना धन इधर-उधर विनियोग न करके बैंक में जमा करेंगे। वित्तीय नीति के फलस्वरुप बैंकों के साख निर्गमन पर पूर्व से ही कुछ विशिष्ट प्रतिबंध लग जायेंगे। अत: इस समय मौद्रिक नीति का दोहरा प्रभाव होगा एवं चलन में मुद्रा की मात्रा कम होती जायेगी।

(B) वस्तुओं की मात्रा में वृद्धि करना  

चलन की मात्रा को कम करने के साथ ही साथ देश में वस्तुओं एवं सेवाओं की मात्रा में वृद्धि कर दी जाय तो मुद्रास्फीति पर शीघ्र नियंत्रण हो जाता है। मुद्रास्फीति उत्पन्न हो जाने पर देश की वस्तुओं की मात्रा बढ़ाने के लिए निम्न उपाय प्रयुक्त किये जा सकते हैं

1. नवीन प्रशुल्क नीति : सरकार को अपनी प्रशुल्क नीति में इस प्रकार परिवर्तन करना चाहिए जिससे कि आयातों को प्रोत्साहन मिले एवं निर्यात हतोत्साहित हो। आयात अधिक होने एवं निर्यात कम होने पर देश में स्वाभाविक रुप से वस्तुओं की मात्रा बढ़ेगी।

2. औद्योगिक विकास : देश में उद्योगों का अधिकतम विकास किया जाना चाहिए। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए नवीन उद्योग स्थापित किये जाने चाहिए, पुराने उद्योगों का उत्पादन बढ़ाया जाना चाहिए। कुटीर उद्योगों के विकास को विशेष महत्व देना चाहिए।

3. सरकारी उत्पादन : आवश्यक होने पर कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में सरकार को स्वयं भी उत्पादन शुरु कर देना चाहिए।

(C) मूल्य नियंत्रण एवं राशनिंग 

मुद्रा की मात्रा कम करने एवं उत्पादन बढ़ाने के अलावा कुछ व्यक्तियों का विचार है कि मुद्रास्फीति पर नियंत्रण करने के लिए मूल्य नियंत्रण एवं राशनिंग प्रथा (Price control and Rationing) शुरु की जानी चाहिए। वास्तव में इस उपाय द्वारा मुद्रास्फीति को समाप्त नहीं किया जा सकता है कुछ समय के लिए मूल्यों पर नियंत्रण अवश्य लगाया जा सकता है। अतः उचित यही है कि मुद्रास्फीति जैसी सामाजिक बुराई (Social evil) को समूल नष्ट करने के लिए A एवं B दोनों ही उपायों को एक साथ लागू कर देना चाहिए।

मुद्रास्फीति के नियंत्रण उपाय क्या है?

मुद्रास्फीति को रोकने के लिए निम्न तीन प्रकार के उपायों का सहारा लिया जा सकता है:-

(I) मौद्रिक उपाय, 

(II) राजकोषीय उपाय, 

(III) अन्य उपाय।  

मौद्रिक उपाय (Monetary Measure)

(1) मुद्रा निकालने सम्बन्धी नियमों को कठोर बनाना : मुद्रास्फीति की मात्रा कम करने के लिए सरकार के लिए यह आवश्यक है कि मुद्रा निकालने सम्बन्धी नियमों को कड़ा करें ताकि केन्द्रीय बैंक को अतिरिक्त मुद्रा निकालने में अधिक कठिनाई हो। इसके लिए नोट के पीछे रखे जाने वाले स्वर्ण अथवा विदेशी-विनिमय के कोषों की मात्रा में वृद्धि कर दी जाती है और यदि पहले से कोई कोष नहीं रखे जा रहें हों तो कोष रखने की व्यवस्था आरम्भ की जाती है।

(2) पुरानी मुद्रा वापस लेकर नई मुद्रा देना : मुद्रास्फीति बहुत भयंकर होने की दशा में साधारण उपचार उपयोगी नहीं हो सकते। अत: पुरानी सब मुद्राएँ समाप्त कर उनके बदले में नयी मुद्राएँ दे दी जाती हैं। ऐसा करने में प्राय: पुरानी बहुत-सी मुद्राओं को एक नई मुद्रा परिवर्तित किया जाता है।

(3) साख-स्फीति को कम करना (Reducing credit inflation) : मुद्रास्फीति को कम करने के लिए साख-स्फीति को कम करना आवश्यक है। इसके लिए केन्द्रीय बैंक द्वारा बैंक दर बढ़ाकर, प्रतिभूतियाँ बेचकर तथा बैंकों से अधिक कोष माँगकर, साख कम की जा सकता किया जाता है। केन्द्रीय बैंक को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए। जिससे साख लेना अधिक महँगा हो जाय।

राजकोषीय उपाय (Fiscal Measures)  

(1) बजट में सन्तुलन : सरकार को मुद्रास्फीति के समय घाटे के बजट की नीति नहीं मुद्रा का निर्गमन करना पड़ेगा जो मुद्रास्फ़ीति को अधिक भयावह बना देगा। अत: बजट को अपनानी चाहिए क्योंकि यदि बजट घाटे का है तो उसकी पूर्ति करने के लिए सरकार को अतिरिक्त संतुलित रखा जाना चाहिए।

(2) ऋण-प्राप्ति (Obtaining Loans) : मुद्रास्फीति कम करने के लिए सरकार को ऋण-पत्र (debentures) बेचने चाहिए और जनता को यह पत्र खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इनामी बॉण्ड अथवा बचत-पत्र भी ऐसी राशियों में निर्गमित करने चाहिए। जिन्हें सब वर्गों के व्यक्ति खरीद सकें। यह ऋण-पत्र अधिकतर अल्पकालीन होने चाहिए ताकि जनता को उन्हें खरीदने में कोई संकोच न हो। 

(3) सार्वजनिक व्यय पर नियंत्रण : मुद्रास्फीति के समय सरकार को अपने व्यय में कमी कर देनी चाहिए जिससे अतिरिक्त मुद्रा लोगों के हाथों में न पहुँच सकें। विशेष रूप से अनुत्पादक व्यय को तो रोक ही देना चाहिए, क्योंकि इससे उत्पादन में वृद्धि नहीं होती तथा कीमतें बढ़ने लगती हैं।

(4) बचतों को प्रोत्साहन : यदि जनता के पास उपलब्ध क्रय-शक्ति को लगातार व्यय किया जावे तो निश्चित ही कीमतें बढ़ने लगती हैं। अत: सरकार को बैंकों एवं डाकघरों के माध्यम से ऐसी नीतियाँ कार्यान्वित करनी चाहिए जिससे लोग बचत करने के लिए प्रोत्साहित हों। इसके लिए आकर्षक ब्याज की दर भी अपनानी चाहिए।

(5) मजदूरी बन्धन (Freezing of Wages) : मुद्रास्फीति पर रोक लगाने के लिए प्राय: मजदूरी को बन्धित करने की नीति अपनाई जाती है जिसके अनुसार मज़दूर और मालिक मिलकर यह समझौता कर लेते हैं कि आगामी 5 या 10 वर्ष तक मजदूरी में कोई वृद्धि नहीं की जायगी। द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् जर्मनी ने अपने आर्थिक विकास के लिए मजदूरी बंधन की नीति अपनाई।

(6) उत्पादन वृद्धि (Increasing Production) : उत्पादन की मात्रा में वृद्धि से भी मुद्रास्फीति का प्रभाव कम हो जाता है, क्योंकि वस्तुओं की पूर्ति पहले से बढ़ जाती है। अतः सरकार द्वारा ऐसे उद्योगों के वास्ते लाइसेंस दिए जाने चाहिए जिनमें कम पूँजी लगानी पड़े और शीघ्र उत्पादन द्वारा उपभोक्ताओं की अधिक से अधिक आवश्यकताएं पूरी कर सकें।

(7) मूल्य-नियन्त्रण (Price Control) : स्फीति कम करने के लिए वस्तु-मूल्यों पर भी कड़े नियंत्रण लगाने चाहिए और उपभोक्ताओं को कम माल खरीदने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

अन्य उपाय (Other Measures)

(1) मूल्य नियन्त्रण एवं राशन व्यवस्था लागू करना (Adoption of Price Control and Rationing) : मुद्रास्फीति के कारण वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्यों में जो वृद्धि होती है उसका प्रभाव कम करने के लिए सरकार प्रायः मूल्य नियंत्रण तथा राशन व्यवस्था लागू करती है। इससे लोगों को कुछ वस्तुएँ सस्ती तो मिलती हैं, परन्तु उनकी मात्रा बहुत कम होती है।

(2) निश्चित आय वाले वर्ग को महँगाई-भत्ता देना (Provision of Dearness Allowance to fixed Income Class) : मुद्रास्फीति का सबसे बुरा प्रभाव निश्चित आय वाले वर्ग पर पड़ता है, क्योंकि मूल्य बढ़ जाने से उनकी वास्तविक आय कम हो जाती है। इसकी पूर्ति करने के लिए इस वर्ग के लोगों को महँगाई-भत्ता देने की व्यवस्था की जाती है, परन्तु महँगाई-भत्ता केवल आंशिक सहायता होती है, क्योंकि यह मूल्य वृद्धि की तुलना में बहुत कम होता है।

(IV) मूल्यों में सहायता (Subsidy in Respect of Price) : कुछ वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिन्हें विदेशों से आयात करना पड़ता है अथवा जिनके मूल्य अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों द्वारा निर्धारित होते हैं। कभी-कभी सरकार इनमें से कोई वस्तु (जैसे अनाज) जनता को सस्ते मूल्य पर देना चाहती है तो लागत-मूल्य और विक्रय-मूल्य में जो अंतर होता है वह घाटा स्वयं सरकार सहन कर लेती है। उदाहरणत: यदि बर्मा से आयात किए गए चावल का भाव 200 रुपए क्विन्टल हो और सरकार बंगाल की जनता को 180 रुपए क्विन्टल के भाव चावल देना चाहे तो वह 20 रुपए क्विन्टल का घाटा सहन कर लेती है।

मुद्रास्फीति के प्रभाव को कम करने के लिए किए गए यह सब यत्न केवल अल्पकालीन तथा अस्थाई सहायता मात्र हैं, मुद्रास्फीति के भीषण रोग का इलाज नहीं।

Frequently Asked Questions

उत्तर: मुद्रा की कीमत घट जाती है

उत्तर: व्यापारी वर्ग को

उत्तर: प्रोफेसर ब्रह्मानंद और वकील ने

उत्तर: अक्टूबर 1974 में (34.7%)

उत्तर: मई 1976 में (- 11.3%)

उत्तर: Labour Department’s Bureau of Labour Statistics

उत्तर: CSO (Central Statistics Office)

उपयुक्त तथ्यों से यह निष्कर्ष निकलता है कि विकासशील तथा नियोजित अर्थव्यवस्था के प्रारंभिक युग में मुद्रास्फीति की हल्की मात्रा लाभ पहुंचाने वाली होती है, क्योंकि वह उत्पादन, रोज़गार, आय तथा सरकारी विकास योजनाओं को गतिशीलता प्रदान करती है, किंतु मुद्रास्फीति का प्रयोग दवा की भाँति ही करना उचित है। जब वह भोजन की भाँति प्रयुक्त होना आरम्भ हो जाता है तभी सामाजिक एवं आर्थिक दोष उत्पन्न होने आरम्भ हो जाते हैं। मुद्रास्फीति को अफीम की भाँति समझा जाना चाहिए जिसका प्रयोग औषधि के रुप में किया जाय तो लाभदायक होता है, किंतु आदत पड़ने पर वह कार्य क्षमता एवं शरीर का विनाश कर देती है।

दोस्तों मुझे आशा है कि आपको हमारा आर्टिकल मुद्रास्फीति क्या है? What is Inflation in Hindi? के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी इसके लिए आपको और कहीं जाने की जरूरत नहीं है|

यदि आपके मन में इस Inflation meaning in Hindi Article को लेकर कोई Doubt है या आप चाहते हैं कि इसमें कुछ सुधार होना चाहिए तब इसके लिए आप नीचे Comment लिख सकते हैं आपकी इन्हीं विचारों से हमें कुछ सीखने और कुछ सुधारने का मौका मिलेगा |

यदि आपको यह लेख मुद्रास्फीति क्या है? इसके प्रकार, कारण और प्रभाव क्या है? अच्छा लगा हो इससे आपको कुछ सीखने को मिला हो तो आप अपनी प्रसन्नता और उत्सुकता को दर्शाने के लिए कृपया इस पोस्ट को Social Networks जैसे कि Facebook , Google+, Twitter इत्यादि पर Share कीजिए |

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  • पत्र मुद्रा क्या है? इसके कार्य,प्रकार और विशेषताएं क्या है?
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रूपरेखा : प्रस्तावना - आवश्यक वस्तुओं हुई महंगी - भारत की आर्थिक नीतियों की विफलता - विदेशी कर्ज में डूबा देश - गरीबी को दूर करके विकास को करना है संभव - उपसंहार।

कोई भी वस्तुओं और उत्पादों की कीमत में वृद्धि होने को महंगाई । महंगाई के कारन देश की अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव आते हैं। महंगाई मनुष्य की रोजी-रोटी को भी प्रभावित करता है। बढती हुई महंगाई भारत की एक बहुत ही गंभीर समस्या है। सरकार एक तरफ महंगाई को कम करने की बात करती है वही दूसरी तरफ महंगाई दिन-प्रतिदिन बढती जा रही है। आज देश में महंगाई मानो आसमान छू रही हो। कई लोग महंगाई के कारन शहर को छोड़कर अपने गांव बस जाते है क्यूंकि रोज की महंगाई उन्हें शहर में बसने नहीं देती। आज सभी लोग महंगाई को कम करने की मांग कर रही है। परंतु महंगाई देश में साल-दर-साल ऊपर चली जा रही है।

कमरतोड़ महंगाई जीवन के लिए आवश्यक वस्तुओं के मूल्यों में निरन्तर वृद्धि (महंगी) उत्पादन की कमी और माँग की पूर्ति में असमर्थता की परिचायक है। बढ़ती हुई महंगाई जीवन-चालन के लिए अनिवार्य तत्त्वों (कपड़ा, रोटी, मकान) की पूर्ति पए गरीब जनता के पेट पर ईंट बाँधती है, मध्यवर्ग की आवश्यकताओं में कटौती करती है, वही धनिक वर्ग के लिए आय के स्रोत उत्पन्न करती है।

देसी घी तो आँख आँजने को भी मिल जाए तो गनीमत है। वनस्पति देवता का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भी बहुत रजत-पुष्प चढ़ाने पड़ते हैं | पेट्रोल, डीजल, मिट्टी के तेल, रसोई गैस की दिन-प्रतिदिन बढ़ती मूल्य-वृद्धि ने दैनिक जीवन पर तेल छिड़ककर उसे भस्म करने का प्रवास किया है। तन ढकने के लिए कपड़ा महंगाई के गज पर सिकुड़ रहा है। सब्जी, फल, दालें और अचार गृहणियों को पुकार-पुकार कर कह रहे हैं - ' रूखी सूखी खाय के ठंडा पानी पिए।' रही मकान की बात, अगर महंगाई की यही स्थिति रही तो लोग जंगल में रहने लगेंगे। दिल्‍ली की हालत यह है कि दो कमरे-रसोई का सैट तीन-चार हजार रुपये किराये पर भी नहीं मिलता। इतने महंगाई में कैसे गुजरा करेंगे देश के गरीब वर्ग और मध्य वर्ग के लोग।

बढ़ती हुई महंगाई भारत-सरकार की आर्थिक नीतियों की विफलता का परिणाम है। प्रकृति के रोष और प्रकोप का फल नहीं, शासकों की बदनीयती और बदइंतजामी की मुँह बोलती तस्वीर है। काला धन, तस्करी और जमाखोरी महंगाई-वृद्धि के परम मित्र हैं। तस्कर खुले आम व्यापार करता है । काला धन जीवन का अनिवार्य अंग बन चुका है। काले धन की गिरफ्त में देश के बड़े नेताओं से लेकर उद्योगपति और अधिकारी तक शामिल हैं । काले धन का सबसे बुरा असर मुद्रास्फीति और रोजगार के अवसरों पर पड़ता है। यह उत्पादन और रोजगार की संभावना को कम कर देता है और दाम बढ़ा देता है।

इतना ही नहीं सरकार हर मास किसी-न-किसी वस्तु का मूल्य बढ़ा देती है। जब कीमतें बढ़ती हैं तो किसी के बारे में नहीं सोचती। दिल्‍ली बस परिवहन ने किराये में शत-प्रतिशत वृद्धि के परिणामत:दूसरी ओर टैक्सी वालों ने भी रेट बढ़ा दिए। विदेशी कर्ज और उसके सेवा-शुल्क (ब्याज) ने भारत की आर्थिक नीति को चौपट कर रखा है। भारत का खजाना खाली हो रहा है।

एक ओर विदेशी कर्ज बढ़ रहा है, तो दूसरी ओर व्यापारिक संतुलन बिगड़ रहा है। तीसरी ओर राष्ट्रीयकृत उद्योग निरन्तर घाटे में जा रहे हैं । इनमें प्रतिवर्ष अरबों रुपयों का घाटा भ्रष्ट राजनेताओं, नौकरशाही और बेईमान ठेकेदारों के घर में पहुँच कर जन-सामान्य को महंगाई की ओर धकेल रहा है।

गरीब देश की बादशाही-सरकारों के अनाप-शनाप बढ़ते खर्च देश की आर्थिक रीढ़ को तोड़ने की कसम खाए हुए हैं। मंत्रियों की पलटन, आयोगों की भरमार, शाही दौरे, योजनाओं की विकृति, सब मिलाकर गरीब करदाता का खून चूस रही हैं। देश में खपत होने वाले पेट्रोलियम-पदार्थों के कुल खर्च का एक बड़ा हिस्सा राजकीय कार्यों में खर्च होता है, लेकिन प्रचार माध्यमों से बचत की शिक्षा दी जाती है -'तेल की एक-एक बूँद की बचत कीजिए।'

सरकारों द्वारा आयात शुल्क तथा उत्पाद शुल्क बढ़ाए गए हैं । रेलवे ने मालभाड़ा बढ़ाया है तथा यात्री किरायों में वृद्धि की है। डाक की दरें भी बढ़ी हैं। लिफाफे का मूल्य एक रुपये से बढ़कर तीन रुपए हो गया है। इन सब बढ़ोत्तरियों का असर कीमतों पर पड़ना लाजिमी है। कीमतें बढ़ने का मुख्य कारण आर्थिक उदारीकरण है। उदारीकरण के तहत उद्योगपतियों और व्यापारियों को खुली छूट दी गयी है कि वे जितना चाहे ग्राहक से वसूलें। जिन अनेक चीजों पर से मूल्य नियन्त्रण उठा लिया गया है, उनमें दवाएँ भी हैं। अनेक अध्ययन यह बताते हैं कि पिछले पाँच-छह वर्षों में दवाओं की कीमतें बेतहाशा बढ़ी हैं । उपभोक्ता वस्तुओं की कीमत में वृद्धि का एक बड़ा कारण मार्केटिंग का नया तंत्र है, जिसमें विज्ञापनबाजी पर बेतहाशा खर्च किया जाता है। एक रुपया लागत की वस्तु दस रुपये में बेची जाती है। इन सबसे बचकर हमें गरीबी को दूर करने के बारे में सोचना चाहिए। गरीबी जब दूर होगी तभी देश की व्यवस्था ठीक होगी। हमें गरीबी को दूर करने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए। अगर हमे हमारे देश से गरीबी को हटाना है तो हमे महंगाई को जड़ से मिटाना होगा।

अधिक नोट छापने का गुर एवं विदेशी और स्वदेशी ऋण घाटे की खाई को पार करने के सेतु हैं, खाई भरने की विधि नहीं। जब घाटे की खाई भरी नहीं जाएगी, तो मुद्रास्फीति बढ़ती जाएगी। ज्यों-ज्यों मुद्रास्फीति बढ़ेगी, महंगाई छलाँग मार-मार कर आगे कूदेगी। जनता महंगाई की चक्की में और पिसती जाएगी। महंगाई को रोकने के लिए समय-समय पर हड़तालें और आंदोलन चलाये गये हैं लेकिन फिर भी महंगाई कम नही हुए है।

महंगाई की वजह से गरीब लोग पहनने के लिए कपड़े नहीं खरीद पाते हैं तथा अपने परिवार एक वक़्त का खाना ठीक से नहीं करा पाते है। महंगाई को कम करने के लिए उपयोगी राष्ट्र नीति की जरूरत है। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है उस तरीके से महंगाई को रोकना बहुत ही जरूरी है नहीं तो हमारी आजादी को दुबारा से खतरा उत्पन्न हो जाएगा। हमारी अधिकांश समस्याओं का मूल कारण देश की बढती जनसंख्या है। जब तक जनसंख्या को वश में नहीं किया जा सकता महंगाई कम नहीं होगी। महंगाई की वजह से निम्न वर्ग के लोगों को जरूरत की चीजें नहीं मिल पाती हैं और इससे अपने रोजमरा जीवन में खुशी से जीवन व्यतीत नहीं कर पाते हैं।

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Essay on inflation in hindi महंगाई की समस्या पर निबंध.

Read an essay on Inflation in Hindi Language with meaning. Most people find difficulty in understanding what is inflation. But now you can easily understand about inflation in Hindi language.

hindiinhindi Essay on Inflation in Hindi

Essay on Inflation in Hindi

भारत एक बहुत प्राचीन, विशाल तथा महान देश है। जनसंख्या की दृष्टि से चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है। विश्व में हर छठा-सातवां व्यक्ति भारतीय है। लेकिन हमारे देश में अनेकों समस्याएं भी हैं और उनका विस्तार भी असाधारण। कभी तो लगता है जैसे भारत एक समस्याओं का ही देश है। गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और महंगाई जैसी भीषण समस्याएं आज हमारे सामने हैं। महँगाई तो एक महामारी की तरह है जो सर्वत्र एक कोने से दूसरे कोने तक फैलती हैं। इसकी मार से कोई नहीं बचता। लेकिन निम्न तथा मध्यवर्ग के लोग इससे सर्वाधिक प्रभावित होते हैं। महामारी की तरह महँगाई घातक तो नहीं होती और न प्राण लेती है परन्तु आर्थिक दृष्टि से लोगों को पंगु और असहाय अवश्य बना देती है।

महँगाई या निरन्तर मूल्यों में वृद्धि एक बड़े चिंता का विषय है। इसके प्रभाव से जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। लोग निराशा और हताश के शिकार हो जाते हैं। परिणामतः जीवन सहज नहीं रह पाता और जीवन स्तर निरन्तर गिरता जाता है। भारत में जनसाधारण का जीवन स्तर अभी भी बहुत नीचा है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के 59 वर्षों के बाद भी इस में कोई वांछित सुधार नहीं हुआ है। देश की एक बहुत बड़ी जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे अपना जीवन-यापन कर रही है।

जीवन-उपयोगी आवश्यक वस्तुओं जैसे अनाज, ईंधन, कपड़े, मकान, उपचार की वस्तुएं, बिजली, पानी आदि की कीमतों में अत्याधिक वृद्धि ने सबको परेशान कर रखा है। इसकी कहीं कोई सीमा नहीं दिखाई देती। स्थिति ने एक भयावह मोड़ ले लिया तथा जन साधारण बहुत त्रस्त और व्याकुल दिखाई देता है। अतः यह अति आवश्यक है कि इस पर तुरन्त काबू पाया जाए और खाद्य-पदार्थों आदि के मूल्यों में वृद्धि को कारगर ढंग से नियंत्रित किया जाये।

मूल्यों में निरन्तर और तीव्र वृद्धि के अनेक स्पष्ट कारण हैं। इन कारणों की पहचान करके इनका निवारण आज एक बहुत बड़ी आवश्यकता है। यदि समय रहते महँगाई को नहीं रोका गया तो इसके भीषण परिणाम हो सकते हैं। महँगाई उग्रवाद तथा आतंकवाद जैसी बुराइयों को प्रोत्साहन देती हैं। महँगाई का एक सबसे बड़ा कारण हमारी जनसंख्या है। जनसंख्या की दृष्टि से भारत विश्व का दूसरा देश है। अन्य विकासशील और विकसित राष्ट्रों की तुलना में हमारी जनसंख्या बड़ी तेजी से बढ़ रही है। इस जनसंख्या विस्फोट ने हमारी प्रगति, उन्नति और विकास की सभी योजनाओं को जैसे असफल कर दिया है।

जनसंख्या नियंत्रण के लिए हमें तुरन्त प्रभावी कदम उठाने चाहियें तथा कुछ कड़े निर्णय लेने से नहीं डरना चाहिए। हमें ‘‘एक युगल, एक बच्चा” का नियम अपनाना चाहिये तथा इस नियम का बड़ी सख्ती से पालन करना चाहिए। इस संदर्भ में हम चीन जैसे देश से बहुत कुछ सीख सकते हैं। परिवार नियोजन तथा परिवार कल्याण पर हमें विशेष ध्यान देना चाहिये। यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे यहां समान नागरिक आचरण संहिता (यूनीफॉर्म सिविल कोड) नहीं है। अत: कुछ धर्म व सम्प्रदायों के लोग एक से अधिक विवाह करने को स्वतन्त्र हैं। परिणामत: वे अनेक बच्चों के माता-पिता बन रहे हैं। जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन के अभाव में महँगाई, बेरोजगारी, भुखमरी जैसी समस्याओं पर विजय पाना बहुत मुश्किल है।

निरन्तर बढ़ती जनसंख्या के कारण मांग व आपूर्ति में संतुलन बिगड़ जाता है। वस्तुएं कम होती हैं और उनके ग्राहकों की संख्या बहुत अधिक। अत: वस्तुओं के दाम असाधारण रूप से बढ़ने लगते हैं। देश में संसाधन व प्राकृतिक स्रोत सीमित हैं। एक सीमा तक ही इसका दोहन किया जा सकता है। निरन्तर बढ़ती हुई जनसंख्या के असाधारण दबाव से हमारी सारी व्यवस्थाएं चरमराने लगी हैं। आज भारत वर्ष की आबादी 100 करोड़ के लगभग हैं। यह विश्व का 16वां भाग है परन्तु हमारे पास धरती का मात्र 2-42 प्रतिशत भाग ही है। इससे समस्या की गंभीरता को सरलता से समझा जा सकता है। उचित संसाधनों के अभाव में अशांति, हिंसा, महँगाई जैसी समस्याओं का उग्र हो जाना स्वाभाविक ही है।

हमारी योजनाएं व्यावहारिक, संतुलित और शीघ्र परिणाम देने वाली होनी चाहियें। उन्हें भविष्य की आवश्यकताओं, उपलब्ध साधनों आदि को ध्यान में रख कर बनाया जाना चाहिये। किसानों, मजदूरों, खेतीहर, कामगरों, स्त्रियों आदि की उचित शिक्षा के अभाव में महँगाई पर रोक लगाना संभव नहीं दिखाई देता । शिक्षा के अभाव में बिचौलिये ग्रामीण जनता का निरन्तर शोषण करते रहते हैं। वे जमाखोरी पर वस्तुओं की कीमतें बढ़ाते रहते हैं। परिणामस्वरूप जनसामान्य और कमजोर वर्ग के लोगों का शोषण होता रहता है।

प्रशासन व व्यापारियों की मिलीभगत स्थिति को और भयावह बना देती है। मूल्य नियंत्रण की कई सरकारी योजनाएं तो बनती हैं पर भ्रष्ट सरकारी अफसरों व लालफीतेशाही के चलते उन पर अमल नहीं हो पाता। सरकार व प्रशासन को कड़े कदम उठाने चाहिये। सरकार को खुद को चाहिये कि वह अपने खर्चे पर नियंत्रण रखे और जनता के धन की बर्बादी न होने दे। किसी भी दफ्तर में चले जाओ, सभी लोग समान रूप से रिश्वतखोर और कामचोर मिलेंगे। घाटे में चलने वाले उपक्रमों, कारखानों आदि को तुरन्त बंद किया जाना चाहिए । सरकारी कार्यालयों में कर्मचारियों की संख्या में कमी की जानी चाहिए तथा उनकी कार्यकुशलता बढ़ाकर जिम्मेदारी सुनिश्चित की जानी चाहिये।

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essay on inflation in hindi

मुद्रास्फीति पर निबंध | Essay on Inflation in Hindi

by Meenu Saini | Aug 30, 2023 | General | 0 comments

Mudraaspheeti Par Nibandh Hindi Essay 

मुद्रास्फीति  (inflation) par nibandh hindi mein.

वर्तमान वैश्वीकरण दर ने अधिकांश संसाधनों और विशेष रूप से वित्तीय संसाधनों के मूल्य पर कई बदलाव और प्रभाव डाले हैं।  विश्व की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है जबकि दूसरी ओर संसाधन बिना पूर्ति के समाप्त हो रहे हैं जिससे कमी पैदा हो रही है।

परिणामस्वरूप, आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया है जिसने दुनिया की आबादी के एक बड़े हिस्से के जीवन स्तर को भी प्रभावित किया है। 

हालाँकि, अर्थशास्त्रियों ने यह कहा है कि मुद्रास्फीति की दर और मुद्रा आपूर्ति एक दूसरे से संबंधित है। इसलिए आज मुद्रास्फीति पर निबंध में हम मुद्रास्फीति की परिभाषा, प्रकार, कारण, प्रभाव और इसको नियंत्रित करने के उपायों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। 

मुद्रास्फीति की परिभाषा

मुद्रास्फीति के प्रकार, मुद्रास्फीति के कारण, मुद्रास्फीति के प्रभाव.

  • मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के उपाय

मुद्रास्फीति एक जटिल आर्थिक घटना है जो जीवन यापन की लागत से लेकर पैसे के मूल्य तक हमारे जीवन के हर पहलू को प्रभावित करती है। इसे उस दर के रूप में परिभाषित किया गया है जिस पर वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों का सामान्य स्तर बढ़ रहा है, जिसके परिणामस्वरूप क्रय शक्ति गिर रही है। 

अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति को सीमित करने और अपस्फीति से बचने का प्रयास करते हैं।

  Top  

मुद्रास्फीति एक आर्थिक संकेतक है जो अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की बढ़ती कीमतों की दर को इंगित करता है। अंततः यह रुपये की क्रय शक्ति में कमी को दर्शाता है। इसे प्रतिशत के रूप में मापा जाता है.

 यह मात्रात्मक आर्थिक समय की अवधि में चयनित वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में परिवर्तन की दर को मापता है।  मुद्रास्फीति इंगित करती है कि वस्तुओं और सेवाओं की चयनित श्रेणी के लिए औसत कीमत में कितना बदलाव आया है। इसे प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है।  मुद्रास्फीति में वृद्धि अर्थव्यवस्था की क्रय शक्ति में कमी का संकेत देती है।

यह प्रतिशत पिछली अवधि की तुलना में वृद्धि या कमी को दर्शाता है। मुद्रास्फीति चिंता का कारण हो सकती है क्योंकि मुद्रास्फीति बढ़ने के साथ-साथ पैसे का मूल्य घटता रहता है।

18वीं शताब्दी में, स्कॉटिश दार्शनिक और अर्थशास्त्री डेविड ह्यूम ने पहली बार ‘मुद्रास्फीति’ शब्द का इस्तेमाल किया था। ह्यूम ने कहा कि पैसे की आपूर्ति बढ़ने के साथ कीमतें बढ़ती रहेंगी, जिससे बड़े पैमाने पर कीमतों में वृद्धि होगी।  बाद में 20वीं सदी के मध्य में, अमेरिकी अर्थशास्त्री मिल्टन फ्रीडमैन ने कहा कि जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था बढ़ती है, पैसे की आपूर्ति बढ़नी चाहिए क्योंकि यह उतार-चढ़ाव वाली कीमतों को स्थिर करती है।

मुद्रास्फीति निम्नलिखित प्रकार की होती है; 

  • मांग-प्रेरित मुद्रास्फीति
  • लागत-प्रेरित मुद्रास्फीति 

अंतर्निहित मुद्रास्फीति

मांग प्रेरित मुद्रास्फीति.

मांग-प्रेरित मुद्रास्फीति तब होती है जब धन और ऋण की आपूर्ति में वृद्धि से अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता की तुलना में वस्तुओं और सेवाओं की समग्र मांग अधिक तेजी से बढ़ती है। इससे मांग बढ़ती है और कीमतें बढ़ती हैं।

जब लोगों के पास अधिक पैसा होता है, तो इससे उपभोक्ता भावना सकारात्मक होती है। इसके परिणामस्वरूप, अधिक खर्च होता है, जिससे कीमतें ऊंची हो जाती हैं। 

यह अधिक मांग और कम लचीली आपूर्ति के साथ मांग-आपूर्ति का अंतर पैदा करता है, जिसके परिणामस्वरूप कीमतें अधिक होती हैं।

लागत-प्रेरित मुद्रास्फीति

लागत-प्रेरित मुद्रास्फीति उत्पादन प्रक्रिया इनपुट के माध्यम से कीमतों में वृद्धि का परिणाम है। जब धन और ऋण की आपूर्ति में वृद्धि को किसी वस्तु या अन्य परिसंपत्ति बाजार में प्रवाहित किया जाता है, तो सभी प्रकार के मध्यवर्ती सामानों की लागत बढ़ जाती है। 

यह विशेष रूप से तब स्पष्ट होता है जब प्रमुख वस्तुओं की आपूर्ति पर नकारात्मक आर्थिक झटका लगता है। उत्पाद या सेवा की लागत बढ़ जाती है और उपभोक्ता कीमतों में वृद्धि होती है। 

उदाहरण के लिए, जब मुद्रा आपूर्ति का विस्तार होता है, तो यह तेल की कीमतों में उछाल पैदा करता है। इसका मतलब यह है कि ऊर्जा की लागत बढ़ सकती है और बढ़ती उपभोक्ता कीमतों में योगदान कर सकती है, जो मुद्रास्फीति के विभिन्न उपायों में परिलक्षित होती है। 

अंतर्निहित मुद्रास्फीति अनुकूली अपेक्षाओं या इस विचार से संबंधित है कि लोग वर्तमान मुद्रास्फीति दरों के भविष्य में भी जारी रहने की उम्मीद करते हैं। जैसे-जैसे वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ती हैं, लोग भविष्य में भी इसी दर से निरंतर वृद्धि की उम्मीद कर सकते हैं। 

इस प्रकार, श्रमिक अपने जीवन स्तर को बनाए रखने के लिए अधिक लागत या मजदूरी की मांग कर सकते हैं। उनकी बढ़ी हुई मज़दूरी के परिणामस्वरूप वस्तुओं और सेवाओं की लागत बढ़ जाती है, और यह मज़दूरी-मूल्य सर्पिल जारी रहता है क्योंकि एक कारक दूसरे को प्रेरित करता है और इसके विपरीत।

मुद्रास्फीति के दो मुख्य कारण हैं: मांग-प्रेरित और लागत-प्रेरित। 

किसी अर्थव्यवस्था में कीमतों में सामान्य वृद्धि के लिए दोनों जिम्मेदार हैं, लेकिन कीमतों पर दबाव डालने के लिए प्रत्येक अलग-अलग तरीके से काम करता है।

कुछ स्रोत धन आपूर्ति का विस्तार को मुद्रास्फीति का तीसरा कारण बताते हैं। हालाँकि, फ़ेडरल रिज़र्व बताता है कि मुद्रा आपूर्ति और मुद्रास्फीति का संबंध समय के साथ कम हो गया है, और यह इसका अपना कोई अलग कारण नहीं है। 

मांग प्रेरित 

बढ़ती कीमतों का सबसे आम कारण मांग-प्रेरित मुद्रास्फीति है।  यह तब होता है जब उपभोक्ता की वस्तुओं और सेवाओं की मांग इतनी बढ़ जाती है कि वह आपूर्ति से अधिक हो जाती है। इस बीच, निर्माता मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त उत्पादन नहीं कर सकते हैं और आपूर्ति को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक विनिर्माण के निर्माण के लिए उनके पास समय नहीं हो सकता है। 

इसे बनाने के लिए उनके पास पर्याप्त कुशल श्रमिक भी नहीं हो सकते हैं, या कच्चा माल दुर्लभ हो सकता है। 

यदि विक्रेता कीमत नहीं बढ़ाते हैं, तो वे बेच देंगे और अंततः उन्हें एहसास होगा कि अब उनके पास कीमतें बढ़ाने की विलासिता है। यदि पर्याप्त विक्रेता ऐसा करते हैं, तो वे मुद्रास्फीति पैदा करते हैं। ऐसी कई परिस्थितियाँ हैं जो मांग-प्रेरित मुद्रास्फीति पैदा करती हैं। 

उदाहरण के लिए, बढ़ती अर्थव्यवस्था मुद्रास्फीति को प्रभावित करती है क्योंकि जब लोगों को बेहतर नौकरियां मिलती हैं और वे अधिक आश्वस्त हो जाते हैं, तो वे अधिक खर्च करते हैं। 

जैसे-जैसे कीमतें बढ़ती हैं, लोग मुद्रास्फीति की उम्मीद करने लगते हैं। यह अपेक्षा उपभोक्ताओं को भविष्य में कीमतों में बढ़ोतरी से बचने के लिए अभी और अधिक खर्च करने के लिए प्रेरित करती है। इससे विकास को और बढ़ावा मिलता है। इस कारण से, थोड़ी मुद्रास्फीति अच्छी है। अधिकांश देशों के केंद्रीय बैंक इसे पहचान जाते हैं। उन्होंने मुद्रास्फीति के बारे में जनता की अपेक्षाओं को प्रबंधित करने के लिए एक मुद्रास्फीति लक्ष्य निर्धारित किया है। 

लागत प्रेरित

दूसरा कारण लागत-प्रेरित मुद्रास्फीति है। यह केवल तब होता है जब आपूर्ति की कमी के साथ-साथ पर्याप्त मांग भी होती है जिससे उत्पादक को कीमतें बढ़ाने की अनुमति मिलती है। 

जब कोई देश अपनी मुद्रा की विनिमय दरों को कम करता है, तो इससे आयात में लागत-प्रेरित मुद्रास्फीति भी पैदा हो सकती है। इससे स्थानीय स्तर पर उत्पादित वस्तुओं की तुलना में विदेशी वस्तुएं अधिक महंगी हो जाती हैं। 

मुद्रा आपूर्ति में वृद्धि 

बढ़ी हुई मुद्रा आपूर्ति का मतलब है कि प्रचलन में धन की कुल मात्रा उत्पादन की दर से आगे निकल जाती है, जिससे बहुत कम उत्पादों का पीछा करने के लिए बहुत अधिक डॉलर (या कोई अन्य मुद्रा) पैदा होती है।

दूसरे शब्दों में, लोगों को समान मात्रा में सामान के लिए अधिक धनराशि खर्च करनी पड़ती है, जबकि बाजार में आपूर्ति समान या कम रहती है।

इस बढ़ी हुई मुद्रा आपूर्ति से उस मुद्रा के मूल्य में कमी आती है क्योंकि उसकी क्रय शक्ति कम हो जाती है। सबसे खराब स्थिति में, यह अत्यधिक मुद्रास्फीति का कारण बन सकता है, जैसा कि उदाहरण के लिए जिम्बाब्वे में हाल के दिनों में देखा गया है।

मुद्रा अवमूल्यन

मुद्रा अवमूल्यन अन्य वैश्विक मुद्राओं की तुलना में मुद्रा के मूल्य में गिरावट है। एक अनुकूल विनिमय दर अन्य देशों को अपने देश के उत्पादों को निर्यात करने के लिए प्रोत्साहित करती है, जिससे स्थानीय स्तर पर उत्पादन करने की तुलना में विदेश में खरीदारी करना अधिक लाभदायक हो जाता है।

बढ़ती निर्यात प्रतिस्पर्धा स्थानीय कंपनियों के लिए विनिर्माण लागत में कटौती करने के प्रोत्साहन को कम कर देती है क्योंकि सामग्री सस्ते में प्राप्त होती है। इसके साथ ही, यह स्थानीय व्यवसायों के लिए जोखिम बढ़ाता है जो कम मुद्रा विनिमय दर वाले देश के समान कीमत पर समान उत्पाद पेश नहीं कर सकते हैं।

साथ ही, यह रणनीति आयात बाजार पर नकारात्मक प्रभाव डालती है, जिससे कमजोर मुद्रा वाले देश के स्थानीय नागरिकों के लिए विदेशी सामान खरीदना अधिक महंगा हो जाता है।

दिलचस्प बात यह है कि वस्तुओं की कीमतों को कृत्रिम रूप से कम करके निर्यात गतिविधि को प्रोत्साहित करने के लिए मुद्रा का जानबूझकर अवमूल्यन किया जा सकता है, जो अक्सर राष्ट्रीय मजदूरी को निम्न स्तर पर रखने के साथ-साथ चलता है। प्रतिस्पर्धी व्यापारिक माहौल के परिणामस्वरूप हेरफेर की यह रणनीति एक देश से दूसरे देश तक फैल सकती है।

हालाँकि, अन्य आर्थिक कारक, जैसे राजनीतिक अस्थिरता, दो देशों के बीच अलग-अलग ब्याज दरें और बढ़ी हुई धन आपूर्ति, मुद्रा के मूल्यह्रास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।

मुद्रास्फीति के निम्नलिखित प्रभाव हैं –

पैसे का मूल्यह्रास : इस अवधारणा का निरंतर प्रभाव पैसे के मूल्य में गिरावट है। यह धन के मूल्य में गिरावट को दर्शाता है। जो वस्तु एक दिन पहले सस्ती थी, वह अगले दिन महंगी हो जाती है।  

उदाहरण के लिए, 1974 में एक कार की औसत कीमत $97 थी।  हालाँकि, अब यह लगभग $13,800 पर है।

बढ़ी हुई बैंक दरें: बढ़ती कीमतें सरकार को बैंक दरें बढ़ाने के लिए मजबूर करती हैं।  

उदाहरण के लिए, संघीय सरकार ने पिछले कुछ महीनों में बैंक दरों में लगातार 0.5 अंक की वृद्धि की है।  यदि वे ऐसा करना जारी रखते हैं, तो उपभोक्ता कम उधार लेंगे और पैसा रखने का प्रयास करेंगे।

उच्च जीवन स्तर: चूँकि उपभोक्ताओं की आय अच्छी होती है, वे वस्तुओं और सेवाओं पर अधिक खर्च करते हैं।  उदाहरण के लिए, एक मध्यमवर्गीय परिवार पहले ओवन खरीदने से बचता है। हालाँकि, अतिरिक्त पैसा होने से उन्हें अपने जीवन स्तर को उन्नत करने में मदद मिलती है।

बढ़ी हुई कीमतें: मुद्रास्फीति का एक बड़ा प्रभाव कीमतों पर पड़ता है। अगर कंपनियों को इसके बारे में पता चलेगा तो वे कीमतें बढ़ा देंगी। कंपनियों का मानना है कि ग्राहक कोई भी राशि चुकाने को तैयार हैं, इसलिए सेवाएं और सामान महंगे हो जाते हैं।

आय वितरण असमानता: मूल्य वृद्धि गरीबों को प्रभावित करती है और अमीरों को और अधिक अमीर बनाती है।  सीधे शब्दों में कहें तो कीमतें बढ़ने से फर्म के मालिक (व्यवसायी और उद्यमी) अमीर हो जाते हैं।  इसके विपरीत, उपभोक्ता उन्हें भुगतान करते रहते हैं, जिससे आय कम हो जाती है।

निर्यात पर नकारात्मक प्रभाव: कच्चे माल की कीमतें बढ़ने से निर्यात पर भी असर पड़ता है.  परिणामस्वरूप, विदेशी बाज़ार में उत्पादों की माँग कम हो जाती है।  इस प्रकार, निर्यात राजस्व में गिरावट आई है।

निवेशकों पर प्रभाव: जैसे-जैसे कीमतें बढ़ती हैं, निवेशक कम बचत और अधिक खर्च करने की कोशिश करते हैं।  हालाँकि, यदि किसी देश में दर ऊँची है तो बाज़ार नकारात्मक प्रतिक्रिया देगा।

मुद्रास्फीति नियंत्रित करने के उपाय

मुद्रास्फीति नियंत्रित करने के निम्न उपाय हैं; 

मूल्य नियंत्रण: मूल्य नियंत्रण सरकार द्वारा अनिवार्य मूल्य सीमा या न्यूनतम सीमा है और विशिष्ट वस्तुओं पर लागू होती है। वेतन वृद्धि मुद्रास्फीति को दबाने के लिए मूल्य नियंत्रण के साथ वेतन नियंत्रण लागू किया जा सकता है।

संकुचनकारी मौद्रिक नीति : संकुचनकारी मौद्रिक नीति अब मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने का एक अधिक लोकप्रिय तरीका है। इस नीति का लक्ष्य ब्याज दरों में वृद्धि करके अर्थव्यवस्था के भीतर धन की आपूर्ति को कम करना है।  यह ऋण को अधिक महंगा बनाकर आर्थिक विकास को धीमा करने में मदद करता है, जिससे उपभोक्ता और व्यावसायिक खर्च कम हो जाता है।

सरकारी प्रतिभूतियों पर उच्च ब्याज दरें भी बैंकों और निवेशकों को ट्रेजरी खरीदने के लिए प्रोत्साहित करके विकास को धीमा कर देती हैं, जो कम दरों से लाभान्वित होने वाले जोखिम भरे इक्विटी निवेशों के बजाय रिटर्न की एक निर्धारित दर की गारंटी देते हैं।

खुला बाजार परिचालन :  ओएमओ या खुला बाजार परिचालन एक उपकरण है जिसके साथ फेडरल रिजर्व धन आपूर्ति को बढ़ाता है (ट्रेजरी खरीदकर) या घटाता है (ट्रेजरी बेचकर) और ब्याज दरों को समायोजित करता है। 

छूट की दर :  इस ऋण सुविधा के माध्यम से अल्पकालिक ऋण दिए जाते हैं, इसको डिस्काउंट विंडो कहते है। छूट दर, जो सभी रिज़र्व बैंकों में समान है, प्रत्येक क्षेत्रीय बैंक के निदेशक मंडल और फेड के गवर्नर बोर्ड की सर्वसम्मति से निर्धारित की जाती है। 

हालाँकि डिस्काउंट विंडो का प्राथमिक उद्देश्य बैंकों की अल्पकालिक तरलता जरूरतों को पूरा करना और बैंकिंग प्रणाली में स्थिरता बनाए रखना है, छूट की दर एक और ब्याज दर है जिसे मुद्रास्फीति को कम करने के लिए बढ़ाने की आवश्यकता होती है।

मुद्रास्फीति हमारी आर्थिक प्रणालियों का एक जटिल हिस्सा है। यह एक दोधारी तलवार है जो हल्की स्थिति में आर्थिक विकास को प्रोत्साहित कर सकती है, लेकिन जब यह बहुत अधिक हो जाए तो आर्थिक अस्थिरता भी पैदा कर सकती है। मुद्रास्फीति को समझना नीति निर्माताओं, निवेशकों और उपभोक्ताओं के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमारे निर्णयों को प्रभावित करती है और हमारी आर्थिक वास्तविकता को आकार देती है। मुद्रास्फीति को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करके, सरकारें आर्थिक स्थिरता और विकास को बढ़ावा दे सकती हैं, जिससे उनके नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार होगा।

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कमरतोड़ महंगाई पर निबंध : Essay on Inflation in Hindi

Dr. Mulla Adam Ali

Mahangai par nibandh hindi mein, Hindi Essay on Inflation, बढ़ती मंहगाई पर 250 शब्दों में निबंध, महंगाई पर 500 शब्दों में निबंध, हिंदी निबंध लेखन।

Kamar Tod Mehangai Par Hindi Nibandh

Essay on Inflation in Hindi

Essay on Inflation in Hindi

कमरतोड़ महँगाई.

हाय महँगाई! इसने आम आदमी की तो कमर ही तोड़कर रख दी है। इस निरन्तर बढ़ रही महँगाई का चक्कर कहाँ जाकर रुकेगा, कोई नहीं जानता। कल जो चीज एक रुपये में खरीदी थी, आज वह डेढ़-दो रुपये में बिक रही है। पहले दाल-रोटी खाकर हर आदमी गुजारा कर लिया करता था, आज दालों की कीमतें आसमान छूने लगी हैं। सब्जियाँ हाथ नहीं लगाने देतीं। घी-तेल तो जैसे सपना ही होते जा रहे हैं। बच्चों को दूध तक पिलाना मुश्किल होता जा रहा है। जहाँ जाइए, जिस किसी से भी बात कीजिए, आजकल और कुछ सुनने को मिले न मिले, महँगाई को लेकर रोना-पीटना अवश्य सुनाई दे जाएगा। वास्तव में आज महँगाई ने आम आदमी की कमर तोड़कर रख दी है। उसके लिए जीना मुश्किल होता जा रहा है।

महँगाई के कारण दैनिक उपयोग की वस्तुओं के दाम इतने अधिक बढ़ गए हैं कि आद‌मी की शक्ति उन्हीं को जुटाने में चुकी जा रही है। उसकी चेतना, उसकी सारी गतिविधियाँ गोल रोटी के आस-पास ही सिमटकर रह गई हैं। और कुछ सोचने-करने का आम आदमी को समय और साधन ही नहीं मिल पाते। जो बड़े और सम्पन्न लोग हैं, उनके पास अधिक-से-अधिक कमाई करने से ही फुर्सत नहीं है। महँगाई बढ़ती है, तो बढ़े, उनकी बला से। वास्तव में कमरतोड़ देने की सीमा तक महँगाई बढ़ाने का कारण भी ये सम्पन्न लोग ही हैं न; फिर उन्हें क्या और कैसी चिन्ता? इधर आम आदमी जब पेट पालने से ही फुर्सत नहीं पाते, तो और बातों की ओर ध्यान ही कैसे दें। आम माता-पिता अपने बच्चों की छोटी-छोटी आवश्यकताएँ पूरी कर पाने में समर्थ नहीं हो पाते। अपने बुजुर्गों की आवश्यकताओं की तरफ चाह कर के भी ध्यान नहीं दे सकते। फलस्वरूप घरों-परिवारों में हर समय आपसी चख-चख मची रहती है। घर-परिवार, स्नेह के बन्धन, रिश्ते-नाते इस महँगाई की मार के कारण ही टूटकर बिखर रहे हैं। जिन आदशों के कारण मनुष्य का आदर-मान था वे आदर्श ही आज समाप्त होते जा रहे हैं।

बड़े-बुजुर्ग बताते हैं कि उनके जमाने में आय बहुत कम हुआ करती थी। पच्चीस-तीस रुपये महीना कमाने वाला व्यक्ति अपने परिवार का सुख-सुविधापूर्वक निर्वाह किया ही करता था, सोने-चाँदी के आभूषण और घर-द्वार तक भी उसी आमदनी में बनवा लिया करता था। शादी-ब्याह तथा अन्य प्रकार के आयोजन भी धूमधाम से उतने में ही हुआ करते थे। आज महीने के पाँच-दस हजार क्या पच्चीस-तीस हजार कमाने वाला भी रोता दिखाई देता है कि खर्च नहीं चल पाता, गुजारा नहीं होता। जीना मुश्किल होता जा रहा है। सोचने की बात है कि आखिर क्यों हो गया है ऐसा?

कहते हैं कि महँगाई का वर्तमान दौर दूसरे विश्वयुद्ध (सन् 1945) के समाप्त होने के साथ ही शुरू हो गया था। फिर भी उसकी गति इतनी तीव्र न थी कि जितनी पिछले दस-पन्द्रह वर्षों से हो रही है। यह गति रुकने का तो नाम नहीं ले रही। निरन्तर बढ़ती ही जा रही है। अपने कर्मचारियों को महँगाई की मार से बचाने के लिए सरकार विशेष भत्ता देती और बढ़ाती है, पर उसका लाभ भी कहाँ मिल पाता है उन्हें? सरकार यदि दस रुपये देती है, तो महँगाई पचास रुपये बढ़ जाती है। फिर गैर-सरकारी कर्मचारी तो नाहक मारे जाते हैं। उन्हें बढ़ा हुआ महँगाई-भत्ता तो क्या बढ़े हुए मूल वेतन तक नहीं मिलते। दिहाड़ी मजदूरों की हालत और भी खराब हो जाती है। हाँ, व्यापारी वर्ग को कोई अन्तर नहीं पड़ता। वह यदि कुछ महँगा खरीदता है. तो बेचता भी महँगा है। जो हो, महँगाई का चक्कर निरन्तर बढ़ता ही जा रहा है। इस पर भी कहा जा रहा है कि देश में किसी चीज का अभाव नहीं। हर फसल भी भरपूर हो रही है। छः-सात विकास योजनाएँ पूरी हो चुकी हैं। उनके फलस्वरूप कहा जाता है कि हर आदमी की क्रय-शक्ति बढ़ गई है; पर कहाँ और कैसे बढ़ गई है आम आदमी की क्रय-शक्ति यह कोई नहीं बताता। हर दिन रोटी का सामान महँगा खरीदना ही यदि राष्ट्रीय आय और क्रय-शक्ति का बढ़ना है, तो इसे आम आदमी की विवशता ही कहा जाना चाहिए।

अव्यवस्था, भ्रष्टाचार, काला बाजार, आय-व्यय का असन्तुलन, समर्थ लोगों द्वारा कर चोरी, सरकारी विभागों के अनाप-शनाप खर्चे, कल्पनाहीन समायोजन, कई बार युद्ध और हर समय मँडराते रहने वाले युद्ध के खतरे और शीत युद्ध की स्थितियाँ आदि महँगाई के कारण माने जाते हैं। हमारे विचार में एक कारण हमारी सम्वेदनाओं का मर जाना या कम हो जाना भी है। इसी प्रकार राजनेताओं की सिद्धान्तहीनता, राजनीतिक तोड़-फोड़, राजनीतिक कल्पना और संकल्पहीनता तथा ऊँचे स्तर पर फैला भ्रष्टाचार भी महँगाई बढ़ने का एक बहुत बड़ा कारण है। राजनीति के अपराधीकरण ने जलते में घी का काम किया है। देश पर शासन करने वाली राजसत्ता और राजनीति ही जब भ्रष्ट, अपराधियों का गढ़ बन जाया करती है, तब सभी प्रकार के अनैतिक तत्त्वों को खुलकर खेलने का समय मिल जाया करता है। हमारे देश में जो भ्रष्ट वातावरण बन गया है, इस कमरतोड़ महँगाई को बढ़ाने में निश्चय ही इस सबका भी बहुत बड़ा हाथ है।

इस प्रसंग में एक बात और भी ध्यान में रखने वाली है। वह यह कि स्वतन्त्रता- प्राप्ति के बाद भारत की जनसंख्या जिस अनुपात में बढ़ी है, उसी अनुपात से उत्पादन रहीं बढ़ा। उपज कम और उसकी माँग अधिक है। यह असन्तुलन भी बढ़ती महँगाई का एक बहुत बड़ा कारण है। इच्छाओं का विस्तार, रात-ही-रात में धनी बन जाने की इच्छा, प्रदर्शन या दिखावा करने की प्रवृत्ति-इस प्रकार हर तरह के असन्तुलन को ही हम महँगाई बढ़ने का मूल कारण कह सकते हैं। आज सभी प्रकार के फल आदि नो इतने महँगे हो गए हैं कि आम आदमी उनकी तरफ सिर्फ देख सकता है, खरीद कर चख या खा नहीं सकता। वास्तव में थैला भरकर नोट ले जाने पर जो कुछ मलता है, वह एक लिफाफा भर भी नहीं होता।

महँगाई के जाल से छुटकारा पाने के लिए सबसे पहले राष्ट्रीय स्तर पर दृढ़ संकल्प और कल्पनाशील इच्छा-शक्ति की आवश्यकता है। इसी के बल पर हर प्रकार के भ्रष्टाचार से लड़कर महँगाई के बहुत बड़े कारण की जड़ काटी जा सकती है। इसी प्रकार निरन्तर बढ़ रही जनसंख्या पर अंकुश लगाना भी बहुत आवश्यक है। हर प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन, उनका सुनियन्त्रण भी बहुत आवश्यक है। हमारी सरकार का यह कर्तव्य हो जाता है कि वह सभी प्रकार की योजनाएँ बनाते समय राष्ट्रीय आवश्यकताओं का ध्यान रखे। राष्ट्रीय सच्चरित्रता वाले लोगों को ही उनकी पूर्ति में लगाए। सभी प्रकार की अन्तर्राष्ट्रीय नीतियों का निर्धारण भी राष्ट्रीय हितों को सामने रखकर करे। स्वार्थी तत्त्वों के राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय सभी प्रकार के दबावों से मुक्त रहे। ऐसा करके काफी हद तक महँगाई पर काबू पाया जा सकता है। सरकार के साथ-साथ स्वतन्त्र राष्ट्र का नागरिक होने के कारण हमारा भी कर्त्तव्य हो जाता है कि हम अपनी इच्छाओं और स्वार्थों पर अंकुश रखें। केवल अपना लाभ नहीं, अपने आस-पड़ोस वालों के लाभ का भी उचित ध्यान रखें। न स्वयं भ्रष्टाचार करें, न किसी को करने दें। अगर हमारे आस-पास कोई काला बाजार करता है, या अन्य प्रकार के भ्रष्ट कार्यों में लिप्त दिखाई देता है, तो उस पर हर प्रकार का अंकुश लगवाने की कोशिश करें।

हमारा विचार है कि इन उपायों से इस कमरतोड़ महँगाई पर कुछ नियन्त्रण किया जा सकता है। अगर हर प्रकार से इस ओर प्रयत्न न किया गया, तो आने वाला समय और भी बुरा होगा। महँगाई हमारा कचूमर निकाल देगी। अतः तत्काल सावधान हो जाना आवश्यक है।

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मँहगाई की मार पर निबन्ध | Essay on Inflation in Hindi

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मँहगाई की मार पर निबन्ध | Essay on Inflation in Hindi!

मँहगाई या मूल्य वृद्धि केवल एक सामाजिक समस्या ही नहीं वरन एक आर्थिक समस्या भी है । आज विश्व बाहरी तौर पर हमें महान भले ही मान रहा हो, गाँधी के नाम की माला को जप रहा हो किन्तु वह हमारी आन्तरिक दुर्बलता से भली- भाँति परिचित है ।

वह है हमारी व्यवस्था तथा शासन में आर्थिक अनुशासन की कमी जिसका परिणाम हमें मँहगाई के रूप में देखने को मिलता है । इस मूल्य वृद्धि से जनजीवन बहुत ही त्रस्त हो गया है ।

आज का प्रत्येक विक्रेता अधिक से अधिक लाभ कमाने के चक्कर में है, यदि किसी वस्तु के भाव की वृद्धि का तो तुरन्त विक्रेता पहले से दुकान पर वर्तमान वस्तु के दाम एकदम बढ़ा देता है, जबकि नवीन वसुर यदि महँगी खरीदे तो उसे अधिक मूल्य पर देनी चाहिए । परन्तु पुरानी वस्तु को उसे पिछले भाव – में देना चाहिए ।

कभी-कभी तो बढ़े मूल्य से भी अधिक मूल्य पुरानी बस्तुओं पर वह ले लेता है, यही अधिक लाभवृत्ति ही मूलय वृद्धि कहलाती है । ये कारण एक नैतिक कारण है । जिससे मँहगाई फैलती है किन्तु एक दूसरी वजह सरकार का व्यापारियों पर अन्धाधुन्ध कर लगाना तथा अफसरशाही द्वारा व्यापारी वर्ग को परेशान करके घूस के रूप में पैसा खींचना ।

तंग आकर व्यापारी वर्ग के सामने मूल्य बढ़ाने के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं रह जाता । जो इम्पोर्टर हैं (आयातकर्त्ता) उनके माल पर इतना सीमा शुल्क लगा दिया जाता है कि वे भी बाजार में वस्तुओं के दाम बढ़ाने के लिये मजबूर कर दिये जाते है ।

इसके अतिरिक्त विचार करने पर माँहगाई के अनेक कारण दृष्टिगोचर होते हैं , जिनमें से मुख्य इस प्रकार हैं:

(1) उत्पादन की कमी :

अर्थशास्त्र का सिद्धान्त है की यदि उत्पादन कम हो और

ADVERTISEMENTS:

उपभोग या माँग अधिक हो तो मूल्य की स्वाभाविक रूप से वृद्धि होती है ।

(2) व्यापारी वर्ग द्वारा मुनाफाखोरी तथा जमाखोरी की प्रवृति :

विशेष रूप से व्यापारी वर्ग उस समस्या को भयंकर बनाने में भरसक प्रयत्नशील है । वह वस्तुओं को अवैध रूप से इकट्‌ठा करके जमा करता है । फिर बाजार में कृत्रिम अभाव उत्पन्न कर देता है । आज का भौतिकवादी मानव वस्तुओं को खरीदने के लिए विवश होकर उसको बढ़े मूल्यों पर वस्तुओं को खरीदता है ।

(3) काला धन:

वाँचू कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार देश में सात हजार करोड़ रुपयों का काला धन है । इस धन से अनुचित रूप से जमाखोरी, करों की चोरी तथा विदेशों में तस्करी व्यापार हो रहा है, जिससे मूल्य वृद्धि हो रही ।

(4) जनसंख्या वृद्धि:

इन 40 वर्षों में भारत की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई है । इसके लिए अधिक अन्न व वस्त्रादि की आवश्यकता पड़ती है । हमारी सरकार इसकी पूर्ति के लिए जितने प्रयत्न करती है, वे सब बढ़ोतरी की मात्रा में न्यून पड़ जाते हैं। अवश्यकता से कम वस्तुओं की उपलब्धि होने से मूल्य वृद्धि का होना स्वाभाविक है।

(5) दोषपूर्ण वितरण प्रणाली :

देश में वितरण का प्रबन्ध भी उचित नहीं है । बहुत- सी वस्तुएँ तो मार्ग में तथा गोदामों में ही नष्ट हो जाती हैं, जिससे वस्तुओं की कमी होने पर महँगाई हो जाती है ।

(6) भ्रष्टाचार :

इसके कारण भी तेजी आती है । लोगों की भ्रष्ट नीतियों से विकास योजनाएँ समय पर पूर्ण नहीं होती है, पुलों व सड़कों आदि को मिलावट के सीमेन्ट आदि से बनाया जाता है, जिससे वे जल्दी टूट जाते हैं और पुन: बनवाने में पर्याप्त व्यय होता है । इससे सामान का अभाव होता है और तेजी की वृद्धि होती है ।

मूल्य वृद्धि के दुष्परिणामों को देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि समस्या अति विकराल है, इसका समाधान करना ही होगा ।

मूल्य वृद्धि के समस्त कारणों को दूर करने के लिए उपाय निम्न हैं :

1. जनसंख्या पर नियन्त्रण :

यद्यापि सरकार ने ‘ परिवार नियोजन ‘ विभाग खोल रखा है, परन्तु कार्य जिनन हाना चाहिए उतना नहीं हो रहा है । यदि सही अर्थों में यह कार्य पूर्ण हो जाय, तो वस्तुओं की कमी नहीं हो और मूल्य वृद्धि पर अंकुश लग जाय।

2. उत्पादन में वृद्धि :

सरकार क्र कृषि उत्पादन तथा उद्योग – धन्धों पर विशेष ध्यान देना चाहिए जिससे वस्तुओं की मात्रा, तो कीमतें स्वयंमेव कम हो जाएगी ।

3. बहिष्कार प्रवृत्ति :

उपभोक्ता संग्रह वृत्ति व अधिक मूल्य की वस्तुओं का बहिष्कार करें । गृहणियाँ कम संग्रह व कम वस्तु में कार्य चलाने का प्रयास करें, इससे मूल्य वृद्धि रूकेगी ।

4. कानून द्वारा:

सरकार एव जनता दोनों को चाहिए कि जमाखोर एवं मुनाफाखोर व्यापारियों के प्रति कड़ा व्यवहार करे । सरकार इनको पर्याप्त दण्ड दे और जनता इनकी समाज में भर्त्सना करे । इससे भी मूल्य वृद्धि रूकेगी । टैक्स प्रणाली सरल की जाये ताकि व्यापारी वर्ग में निराशा उत्पन्न न हो और वह वस्तुओं के दामों को बढ़ाने पर मजबूर न हो ।

हमारी जनप्रिय सरकार महँगाई रोकने के अनेक प्रयत्न कर रही है । उद्योगों तथा कृषि के लिए विकास योजनाएँ बन रही हैं । देश में बाजार तथा उपभोक्ता भण्डार खुल रहे हैं । सरकार को वितरण प्रणाली में भी आमूल-चूल परिवर्तन करना चाहिए । यद्यपि देश के बड़े-बड़े नेता, शिक्षाशास्त्री, अर्थशास्त्री एवं प्रशासक महँगाई की विकराल समस्या के समाधान में लगे हैं । इसी में सबका कल्याण है ।

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The Effects of “Buy American”: Electric Vehicles and the Inflation Reduction Act

We study electric vehicle (EV) tax credits in the US Inflation Reduction Act (IRA), the largest climate policy in US history, with three goals. First, we provide the first ex-post microeconomic welfare analysis of this central component of the IRA. Event studies around changes in eligibility for EV tax credits find that short-run economic incidence falls largely on consumers. Additionally, domestic content restrictions on tax credits for purchased vehicles have driven enormous shifts to leasing. Our equilibrium model shows that compared to pre-IRA policy, IRA EV credits generated $1.87 of US benefits per dollar spent in 2023, at taxpayer cost of $32,000 per additional EV sold. Compared to scenarios with no EV credits, however, the IRA EV credits created only $1.02 of benefits per dollar of government spending. Second, we characterize the gains from policies targeting heterogeneity in externalities across vehicles. We find that relative to uniform credits, differentiating credits across EVs according to their heterogeneous externalities would substantially increase policy benefits. Third, we quantify tradeoffs in the IRA EV credits between foreign and domestic welfare and between trade and the environment. We find that the IRA EV credits benefit the environment but undermine trade, since they decrease global carbon emissions but use profit shifting to decrease foreign producer surplus. A controversial IRA loophole that removes domestic content restrictions on tax credits for EV leases has negative domestic benefits.

We thank Rishab Mohan and Jiawei Yang for exceptional research assistance. We thank Michael Anderson, Kirill Borusyak, Allan Collard-Wexler, Jonathan Dingel, James Heckman, Marc Melitz, Steve Redding, Andrés Rodríguez-Clare, Jonathan Smoke, and Catherine Wolfram as well as our discussants Lydia Cox, Keith Head, and Rich Sweeney for helpful comments and discussions. We acknowledge use of ChatGPT to proofread grammar. We are grateful to the Becker Friedman Institute at the University of Chicago and NSF grant SES-2117158 and SES-2214949 for research support. The views expressed herein are those of the authors and do not necessarily reflect the views of the National Bureau of Economic Research.

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